Comments - माग रहे हैं तोड़ के घर को -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल) - Open Books Online2024-03-29T02:16:44Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A998643&xn_auth=noआ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-11:5170231:Comment:9990262020-01-11T22:06:25.959Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई विजय निकोर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।</p> मित्र, आपकी रचना मन के बहुत…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-09:5170231:Comment:9986962020-01-09T01:32:48.522Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>मित्र, आपकी रचना मन के बहुत पास आई है। आनन्द आ गया पढ़ कर। हार्दिक बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।</p>
<p>मित्र, आपकी रचना मन के बहुत पास आई है। आनन्द आ गया पढ़ कर। हार्दिक बधाई, मित्र लक्ष्मण जी।</p> आ. भाई प्रदीप देवीशरण भट्ट जी…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-08:5170231:Comment:9986912020-01-08T23:46:13.589Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई प्रदीप देवीशरण भट्ट जी, सादर अभिवादन। गजल को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p>
<p>आ. भाई प्रदीप देवीशरण भट्ट जी, सादर अभिवादन। गजल को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।</p> आ. भाई रवि भसीन 'शाहिद' जी, स…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-08:5170231:Comment:9988382020-01-08T23:45:28.611Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई रवि भसीन 'शाहिद' जी, सादर अभिवादन। गजल को मान देने के लिए आभार।</p>
<p>आ. भाई रवि भसीन 'शाहिद' जी, सादर अभिवादन। गजल को मान देने के लिए आभार।</p> आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-08:5170231:Comment:9989262020-01-08T02:43:35.791Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आ. भाई आशुतोष जी, सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-08:5170231:Comment:9988282020-01-08T02:43:07.706Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आशुतोष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। सामान्य अर्थ में मझधार में ही होता है । पर मैंने यहाँ उसे तूफानी धार के भरोसे छोड़ने के संदर्भ में लिया है अतः पर का प्रयोग किया है । ज्यादा स्पष्ट करने के लिए शायद <br/>' झट तूफानी धारों पर' लिखना था । धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई आशुतोष जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार। सामान्य अर्थ में मझधार में ही होता है । पर मैंने यहाँ उसे तूफानी धार के भरोसे छोड़ने के संदर्भ में लिया है अतः पर का प्रयोग किया है । ज्यादा स्पष्ट करने के लिए शायद <br/>' झट तूफानी धारों पर' लिखना था । धन्यवाद।</p> बेहतरीन गज़ल हुई लक्ष्मण जी, ब…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-07:5170231:Comment:9988222020-01-07T08:13:23.498Zप्रदीप देवीशरण भट्टhttp://www.openbooksonline.com/profile/PradeepDevisharanBhatt
<p>बेहतरीन गज़ल हुई लक्ष्मण जी, बधाई</p>
<p>बेहतरीन गज़ल हुई लक्ष्मण जी, बधाई</p> आदरणीय मुसाफ़िर भाई, बहुत बढ़िय…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-06:5170231:Comment:9986012020-01-06T13:59:35.006Zरवि भसीन 'शाहिद'http://www.openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय मुसाफ़िर भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें! आपकी ग़ज़ल में मौजूदा दौर के हादसों की तरफ़ बहुत अच्छे इशारे और नसीहतें हैं।</p>
<p>आदरणीय मुसाफ़िर भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें! आपकी ग़ज़ल में मौजूदा दौर के हादसों की तरफ़ बहुत अच्छे इशारे और नसीहतें हैं।</p> हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण ध…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-05:5170231:Comment:9984942020-01-05T06:44:20.749ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी।बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>आप समझ जाते गर पीड़ा जो दी थी बँटवारे ने</span><br/><span>लौट न आते ओढ़ धर्म को आजादी के नारों पर।५।</span></p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय <span>लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</span>जी।बेहतरीन गज़ल।</p>
<p><span>आप समझ जाते गर पीड़ा जो दी थी बँटवारे ने</span><br/><span>लौट न आते ओढ़ धर्म को आजादी के नारों पर।५।</span></p> आदरणीय भाई लक्षमण जी बहुत ही…tag:www.openbooksonline.com,2020-01-05:5170231:Comment:9986462020-01-05T04:47:07.002ZDr Ashutosh Mishrahttp://www.openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय भाई लक्षमण जी बहुत ही उम्दा रचना है / इस रचना के लिए हार्दिक बधाई / बैसे मझधार में हमेशा सुना था मझधार पर के प्रयोग पर थोडा असमंजस की स्थिति में हूँ / नव बर्ष की भी हार्दिक शुभकामनाएं सादर </p>
<p>आदरणीय भाई लक्षमण जी बहुत ही उम्दा रचना है / इस रचना के लिए हार्दिक बधाई / बैसे मझधार में हमेशा सुना था मझधार पर के प्रयोग पर थोडा असमंजस की स्थिति में हूँ / नव बर्ष की भी हार्दिक शुभकामनाएं सादर </p>