For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रोज़ होती सड़क दुर्घटनायें

कभी ये, कभी वो

शिकार होते लोग

सब जानते हैं

समझते हैं

आज कोई

तो कल

हम भी हो सकते हैं शिकार

दुर्घटना तो आखिर दुर्घटना है

 

चलो मान लिया

गलती इसकी थी, या उसकी

जाँच का विषय है

पर घण्टों सड़क पर

तड़पती ज़िंदगी

मदद के लिए विनती करती

कभी इशारे से बुलाती

भीड़ से आस की उम्मीद लिए

हर बार आखिरी कोशिश करती  

लाश में तब्दील होती ज़िंदगी

 

किसका दोष है ??

इंसानों का  ?

या इंसानों के भेष में घूम रही

मशीनों का ....

Views: 382

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on April 18, 2013 at 11:28am

आदरणीय,

सारस्वत जी पाठक जी ,संदीप जी एवं अशोक रक्ताले जी आप सब ने कविता के मर्म को सराहा  बहुत शुक्रिया।

हम सब मशीनी युग के इंसान है और मशीनों के साथ रहते रहते हमारी सोच भी बादल गई है।

लोग पीड़ित के दर्द को न देखकर, किसी परेशानी में न पड़ जायें ये पहले सोचते है ।

अगर हम स्वम और कुछ लोगों की सोच भी बदल पाये तो मै समझूंगा  मै अपने प्रयास में सफल हुआ ।

(वैसे प्रिन्ट मीडिया एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से भी लोगों को समझाने की ज़रूरत है )

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 18, 2013 at 8:00am

आदरणीय नादिर खान साहब सादर, लाख क़ानून कहे कुछ नहीं होगा किन्तु कोई सुनता नहीं है इसी का नतीजा है पीडीत सडकों पर ही दम तोड़ रहे हैं. सुन्दर मार्मिक रचना. बधाई.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 5:26pm

बहुत सुन्दर आदरणीय 

वाकई हकीकत तो कुछ ऐसी ही है 

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें 

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:22pm

हर बार आखिरी कोशिश करती  

लाश में तब्दील होती ज़िंदगी////////////

किसका दोष है ??

इंसानों का  ?

या इंसानों के भेष में घूम रही

मशीनों का ....///////// सटीक और सही सवाल उठाया है,आदरणीय आपने/////

मेरे विचार से लोगो को बताने के साथ साथ हमें स्वयं भी विचार करना चाहिए !मैंने देखा है लोग दूसरों को बहुत बताते है लेकिन स्वयं नहीं करते !!सादर 

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 12:07pm

लो मान लिया

गलती इसकी थी, या उसकी

जाँच का विषय है

पर घण्टों सड़क पर

तड़पती ज़िंदगी

मदद के लिए विनती करती

कभी इशारे से बुलाती

भीड़ से आस की उम्मीद लिए

हर बार आखिरी कोशिश करती  

लाश में तब्दील होती ज़िंदगी

 

किसका दोष है ??

इंसानों का  ?

या इंसानों के भेष में घूम रही

मशीनों का ....

इंसानियत शायद ख़त्म हो गयी है ! बहुत सटीक और सही सवाल उठाया है आपने अपनी रचना में

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
12 minutes ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
8 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
10 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service