Comments - ग़ज़ल : इक दिन मैं अपने आप से इतना ख़फ़ा रहा - Open Books Online2024-03-29T09:28:39Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A997581&xn_auth=noबेहतरीन अशआर। सुंदर गजल।tag:www.openbooksonline.com,2019-12-15:5170231:Comment:9976502019-12-15T12:51:50.547Zआशीष यादवhttp://www.openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>बेहतरीन अशआर। सुंदर गजल।</p>
<p>बेहतरीन अशआर। सुंदर गजल।</p> जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,अ…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-13:5170231:Comment:9975052019-12-13T09:10:52.049ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'तू अपने हक़ में क्यूँ कभी भी सोचता नहीं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'कभी' के साथ 'भी' का प्रयोग उचित नहीं होता,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p>
<p>जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'तू अपने हक़ में क्यूँ कभी भी सोचता नहीं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'कभी' के साथ 'भी' का प्रयोग उचित नहीं होता,इसे बदलने का प्रयास करें ।</span></p> आपकी पारखी नज़र को सलाम आदरणीय…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-10:5170231:Comment:9974962019-12-10T13:36:37.877ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आपकी पारखी नज़र को सलाम आदरणीय निलेश सर। इस मिसरे को ले कर मैं दुविधा में था। पहले 'दी' के साथ कहा फिर 'के' के साथ और आख़िर में पुनः 'दी' कर दिया पर पूर्ण विश्वास नहीं था कि कौन बेहतर है। आपने संशय दूर कर दिया। मिसरा संशोधित कर दिया है। ग़ज़ल आपको पसन्द आयी, लिखना सार्थक रहा। बहुत-बहुत शुक्रिया। हार्दिक आभार। सादर।</p>
<p>आपकी पारखी नज़र को सलाम आदरणीय निलेश सर। इस मिसरे को ले कर मैं दुविधा में था। पहले 'दी' के साथ कहा फिर 'के' के साथ और आख़िर में पुनः 'दी' कर दिया पर पूर्ण विश्वास नहीं था कि कौन बेहतर है। आपने संशय दूर कर दिया। मिसरा संशोधित कर दिया है। ग़ज़ल आपको पसन्द आयी, लिखना सार्थक रहा। बहुत-बहुत शुक्रिया। हार्दिक आभार। सादर।</p> बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आ. महें…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-10:5170231:Comment:9977132019-12-10T07:33:59.265ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आ. महेंद्र जी। .<br/><span>ख़ुद को लगा दी ..ख़ुद को लगा <span style="text-decoration: underline;"><strong>के <br/></strong></span></span>.</p>
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<p>बस ऐसी ही छोटी मोटी गुँजाइश है। .<br/>बहुत बहुत बधाई <br/><br/></p>
<p>बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है आ. महेंद्र जी। .<br/><span>ख़ुद को लगा दी ..ख़ुद को लगा <span style="text-decoration: underline;"><strong>के <br/></strong></span></span>.</p>
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<p>बस ऐसी ही छोटी मोटी गुँजाइश है। .<br/>बहुत बहुत बधाई <br/><br/></p>