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जब भी कलम उठाता हूँ

तुम्हे यादों में पाता हूँ

शब्द नहीं मिलते लिखने को

तेरा चित्र बनाता जाता हूँ !!

 

कितना कुछ है कहने को

जड़ जुबान हो जाता हूँ

अंतर्मन व्याकुल हो जाता है

उलझन में फंस जाता हूँ !!

 

मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!

 

कैसे करूँ दिल की बाते

जब हुई चार दिन मुलाकातें

मैं कैसे करूँ तुम्हे  संबोधन

अभिवयक्ति ढ़ूँढ़ता जाता हूँ !!

 

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ !!

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित" 

   

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Comment by rajesh kumari on December 18, 2014 at 7:42pm

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2014 at 5:42pm

आओ दुबे जी

यह अद्भुत श्रद्धांजलि i यह क्रिया कर्म  i यह अंतिम सस्कार किस वेदना का है मित्र  i बहुत बहुत बधाई i

Comment by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 12:25pm

 आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 12:23pm

सोमेश भाई आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार !

Comment by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 12:22pm

आपके उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार  आदरणीय  शिज्जु "शकूर" जी !


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 11:03pm

मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!

सुन्दर रचना हार्दिक बधाई आदरणीय  हरि प्रकाश दुबे जी 

Comment by somesh kumar on December 17, 2014 at 9:15pm

कैसे करूँ दिल की बाते

जब हुई चार दिन मुलाकातें

मैं कैसे करूँ तुम्हे  संबोधन

अभिवयक्ति ढ़ूँढ़ता जाता हूँ !!

 

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ !!

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई भाई जी 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2014 at 7:52pm

///मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!///  वाह मनोभावों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिये


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Comment by शिज्जु "शकूर" on December 17, 2014 at 7:52pm

///मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!///  वाह मनोभावों को क्या खूब शब्द दिया है आपने बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिये

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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