For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अतुकांत - वार्तायें कैसी हों ( गिरिराज भंडारी )

वार्तायें ,

किसी सर्व समावेशी बिन्दु की तलाश में

अपने अपने वैचारिक खूँटे से बंधे बंधे क्या सँभव है ?

आँतरिक वैचारिक कठोरता

क्या किसी को विचारों के स्वतंत्र आकाश में उड़ने देता है ?

सोचने जैसी बात है

 

वार्तायें अपने अपने सच को एन केन प्रकारेण स्थापित करने के लिये नहीं होतीं

न ही लोट लोट के किसी भी बिन्दु को स्वीकार कर लेने लिये ही होती हैं

 

वार्तायें होतीं है

अब तक के अर्जित सब के ज्ञान को मिला के एक ऐसा मिश्रण तैयार करने के लिये

जिसमे सबका हित निहित हो

अपनी अपनी ज़िद को किसी कोने में डाल के

सरतला और तरलता के साथ

इस स्वीकार भाव के साथ कि ,

अगर कुछ बेहतर निकलता है मंथन से तो मै उसे स्वीकार करूँगा ,

मेरे सच के इतर भी , एक नये सच की तरह

कम से कम तब तक के लिये जब तक कोई और बेहतर न मिल जाये

 

महा शक्तियों के बीच की वार्तायें विकट होतीं हैं

बँट जाती है छोटी छोटी शक्तियाँ / बँटना ही पड़ता है

टतस्थ रहना ठीक नहीं समझा जाता , और न ही सरल है , छोटी शक्तियों के लिये

 

ऐसे में एक सर्व समावेशी बिन्दु की तलाश ज़िम्मेदारी हो जाती है

महा शक्तियों की

छोटी छोटी शक्तियाँ के बँट जाने का कारण भी तो वही है न

 

पौराणिक मान्यता है कि ,

शेषनाग की करवट भूकंप का कारण होती है

तो , नाग देवता की ज़िम्मेदारी भी है

कि ,करवट इस ढंग़ से ले कि धरती में तबाही न मचे

है कि नहीं ?

**********************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 439

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 2:23am

परस्पर संवाद बनने क्रम में रह-रह कर सिर उठा लेती एक गंभीर समस्या को बड़ी ही गहनता से शाब्दिक किया है आपने, आदरणीय गिरिराज भाई.

यह सच ही कहा है, आपने -
वार्तायें होतीं है
अब तक के अर्जित सब के ज्ञान को मिला के एक ऐसा मिश्रण तैयार करने के लिये
जिसमे सबका हित निहित हो
अपनी अपनी ज़िद को किसी कोने में डाल के
सरतला और तरलता के साथ

महा शक्तियों के बीच की वार्तायें विकट होतीं हैं
बँट जाती है छोटी छोटी शक्तियाँ / बँटना ही पड़ता है
टतस्थ रहना ठीक नहीं समझा जाता , और न ही सरल है , छोटी शक्तियों के लिये.............  क्या बात ! क्या बात !

पौराणिक मान्यता है कि ,
शेषनाग की करवट भूकंप का कारण होती है
तो , नाग देवता की ज़िम्मेदारी भी है
कि ,करवट इस ढंग़ से ले कि धरती में तबाही न मचे
है कि नहीं ?..........................  हा हा हा  !!

वाह-वाह बहुत खूब ! आज शेषनाग अकेला नहीं है, आदरणीय. इसके कई वंशज अपने-अपने हिस्से की धरती सम्हालते तो क्या हैं, हिलाते जरूर रहते हैं. यही इनके अहं को तुष्ट करता है. और प्रभावित धरतीवासी लगातार डोलते रहते हैं, क्या करें कि ना करें ! यह धरतीवासियों की विवशता भी है !

यह कविता पता नहीं पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल क्यों नहीं हो पायी !

आपकी संवेदनशीलता प्रणम्य है आदरणीय.

एक बात :
आँतरिक वैचारिक कठोरता
क्या किसी को विचारों के स्वतंत्र आकाश में उड़ने देता है ?  ................. यहाँ ’उड़ने देती है’ होना चाहिये.

टतस्थ ,, यह टंकण त्रुटि है. सही शब्द तटस्थ है.

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 24, 2015 at 12:16pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..एक नयी ताजगी लिए ...इस अनूठे चिंतन के लिए हार्दिक बधायी..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2015 at 1:22pm

आदरणीय श्याम भाई , रचना की सराहना के लिये आपक आभारी हूँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2015 at 1:22pm

आदरणीय बड़े भाई , सलाह के लिये आपका आभारी हूँ , लेकिन खुल के विस्तार से समझायें तो मै ज़रूर अमल मे ला पाऊँगा । मै तो बस अपने किसी चिंतन को शब्द देने का प्रयास करता हूँ , मुझे ये भी नही पता कि अतुकांत का शिल्प कैसा है । अगर आप इसे देखें तो ज़रूर खुल के समझायें ताकि खुद मे कुछ सुधार कर पाऊँ ।

Comment by Shyam Narain Verma on May 23, 2015 at 12:45pm
बहुत ही सुन्दर , बधाई इस प्रस्तुति के लिए आदरणीय
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 23, 2015 at 11:46am

आ० अनुज

आपके कथन का अपना सौन्दर्य है पर मित्र रचना इतनी विचार बोझिल न हो कि उसकी कविता दब  जाए . सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ठीक है खुल के जीने का दिल में हौसला अगर हो तो  मौत   को   दहलने में …"
10 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत अच्छी इस्लाह की है आपने आदरणीय। //लब-कुशाई का लब्बो-लुबाब यह है कि कम से कम ओ बी ओ पर कोई भी…"
18 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
5 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
8 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
17 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
17 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service