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1222- 1222- 1222

मुनव्वर शाम के रंगीं नज़ारों में

नुमायाँ फूल हों जैसे बहारों में

 

कहीं कम हो न जाये बज़्म की रौनक

लगा दो कुछ दिये भी चाँद तारों में

 

फ़रोग़े शम्अ महफिल में लगे है यूँ

झलकता हुस्न हो जैसे हज़ारों में

 

लकीरें धूप की झाँके दरीचे से

सवेरा छुप के बैठा है दरारों में

 

न जाने रंग कितने रोज़ भर जाये

ये नूरे शम्स झीलों कोहसारों में

 

हवा के सामने शिद्दत से जलती लौ

यूँ हिम्मत दे गई हमको इशारों में

 

न रखिये हर दफ़े आरज़ू उजालों की

मिले तो मुस्तहब है रहगुज़ारों में

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2014 at 8:27pm

आदरणीय विजय निकोर सर रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 26, 2014 at 8:26pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार

Comment by vijay nikore on October 21, 2014 at 2:56am

बहुत ही खूबसूरत गज़ल है... हार्दिक बधाई।

Comment by MAHIMA SHREE on October 19, 2014 at 9:24pm

न रखिये हर दफ़े आरज़ू उजालों की

मिले तो मुस्तहब है रहगुज़ारों में....वाह ....बेहद उम्दा ..हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2014 at 7:14pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2014 at 7:14pm

आदरणीय डॉ गोपाल नारायण सर आपका शुक्रिया। माफी चाहता हूँ इस बार गलती हो गई। फ़रोग़ का अर्थ है ज्योति, कोहसार का अर्थ है पर्वतमाला।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2014 at 7:10pm

आदरणीया राजेश दीदी आपका बहुत बहुत शुक्रिया सुझाव के लिये आभार अभी सुधार देता हूँ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 19, 2014 at 7:10pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2014 at 10:37am

लाजवाब गजल कही आपने आदरणीय शिज्जू जी. हर एक शेर तारीफ़ के काबिल हुआ

हवा के सामने शिद्दत से जलती लौ

यूँ हिम्मत दे गई हमको इशारों में.......बेहद सुंदर. लाखों बधाइयाँ आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 18, 2014 at 12:20pm

क्या बात है ?

उर्दू के कुछ कठिन  शब्द के अर्थ मिल जाते तो आनंद बढ़ जाता i इस बार आप भूल गए i पर आगे अर्थ जरूर दीजियेगा i  फरोगे / कोहसार  समझ में नहीं आये  i पर फिर भी मजा आया i  सस्नेह i

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