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इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए

 

रोटी कपड़ा मकाँ की तरह साथियों

रौशनी लाज़मी हो सभी के लिए

 

वो भटकता हुआ इक मुसाफ़िर है ख़ुद

चुन रहे हो जिसे रहबरी के लिए

 

हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया

मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए

 

खैरियत से रहे सब हबीबो-अदू

मैं दुआ माँगता हूं सभी के लिए

 

मैं ग़मों को गले से लगाता रहा

लोग रोते रहे जब ख़ुशी के लिए

 

दोस्ती  आशिकी बंदगी शायरी

अब जरुरी नहीं आदमी के लिए

 

दीप जलते रहें जश्न मनता रहे

बदगुमानी रहे कुछ घड़ी के लिए

 

गाँव में तीरगी है मुसल्सल मगर

फिर चरागाँ हुआ शहर ही के लिए

 

और ‘खुरशीद’ का सिर कलम हो गया

है यही इक सजा सरकशी के लिए

 

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Comment

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Comment by khursheed khairadi on November 10, 2014 at 2:03pm

आदरणीय विजय निकोरे साहब ,आदरणीया महिमा श्री जी ,आदरणीय जितेन्दर् जी ,सोमेश जी ,श्यामनारायण जी और परम आदरणीय गोपालनारायण जी ,हौसलाअफजाई के लिए शुक्रगुजार हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर 

Comment by vijay nikore on October 21, 2014 at 2:59am

खूबसूरत गज़ल लिखी है। बधाई।

Comment by MAHIMA SHREE on October 19, 2014 at 8:11pm

इक दिया चाहिए रोशनी के लिए

बालता हूं जिगर मैं इसी के लिए.... लाजवाब मतला ...हर शेर उम्दा ..हार्दिक बधाई प्रेषित है 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 18, 2014 at 9:29am

बेहतरीन गजल कही आपने, आदरणीय खुर्शीद साहब. दिली बधाई कुबूल करें

Comment by somesh kumar on October 17, 2014 at 7:56pm

adbhut 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2014 at 6:51pm

हौसला जिंदगी को ग़ज़ल ने दिया

मैं तो तैयार था ख़ुदकुशी के लिए

 

दीप जलते रहें जश्न मनता रहे

बदगुमानी रहे कुछ घड़ी के लिए

और ‘खुरशीद’ का सिर कलम हो गया

है यही इक सजा सरकशी के लिए-     बेहतरीन खुर्शीद भाई i दीपावली सी जग गयी मानो i  बधाई हो i

 

Comment by Shyam Narain Verma on October 17, 2014 at 5:41pm

बहुत सुन्दर गजल  ... आपका बधाई ...

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