For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रफ्ता रफ्ता जिंदगी की आरजू जाती रही ।
दरमियाँ तन्हाइयों के मौत कुछ गाती रही ।।

मत कहो वो बेवफा थी आसनाई में मिरे।
वो खयालो में मेरे यूँ रात भर आती रही।।


बारिशें मुमकिन कहाँ जो भीग जाते हम कभी ।
बनके सावन की घटा ता उम्र वो छाती रही ।।


रोज़ रुसवाई की चर्चा फ़िक्र का अपना शबाब।
मैं जलूँगी ख़ाक होने तक कसम खाती रही ।।


फिर समंदर ने गुजारिश की है लहरो से यहां।
साहिलों की तश्नगी पर जुल्म क्यों ढाती रही ।।


माँ यतीमों की तरह मजबूर हो करती बसर।
जो दुआएं मांग कर मेरे लिए लाती रही ।।

जिसकी आँखों में शरारत वो थी महबूबा मेरी ।
पर जो नज़र खामोश थी बीबी वही भाती रही ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on May 31, 2015 at 12:01pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है
बधाई स्वीकारें

ग़ज़ल के आख़िरी मिसरे के प्रति सौरभ जी ने आपको सचेत कर ही दिया है ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 11:31am

आदरणीय नवीन मणि जी, आपका इस मूल मंच पर हार्दिक स्वागत है. आपकी एक अच्छी ग़ज़ल सामने आयी है. दाद कुबूल करें. 

पर जो नज़र खामोश थी बीबी वही भाती रही  -- इस मिसरे को एक बारी फिर से देख लें..

शुभेच्छाएँ

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 27, 2015 at 12:39pm

बहुत सुन्दर गज़ल,हार्दिक बधाई!भाई नवीन जी!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 26, 2015 at 3:35pm

आदरणीय नवीन मणि जी, सभी अशआर अच्छे लगें, मिरे = मेरे ही लिखे, पढने वाले खुद समझ जायेंगे कि वहां मात्रा गिरायी गयी है, बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 26, 2015 at 2:31pm

बहुत खूब ..
बधाई आपको 

Comment by Naveen Mani Tripathi on May 26, 2015 at 12:14pm
भाई केवल प्रसाद जी आभार।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 26, 2015 at 12:11pm
आदरणीय गोपाल श्रीवास्तव सर आभार ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on May 26, 2015 at 12:09pm
आदरणीय मिथिलेश जी सादर आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 26, 2015 at 12:49am

आदरणीय नवीन जी,बहुत ही ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल से हुई है शेर दर शेर दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 25, 2015 at 9:35pm

आ0 नवीन भाईजी, सुंदर गज़ल के लिये हार्दिक बधाई स्वीकारे. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service