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एक दीप तुम द्वार पर, रख आये हो आज ।
अंतस अंधेरा भरा, समझ न आया काज ।।

आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।।

पग पग पीडि़त लोग हैं, निर्धन अरू धनवान ।
पीड़ा मन की छोभ है, मानव का परिधान ।।

काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही नादान ।।

मन के हारे हार है, मन से तू मत हार ।
काया मन की दास है, करे नही प्रतिकार ।।

बात ज्ञान की है बड़ी, कैसे दे अंजाम ।
काया अति सुकुमार है, कौन करेगा काम ।।

नुख्श खोजते क्यों भला, ज्ञानी पंडि़त लोग ।
अपनी गलती भूल कर, जग में करते खोज ।।
............................................
मौलिक अप्रकाशित


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Comment

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Comment by vijay nikore on October 29, 2014 at 3:24pm

इन सुन्दर दोहों के लिए बधाई।

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 28, 2014 at 4:39pm

आप सभी महानुभावों ने इस रचना को समय दिया इसके लिये आभार

Comment by Shyam Narain Verma on October 27, 2014 at 11:59am

बहुत सुंदर दोहें हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय......................

Comment by Alok Mittal on October 27, 2014 at 11:36am

आदरणीय बहुत सुंदर दोहे आपके रस से भरे हुए !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 26, 2014 at 8:41pm
चौहान जी
मेरी नजर में आपके दोहे बहुत अच्छे हैं i
Comment by रमेश कुमार चौहान on October 25, 2014 at 8:24pm

आदरणीय लड़ीवालाजी एवं सोमेशजी आप दोनो का ाभार, दीप पर्व पर अशेष शुभकामनाएं

Comment by somesh kumar on October 25, 2014 at 11:23am

सारे दोहे अच्छे लगे पर अंतिम दोहा ज़्यादा सार्थक लगा |दीप-पर्व एवं सुंदर दोहों के लिए बधाई |

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 25, 2014 at 11:14am

सुंदर और सार्थक दोहे रचे है श्री रमेश चौहान जी | इसके लिए बहुत बहुत बधाई | दीपोत्सव की अनंत शुभ कामनाए 

आज खुशी का पर्व है, मेटो मन संताप ।
अगर खुशी दे ना सको, देते क्यों परिताप ।। ----- "अगर ख़ुशी ना दे सकों" अथवा "ख़ुशी न कोई दे सकों" शायद ज्यादा उचित हो 

काम सीख देना सहज, करना क्या आसान ।
लोग सभी हैं जानते, धरे नही नादान ।।-------- " रहते क्यों नादान" या "करते नहीं निदान" कैसा रहेगा, देखे भाई चाहान जी 

अनुपम भाव रचित दोहों के लिए पुनः बधाई 

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