Comments - एक और खंडहर - Open Books Online2024-03-29T06:46:42Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A987166&xn_auth=noसराहना के लिए हार्दिक आभार, भ…tag:www.openbooksonline.com,2019-07-16:5170231:Comment:9877452019-07-16T16:37:21.263Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>सराहना के लिए हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी। सुझाव के लिए भी धन्यवाद। सही कर रहा हूँ।</p>
<p>सराहना के लिए हार्दिक आभार, भाई समर कबीर जी। सुझाव के लिए भी धन्यवाद। सही कर रहा हूँ।</p> प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2019-07-11:5170231:Comment:9873392019-07-11T09:02:16.532ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी कविता हमेशा की तरह बहुत उम्द: और शानदार है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p>'आजकल इन दिनों </p>
<p>कांच के टुकड़ों-सी</p>
<p>बिखरी'</p>
<p>पहली पंक्ति में 'आजकल इन दिनों' में से कोई एक ही रखना उचित होगा,'आजकल' कहें या 'इन दिनों' बात एक ही है,ग़ौर करें ।</p>
<p>प्रिय भाई विजय निकोर जी आदाब,आपकी कविता हमेशा की तरह बहुत उम्द: और शानदार है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p>'आजकल इन दिनों </p>
<p>कांच के टुकड़ों-सी</p>
<p>बिखरी'</p>
<p>पहली पंक्ति में 'आजकल इन दिनों' में से कोई एक ही रखना उचित होगा,'आजकल' कहें या 'इन दिनों' बात एक ही है,ग़ौर करें ।</p>