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अब फैसला आखिर मे सारी बात का मिला
दिन की थकन के बाद सफ़र रात का मिला

घर से यूँ लौट आता हु मैं दो दिनों के बाद
कैदी को जैसे वक़्त मुलाकात का मिला

मालिक तू है कहाँ मेरी आँखे तरस गयी
लेकिन पता न मुझको मेरी जात का मिला

आयी सुबह ज़रूर मगर बादलो के साथ
अंजाम ये बरसो से लंबी रात का मिला

इस बात का नहीं मुझे कुछ भी पता चला
क्यों जीत में ये रँग हमे मात का मिला

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर तक
एक शख़्श मुझको मेरी औकात का मिला

ख़ारिज़ ये शायरी है खारिज है मेरी ज़ीस्त
ये इल्म मुझको सारे तज़र्बात का मिला
'अहसास'




मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 4:13pm
आपकी निगाह पड गयी
मुझे हौसला हुआ
आपकी इनायत है जनाब कबीर सर
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 3:23pm
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,अच्छी ग़ज़ल कही है आपने,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |
Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 1:20pm
बहुत आभार सर
ये ग़ज़ल मेरी और मेरे बहुत से साथियों के दर्द की अभिव्यक्ति है
उत्तरप्रदेश में 72825 प्राथमिक शिक्षकों के चयन के अंतर्गत मेरा चयन गृह जनपद सहारनपुर से लगभग 500 किमी दूर सीतापुर में हुआ है ये चयन गृह जनपद में भी हो सकता था परन्तु सिस्टम की कमी की वजह से बहुत सारे मेरे साथी अपने घर से दूर रह रहे है सर्विस के प्रारंभिक दिनों में जबकि वेतन या मानदेय मिलने के अभी कोई आसार नहीं है घर जाना फिर एक दो दिन बाद वापस आना पुरे दिन ड्यूटी ले बाद रात का सफ़र करना और चार साल बाद लंबी क़ानूनी लड़ाई के बाद इअ नौकरी का आधे अधूरे अर्थो में मिलना
ये सब इस ग़ज़ल।में कहने का प्रयास किया गया है
इस स्विकारोक्ति के साथ की ग़ज़ल के छंद से मैं अभी अपरिचित हूँ
आप सभी से निवेदन है कि इसे विशेष उक्त सन्दर्भ में पुनः पढने की कृपा करे
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2015 at 6:01pm

आदरणीय मनोज जी इस शानदार प्रस्तुतु पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by मनोज अहसास on May 3, 2015 at 8:05am
बहुत आभार सीमा जी
टाइप में थोड़ी गलती से शेर में 'तक '
शब्द छूट गया है पूरा मिसरा यु है

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर तक




आप सभी के आशीर्वाद का बहुत आभार
Comment by seema agrawal on May 3, 2015 at 12:42am

शानदार  प्रस्तुति  हर शेर लाजवाब ..................

फिर आज मैंने खुद को सताया है देर
एक शख़्श मुझको जब मेरी औकात का मिला.................वाह  क्या ज़ोरदार बात  

Comment by मनोज अहसास on May 2, 2015 at 10:02pm
आदरणीय मिथिलेश जी
सादर नमन
आभार

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Comment by मिथिलेश वामनकर on May 2, 2015 at 9:54pm

बेहतरीन प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनोज जी 

Comment by मनोज अहसास on May 2, 2015 at 9:04pm
जी बहुत मेहरबानी
मै ज़रूर ध्यान दूँगा
आभार
MAHIMA SHREE JI
Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 8:38pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल ..बधाई आपको..हर शेर के बाद थोड़ा स्पेश दे.. तो सही दिखेगा .आप अन्य बलॉगर मित्रों के पोस्ट को देखे 

कृपया ध्यान दे...

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