Comments - जाल .... ( 4 5 0 वीं कृति) - Open Books Online2024-03-29T11:02:52Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A981506&xn_auth=noआदरणीय राज नवादवी साहिब, आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2019-05-01:5170231:Comment:9833282019-05-01T10:26:29.612ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय राज नवादवी साहिब, आदाब। .... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।</p>
<p>आदरणीय राज नवादवी साहिब, आदाब। .... सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया।</p> आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बह…tag:www.openbooksonline.com,2019-05-01:5170231:Comment:9833242019-05-01T06:57:07.017Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
<p>आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बहुत बधाई. सुन्दर रचना और लेखन कार्य में एक मुकाम हासिल करने, दोनों के लिए. सादर </p>
<p>आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बहुत बधाई. सुन्दर रचना और लेखन कार्य में एक मुकाम हासिल करने, दोनों के लिए. सादर </p> आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .…tag:www.openbooksonline.com,2019-04-29:5170231:Comment:9828552019-04-29T14:36:27.145ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... आपकी आत्मीय प्रशंसा ने सृजन को आहत होने से बचा लिया। आपका तहे दिल से शुक्रिया। आपके अस्वस्थ होने का सुनकर मैं चिंतिति हूँ। अल्लाह आपको अच्छी सेहत बख्शे।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब .... आपकी आत्मीय प्रशंसा ने सृजन को आहत होने से बचा लिया। आपका तहे दिल से शुक्रिया। आपके अस्वस्थ होने का सुनकर मैं चिंतिति हूँ। अल्लाह आपको अच्छी सेहत बख्शे।</p> जनाब सुशील सरना जी आदाब,आप तो…tag:www.openbooksonline.com,2019-04-29:5170231:Comment:9829462019-04-29T10:08:42.545ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब,आप तो जानते हैं कि जब मैं बीमार होता हूँ तब ही मंच पर नहीं आ पाता,अन्यथा हाज़िरी पूरी रहती है ।</p>
<p>आपकी 450 वीं कविता भी हमेशा की तरह बहुत ख़ूब हुई है,इस कृति के लिए दो बार बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब सुशील सरना जी आदाब,आप तो जानते हैं कि जब मैं बीमार होता हूँ तब ही मंच पर नहीं आ पाता,अन्यथा हाज़िरी पूरी रहती है ।</p>
<p>आपकी 450 वीं कविता भी हमेशा की तरह बहुत ख़ूब हुई है,इस कृति के लिए दो बार बधाई स्वीकार करें ।</p> ४५०वीं कृति मंच के स्नेह से त…tag:www.openbooksonline.com,2019-04-29:5170231:Comment:9827382019-04-29T07:13:43.074ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>४५०वीं कृति मंच के स्नेह से तृषित। इतनी उपेक्षा के बाद शायद इसका जाना ही उचित होगा। क्षमा सहित प्रणाम।</p>
<p>४५०वीं कृति मंच के स्नेह से तृषित। इतनी उपेक्षा के बाद शायद इसका जाना ही उचित होगा। क्षमा सहित प्रणाम।</p>