For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भोपाली चौक की गलियाँ (दास्तान -ऐ-भोपाल)

आज भोपाल के चौक में रौनक जरा कम नजर आ रही थी । सारे दुकानदार सहमे से अतिक्रमण दस्ता के तरफ देख रहे थे । अफरा तफरी का माहौल देख कर वहां खरीदारी करने आये लोग परेशान हो इधर उधर हो रहे थे ।
"अरे भाई , इनको क्या परेशानी है ...? अगर दुकानदार समानों को सजाकर नही दिखाये तो ग्राहक को भी कैसे समझ में आये । " -- बेहद परेशान अजीज भाई कह उठे थे ।
"चौक के अंदर तक गाडियों का प्रवेश वर्जित कर दे , तो जरा बात भी बने । नाहक ही यह प्रसाशन , ग्राहक और दुकानदार दोनों को परेशान कर रहे है । "--- वहीं पास खडे़ मुकेश भाई भी अपने दुकान का शटर गिराते हुए कह रहे थे ।

" अम्मी , आपसे कहा था कि न्यू मार्केट चलो शाॅपिंग के लिये पर आपको तो चौक ही आना था ।"--शबाना बीबी झल्ला सी उठी थी अम्मी पर । क्या करें अम्मी भी ! एक उम्र जो गुजार चुकी है इन्ही गलियों से खरीदारी करते हुए । वो पहचानती है यहाँ की खासियत कि कहाँ कौन सी चीज़ उम्दा और अच्छी कारीगरी की मिलेगी । शाॅपिंग करना भी बडी जहीन सी एक कला ही होती है । भोपाल के चौक का रूतबा तो भोपाल के पुराने वाशिंदों के कारण ही है । जहाँ इब्राहिमपूरा में नामचीन साडियों , भोपाली कुर्ता और भोपाली पहनावे का एक पूरा बाजार ही मिलेगा तो वहीं पर दुसरी तरफ लखेरापूरा जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है चुडियों की विशाल संसार यहाँ देखने को मिल जाती है ।

बात भोपाल की निकले और जडी के कामों की बात ना हो तो ऐसे में बात अधुरी ही मानी जायेगी । यहाँ की महीन कारीगरी विदेशों तक मशहूर है । जडी का सबसे बडा बाजार भी लखेरापूरा में ही मिलेगा । यहाँ तो जडी की महीन करीगरी सिर्फ साडियों और कुर्तों पर ही नही बल्कि जूती , पर्स , बैग , टोपी , छोटी -छोटी सी संदूकचीयों पर भी गजब की देखने को मिल जायेगी । सर्राफा बाजार तो सोने चाँदी की सबसे पुरानी और विश्वसनीय बाजार है भोपाल की । गहने का होलसेल मार्केट भी इन्ही सर्राफा की गलियों में ही है । इतवारा की इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार भी ऐसी गजब की है कि यहाँ आपको इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक हर प्रकार की चीज़ मिल जायेगी । सारे प्रोजेक्ट वर्क की प्रोजेक्ट किट यहीं मिलते है भोपाल में । इन्ही गलियों में स्थित भोपाल के बेहद मशहूर अफगान होटल और मदीना होटल की तो बात ही निराली है । यहाँ की बिरयानी , हलीम और शोरबे का मजा तो जिसने चखा वही जानता है । चाट पकौड़ी की गली में चटखारे के साथ लोगों की भीड़ ही लगी रहती है । इसी से यहाँ के स्वाद का अंदाजा लगाया जा सकता है ।  एक गली है यहाँ जो बेहद मशहूर है " चटोरी गली ".... नाम के अनुसार ही चटोरो और चटखारे स्वाद लेने वालों का जमावड़ा लगा रहता है ।

हर गली की यहाँ अपनी अलग ही दास्तान है ।
हर गली का मिजाज़ दुसरे गलियों से भिन्न है ।

चौक में एक बडा सा पीपल का पेड़ है । ना जाने कितनी उसकी उम्र होगी ? शायद कोई वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ ही बता सके क्योंकि इसका कोई ठोस प्रमाण नही है कि इसे कब लगाया गया ।चौक से ही ये सारी गलियाँ शुरू होती है । गाड़ियों की कतार ही आज के दौर में इन गलियों की सबसे बडी परेशानी है । नये लोगों का इन तंग गलियों में दम घुटता है । ऐसा अभी ट्रांसफर होकर आये एक नव दंपत्ति का कहना था । भोपाल की बेगमों के द्वारा बसाये गये बाजार की पारम्परिक मिजाज़ आज भी कायम मिलेंगे यहाँ । भोपाल तालों का शहर होने के साथ ही इन बेमिसाल गलियों का भी शहर है । मेरा मानना है कि अगर इन भोपाली गलियों को नहीं जिया तो क्या खाक भोपाल जिया ।

भोपाल के सरजमीं पर बसे भारत के नामचीन शायर बशीर बद्र साहब की एक गजल याद आती है कि

" मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही




कान्ता राॅय
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1079

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:50pm
नमन आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी आपको मेरा आलेख पसंद करने के लिए ।
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:46pm
आभार आपको आदरणीय कृष्णा मिश्रा ' जान गोरखपूरी' जी , रचना पसंद करने के लिए ।
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:44pm
वाह !!! अच्छा लगा जानकर की आप भी भोपाल को जिये है आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी । हाँ बिलकुल सच कहा आपने कि न्यू मार्केट के छोले भटूरे सच में आज भी लाजवाब बनते है । वहाँ की भीड़ ही वहां के जायके का अंदाजा लगा देती है । बिड़ला मंदिर से नीचे रात को पूरा भोपाल पहाडों पर सच में ऊँची नीची जगमगाहट के साथ अनुपम सौंदर्य की छटा बिखराता है । आभार फिर से आपको कि भोपाली मिट्टी की सौंधी खुश्बू जेहन में आपके अभी तक कायम है । सादर
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:37pm
रचना पर अपना बहुमूल्य प्रतिक्रिया देने हेतु आभार आपको आदरणीय श्री सुनील जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 19, 2015 at 10:54am

अपने जिये शहर की खूबियाँ दिल से ही बयान होती हैं. दिल की बातें करती गलियों की दास्तान दिल से निकली भी है. शब्दों में मुलामीयत है. शैली और विन्यास में अपनापन है.
भोपाल कई दफ़े जाना हुआ है. साहित्यिक चहल-पहल वाले कस्बे सिहोर भी हो आया हूँ. फिर भी, आपकी पंक्तियों की उंगलियाँ थामे उन भीड़ भरी गलियों में कन्धे से कन्धे रगड़ना और लापरवाह बिचरना भला लगा.

इस बात के लिए मैं बार-बार बधाइयाँ दूँगा कि आपने शहर की चर्चा में आज वाले भोपाल की आधुनिकता छोड़ उस भोपाल को छूने का भला सा प्रयास किया है जो किसी शहर का मात्र हिस्सा नहीं, वहाँ की ज़िन्दग़ियों के लिए साँस की आवृति और बरतने वालों के लिए धमनियों में बहता हुआ संस्कार होता है.

इस आलेख के लिए पुनः हार्दिक बधाई आदरणीया कान्ताजी.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 10:34am

मजा आ गया भोपाल पर ये बेहतरीन आलेख पढ़कर..सजीव चित्रण सैर हो गयी मानो भोपाल की!...बहुत बधाई आदरणीय!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 18, 2015 at 8:56pm

आदरणीया कांता जी. सचमुच झीलों की नगरी भोपाल की सुन्दरता का जितना गुणगान करो उतना कम ही है. नया भोपाल (साउथ) जहाँ ऊँची नीची पहाड़ियों पर बने आवास बहुत ही सुहावने लगते है. रात के समय बिडला मंदिर की उंचाई से पुरे शहर की जगमगाहट तो गजब की दिखती है.. आपके द्वारा इस सुंदर वर्णन से मुझे अपने स्टूडेंट लाइफ के समय की याद तरोताजा हो गई. दोस्तों के साथ पैसे एकत्रित कर न्यू मार्केट में छोले भठूरे खाना बहुत पसंद था. उस समय बेरोजगारी तो थी पर बड़ा आनंद आता था. भोपाल में अपना बहुत समय व्यतीत किया. प्रस्तुति पर बधाई

Comment by shree suneel on April 18, 2015 at 7:32pm
आदरणीया कांता जी, आपको पढ़ कर हम भी भोपाल की गलियाँ घूम आऐ. सुन्दर प्रस्तुति. बधाई.
Comment by kanta roy on April 18, 2015 at 7:31pm
आदरणीय इंजी.श्री गणेश जी बागी जी , मेरी रचना में भोपाल को पसंद करने के लिए बहुत बहुत आभार । भोपाल आतुर है आप सभी सुधी जनों के स्वागत के लिए .... आकर भोपाल की गरिमा बढाये ..... स्वागत आप सभी का भोपाल में । आभार

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2015 at 6:22pm

आदरणीया कांता जी, भोपाल के प्रति आप जिज्ञासा बढ़ा दी, अब तो लग रहा है एक टूर प्लान करना पड़ेगा. सुन्दर वर्णन, बधाई आदरणीया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागत है"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
Thursday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Apr 14

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service