For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ तू सुनती क्यों नहीं

माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
वो घुटनों पे चलना
वो आँखों को मलना
वो मिटटी को खाना
बिना सुर के गाना
वो चिल्ला के कहना
मुझे रोटी देना
आज फिर चूल्हे पे पानी
तूँ पकाती क्यों नहीं
माँ तूँ सुनती क्यूँ नहीं
वो तेरी हथेली
में कितनी पहेली
वो मेरा कसकना
वो तेरा सिसकना
वो ममता की छाया
मुझे याद आया
वो मुस्कान तेरी
वो पेशानी मेरी
आज फिर से बोशा
सजाती क्यूँ नहीं
माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
विजय कुमार चौबे मनु

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 1, 2015 at 12:25pm

सुंदर रचना, बहुत सुन्दर प्रस्तुति है, आदरणीय विजय जी. बधाई आपको

Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:30am
आदरणीय आपने तो बचपन की याद दिला दी।।हार्दिक बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:02am

आदरणीय विजय जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by vijay on January 31, 2015 at 10:45pm
सभी गुनी जनों को प्रणाम एवं उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
Comment by Shyam Mathpal on January 31, 2015 at 2:51pm

Aadarniya vijay ji,

Maan ko samparpit ye rachna bhawon aut prot hai. Hardik badhai.

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 31, 2015 at 2:14pm

माँ को हृदय से याद किया आपने i सादर i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 31, 2015 at 12:19pm

सुंदर रचना, आदरणीय विजय जी. बधाई आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 31, 2015 at 5:03am

बहुत सुन्दर रचना ... हार्दिक बधाई 

Comment by ajay sharma on January 30, 2015 at 10:51pm

bahut hi sunder rachna ke liye dhanyawad 

Comment by somesh kumar on January 30, 2015 at 10:43pm

माँ तू सुनती क्यों नहीं
तूँ बुनती क्यों नहीं
इक नई सी जिंदगी

सुंदर भाव भाई जी ,माँ नाम के महाकव्य के बारे में जो कहा जाए कम है|फिर भी अपने अनुभवों के आधार पर माँ की ये वन्दना सम्मानीय है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service