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आज अचानक मिला मुझे एक दोस्त पुराना

नई राह पर,

हाँथ मिलाया, गले मिले फिर

एक दूजे का हाल सुना,

कुछ मौसम की बात हुई

कुछ अपने परिवारों की

आहिस्ते-आहिस्ते जो अब टूट रहे है,

उन रिश्तों का जिक्र हुआ

जो अर्थहीन होने वाले है,

और कुछ खुशियों की बात हुई,

फिर उसने मुझसे पूछ लिया

"क्या अब भी लिखते हो" ?

मै चुप था

सोच रहा था सच न बताऊँ,

और नहीं बताया !

 

कैसे कहता ?

मन में बनते गीत दबा लेता हूँ मन में

दिल का दर्द नहीं लाता हूँ होंठो पर,

 

कैसे कहता ?

गला घोंट देता हूँ मैं कविताओं का

जोड़ नही पाता शब्दों की लड़ियों को

शायद इतना टूट चूका हूँ,

 

कैसे कहता ?

जीना मैंने छोड़ दिया है

दर्द बंधा था जिन धागों से, तोड़ दिया है,

 

कैसे कहता ?

जिसके लिए लिखता था अब वो रूठ चूका है

जिस रिश्ते पर अंहकार था, टूट चूका है

अब तो जितना हो सकता है खुश रहता हूँ

दिल तो दुखता है लेकिन अब चुप रहता हूँ,

 

अब मैं दर्द नहीं लिखता हूँ !!!!

 

................................................................अरुन श्री !

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Comment

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Comment by आशीष यादव on January 12, 2017 at 4:15pm
Achchhi rachna. Jeewan ka ek aisa mod aata h jb hm is taraf jhuk jate hn.

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Comment by Saurabh Pandey on December 5, 2011 at 11:51am

ढंग-विशेष से कही गयी अच्छी रचना है.सतत प्रयासरत रहें.

बधाई और शुभेच्छा. 

Comment by mohinichordia on December 4, 2011 at 10:46pm

 आब मैं दर्द नहीं लिखता हूँ ...बेहद .उम्दा लिखा है आपने अरुण श्री जी 

कृपया ध्यान दे...

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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