Comments - गज़ल - गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी। - Open Books Online2024-03-29T06:57:04Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A968730&xn_auth=no"मातम कुनाँ" मातम करना,मातम क…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9714272019-01-25T16:41:46.990ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>"मातम कुनाँ" मातम करना,मातम करने वाले ।</p>
<p>"मातम कुनाँ" मातम करना,मातम करने वाले ।</p> आदरणीय ये कुनाँँ का अर्थ समझ…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9713352019-01-25T16:12:01.953ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय ये कुनाँँ का अर्थ समझ नही आया।</p>
<p>आदरणीय ये कुनाँँ का अर्थ समझ नही आया।</p> //आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लू…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9713132019-01-25T11:58:04.324ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p></p>
<p>//आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लूं तो ठीक है क्या?</p>
<p>दर-ओ-दीवार हैं मातम सभी इस बात पे साक़ी//</p>
<p>ये मिसरा ठीक नहीं प्रिय अनुज ।</p>
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<p>//आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लूं तो ठीक है क्या?</p>
<p>दर-ओ-दीवार हैं मातम सभी इस बात पे साक़ी//</p>
<p>ये मिसरा ठीक नहीं प्रिय अनुज ।</p> आदरणीय रवि शुक्ला सर जी ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9707792019-01-25T03:45:06.800ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय रवि शुक्ला सर जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर</p>
<p>आदरणीय रवि शुक्ला सर जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर</p> आदरणीया सूचिसंदीप जी ग़ज़ल पस…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9708672019-01-25T03:44:25.576ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीया सूचिसंदीप जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर</p>
<p>आदरणीया सूचिसंदीप जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए और हौसला अफजाई के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। सादर</p> आदरणीय समर कबीर सर मैं समझ न…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-25:5170231:Comment:9710602019-01-25T03:42:25.875ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>आदरणीय समर कबीर सर मैं समझ नहीं पा रहा कि आप को किस तरीके से धन्यवाद कहूं सबसे पहले तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं कितनी देरी से आपको रिप्लाई कर रहा हूं आदरणीय आप में अपना कीमती समय मेरी छोटी सी और अपरिपक्व गजल के लिए दिया इसके लिए आपका धन्यवाद।</p>
<p></p>
<p> श्रीमान आप के बताए अनुसार मैं गजल में कुछ चेंज कर रहा हूं आशीर्वाद दें।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।<br></br>मिलूंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।</p>
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<p>अभी तो दिन भी…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर सर मैं समझ नहीं पा रहा कि आप को किस तरीके से धन्यवाद कहूं सबसे पहले तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं कितनी देरी से आपको रिप्लाई कर रहा हूं आदरणीय आप में अपना कीमती समय मेरी छोटी सी और अपरिपक्व गजल के लिए दिया इसके लिए आपका धन्यवाद।</p>
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<p> श्रीमान आप के बताए अनुसार मैं गजल में कुछ चेंज कर रहा हूं आशीर्वाद दें।</p>
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<p>पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।<br/>मिलूंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।</p>
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<p>अभी तो दिन भी बाकी है ये सूरज ही नहीं डूबा।<br/>इसे दिलबर के आंचल में जरा छुपने दे ऐ साकी।।२।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>जिसे पूजा किया हरदम जिसे समझा खुदा मैंने।<br/>किया बर्बाद मुझको तो उसी महबूब ने साकी।।३।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मेरा महबूब भी तू है मेरा हमराज भी तू है।</p>
<p><span>वही दुश्मन थे पक्के जो मेरे हमराह थे साक़ी।।४।।</span></p>
<p></p>
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<p>नहीं इससे बड़ी कोई भी अब अपनी तमन्ना है।<br/>गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।।५।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।</p>
<p><span>सभी यूँ ही नहीं पढ़ते मेरे अशआर ऐ साक़ी</span>।।६।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p><span>अमित" की ये कहानी मयकदे की आप बीती है</span></p>
<p><span>दर-ओ-दीवार हैं मातम कुनाँ इस बात पे साक़ी</span>।।७।।</p>
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<p>आदरणीय इस ऊला को ऐसे कर लूं तो ठीक है क्या?</p>
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<p><span>दर-ओ-दीवार हैं मातम सभी इस बात पे साक़ी</span>।।७।।</p> आदरणीय अमित जी ग़ज़ल की अच्छी…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-14:5170231:Comment:9697232019-01-14T05:41:26.939ZRavi Shuklahttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय अमित जी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है दिली मुबारकबाद पेश करता हूं आदरणीय समर कबीर साहब की इस्लाह से यकीनन हम सब को भी फायदा हुआ उसका संज्ञान लीजिये। सादर</p>
<p>आदरणीय अमित जी ग़ज़ल की अच्छी कोशिश हुई है दिली मुबारकबाद पेश करता हूं आदरणीय समर कबीर साहब की इस्लाह से यकीनन हम सब को भी फायदा हुआ उसका संज्ञान लीजिये। सादर</p> अमित भाई, समर कबीर जी के मशवर…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-09:5170231:Comment:9688622019-01-09T14:07:03.687Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://www.openbooksonline.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।</p>
<p>अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।</p> अमित भाई, समर कबीर जी के मशवर…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-09:5170231:Comment:9689482019-01-09T14:06:55.799Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://www.openbooksonline.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।</p>
<p>अमित भाई, समर कबीर जी के मशवरे के बाद गजल में चार चाँद लग गए हैं। एक एक ग़ज़ल की बारीकियों को देखकर उसकी गलतियों से अवगत कराना और फिर सुधारना सबके बस की बात नहीं होती। कबीर भाई जी की इस निष्ठा और आत्मीयता को नमन करती हूं।</p> जनाब अमित कुमार "अमित" जी आदा…tag:www.openbooksonline.com,2019-01-08:5170231:Comment:9690192019-01-08T09:23:07.249ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब अमित कुमार "अमित" जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p>' <span>मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'मिलुंगा' को "मिलूँगा" कर लें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>' इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में व्याकरण ठीक नहीं 'चुप जान दे' सहीह व्याकरण है "छुप जाने दे" जो यहाँ बह्र की वजह से नहीं ले सकते,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इसे दिलबर के आँचल में ज़रा छुपने दे ऐ…</span></p>
<p>जनाब अमित कुमार "अमित" जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p>' <span>मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'मिलुंगा' को "मिलूँगा" कर लें ।</span></p>
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<p><span>' इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में व्याकरण ठीक नहीं 'चुप जान दे' सहीह व्याकरण है "छुप जाने दे" जो यहाँ बह्र की वजह से नहीं ले सकते,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इसे दिलबर के आँचल में ज़रा छुपने दे ऐ साक़ी'</span></p>
<p></p>
<p><span>'जिसे पूजा किये हरदम जिसे समझा खुदा मैंने'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'पूजा किये'बहुवचन है,इसलिए इसे 'पूजा किया' करना उचित होगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'किया बर्बाद मुझको तो उसी इन्सान ने साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:;</span></p>
<p><span>'किया बर्बाद मुझको तो उसी महबूब ने साक़ी'</span></p>
<p></p>
<p><span>' वे दुश्मन थे मेरे पक्के जो मेरे साथ थे साकी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में भी ऐब-ए-तनाफ़ुर है,इसे यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-</span></p>
<p><span>'वही दुश्मन थे पक्के जो मेरे हमराह थे साक़ी'</span></p>
<p></p>
<p><span>'यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।<br/>सभी यूं ही नही पढते हमारे शैर ये साकी'</span></p>
<p><span>इस शैर में शुतरगुरबा दोष है,सानी मिसरा यूँ कर लें ऐब निकल जायेगा:-</span></p>
<p><span>'सभी यूँ ही नहीं पढ़ते मेरे अशआर ऐ साक़ी'</span></p>
<p></p>
<p><span>'अमित', अपनी कहानी मयकदे की आप बीती है।<br/>दर औ दीवार रोते हैं हमारी बात पे साकी'</span></p>
<p><span>इस शैर के ऊला में आप 'अमित' को सम्बोधित कर रहे हैं,और सानी में 'साक़ी' को ये भी शुतरगुरबा दोष है,और सानी मिसरे में ऐब -ए-तनाफ़ुर भी है,इस शैर को यूँ कर लें,ऐब निकल जायेगा:-</span></p>
<p><span>'"अमित" की ये कहानी मयकदे की आप बीती है'</span></p>
<p><span>दर-ओ-दीवार हैं मातम कुनाँ इस बात पे साक़ी'</span></p>
<p><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p>