Comments - ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (हम अपनी ज़िंदगी भर ज़िंदगी बर्दाश्त करते हैं) - Open Books Online2024-03-29T00:18:09Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A974478&xn_auth=noआदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी श…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-14:5170231:Comment:9749032019-02-14T16:26:24.688ZBalram Dhakarhttp://www.openbooksonline.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>कबूतर वाले शे'र में कुछ बदलाव की कोशिश करूँगा।</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर को यह शे'र सुनाया तो था किंतु आपकी टिप्पणी बाद उनके नज़रिये में शे'र के प्रति बदलाव भी आ सकता है... हा हा हा...</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय समर सर, ग़ज़ल में आपकी शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया।</p>
<p>कबूतर वाले शे'र में कुछ बदलाव की कोशिश करूँगा।</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर को यह शे'र सुनाया तो था किंतु आपकी टिप्पणी बाद उनके नज़रिये में शे'र के प्रति बदलाव भी आ सकता है... हा हा हा...</p>
<p>सादर।</p> जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल क…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-13:5170231:Comment:9746662019-02-13T10:50:41.484ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>मतला तो आप पर फिट बैठता है,हा हा हा..</p>
<p></p>
<div dir="auto">'बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,</div>
<div dir="auto">कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं'</div>
<div dir="auto">ये शैर तार्किकता की दृष्टि से मुनासिब नहीं,क्योंकि आज के दौर में कबूतरों से ये काम नहीं लिया जाता,दूसरी बात ये कि हर कबूतर ये काम नहीं करता,वो कुछ ख़ास कबूतर होते हैं,जिन्हें "नामाबर" कहते हैं,और ये काम वो दो निवालों के लिए…</div>
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>मतला तो आप पर फिट बैठता है,हा हा हा..</p>
<p></p>
<div dir="auto">'बस अपने दो निवालों के लिए मीलों तलक उड़कर,</div>
<div dir="auto">कबूतर चिट्ठियों की तस्करी बर्दाश्त करते हैं'</div>
<div dir="auto">ये शैर तार्किकता की दृष्टि से मुनासिब नहीं,क्योंकि आज के दौर में कबूतरों से ये काम नहीं लिया जाता,दूसरी बात ये कि हर कबूतर ये काम नहीं करता,वो कुछ ख़ास कबूतर होते हैं,जिन्हें "नामाबर" कहते हैं,और ये काम वो दो निवालों के लिए नहीं करते,ग़ौर करें ।</div> आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सु…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-13:5170231:Comment:9748212019-02-13T05:52:26.647ZBalram Dhakarhttp://www.openbooksonline.com/profile/BalramDhakar
<p>आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।</p>
<p>सादर।</p>
<p>आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल पर इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।</p>
<p>सादर।</p> बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ा…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-13:5170231:Comment:9747432019-02-13T05:51:34.614ZBalram Dhakarhttp://www.openbooksonline.com/profile/BalramDhakar
<p>बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ाब बशर साहब।</p>
<p>सादर।</p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया जनाब सुरख़ाब बशर साहब।</p>
<p>सादर।</p> आदरणीय बलराम धाकड़ जी इस बेहत…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9747352019-02-12T14:27:10.734ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय <span>बलराम धाकड़ जी </span>इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p>
<p>आदरणीय <span>बलराम धाकड़ जी </span>इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।</p> जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज…tag:www.openbooksonline.com,2019-02-12:5170231:Comment:9746572019-02-12T14:19:47.937ZSurkhab Basharhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurkhabBashar
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें</p>
<p>जनाब बलराम धाकड़ जी उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारक बाद कुबूल करें</p>