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जाने कहाँ विलुप्त हो गए बचपन के एहसास

हमसे बहुत दूर हो गए ममता भरे हाथ।

        

जिस प्यार के तले सीखा था जीने का अंदाज

अकेला छोड़ उड़ गए सुनहरे परवाज़

        

अपने जज़्बातों का मुकाम पाने को

बेताब है अपना नया घरौदा बनाने को

       

क्या पता किससे मिले, बिछड़े किसी से

कौन कहेगा तू रहना खुशी से,

        

जमाने की हाफा-दाफी ने भुला दिया-

अपनों के प्यार की दौलत को

ऊंचा उठने के मनोरथ ने मिटा दिया-

हो जैसे रौनक को

        

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

कल्पना ममिश्रा बाजपेई

मौलिक व अप्रकाशित 

             

                  

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Comment by kalpna mishra bajpai on August 6, 2014 at 10:52pm

आ० लक्ष्मण सर ,बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on August 6, 2014 at 10:52pm

आ० सर, बहुत आभार /सादर 


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Comment by Saurabh Pandey on August 4, 2014 at 1:26am

ज़िन्दग़ी के भावुक क्षणों को आपने साग्रह शब्द दिये हैं आदरणीया.

सादर बधाई..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 1, 2014 at 9:39am

बचपन के जज्बातों को लेकर रची सुंदर भाव रचना के लिए बधाई आद कल्पना मिश्रा बाजपेयी जी 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 31, 2014 at 10:20pm

हार्दिक आभार भाई आमोद जी ////सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 31, 2014 at 10:19pm

आ०श्री गोपाल नारायण सर हार्दिक शुक्रिया /सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 31, 2014 at 9:06pm

न जाने कैसे सांस ले रहे है जिंदगी के जज़्बात

कितने आँसू के घूंट पी रहे है नैनों के हर ख्वाब।

 

आदरणीय कल्पना दीदी ... बहुत बढ़िया ... भाव से ओत-प्रोत ... क्या कहूँ... सब कम है ... 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 1:55pm

महनीया

आपकी कविता का भाव पक्ष पर्याप्त सबल है i  बधाई हो i

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 1:41pm

आ0 हरिवल्ल्भ सर बहुत आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on July 30, 2014 at 1:36pm

आदरनिया कुंती दी हार्दिक आभार /सादर ...........................दी आप इस फोटो में बहुत सुंदर लग रहीं है सर के साथ ////////////////

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