Comments - कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-19T07:17:24Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A959014&xn_auth=noआ. महिमा जी, सादर आभार ।tag:www.openbooksonline.com,2018-11-25:5170231:Comment:9636452018-11-25T07:52:47.439Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. महिमा जी, सादर आभार ।</p>
<p>आ. महिमा जी, सादर आभार ।</p> आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-25:5170231:Comment:9634792018-11-25T07:52:13.431Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।</p>
<p>आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।</p> कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-04:5170231:Comment:9599142018-11-04T11:29:52.205ZMAHIMA SHREEhttp://www.openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p><span>कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है</span><br/><span>किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा....वाहह.बहुत खूब</span></p>
<p><span>कहो थोड़ा किसी को कुछ तो पत्थर ले के दौड़े है</span><br/><span>किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा....वाहह.बहुत खूब</span></p> गज़ल के शिल्प के बारे में मैं…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-04:5170231:Comment:9596962018-11-04T09:55:35.909Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>गज़ल के शिल्प के बारे में मैं औरों से सीख रहा हूँ, पर गज़ल में खयाल मुझको आपके अच्छे लगे और गज़ल का आनन्द आया, लक्ष्मण जी</p>
<p></p>
<p>गज़ल के शिल्प के बारे में मैं औरों से सीख रहा हूँ, पर गज़ल में खयाल मुझको आपके अच्छे लगे और गज़ल का आनन्द आया, लक्ष्मण जी</p>
<p></p> आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन ।…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9597612018-11-03T13:29:23.884Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार । विकल्प भी अच्छा सुझाया है , इसके लिए पुनः आभार।</p>
<p>आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन ।गजल पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार । विकल्प भी अच्छा सुझाया है , इसके लिए पुनः आभार।</p> आदरणीय लक्ष्मण जी, खूबसूरत ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9595932018-11-03T12:32:57.365ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. </p>
<p><span>किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा > किसी को आईना भी अब दिखाना हो गया टेढ़ा (ये सिर्फ़ एक विकल्प है संशोधन नहीं)</span></p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण जी, खूबसूरत ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई. </p>
<p><span>किसी को आईना जैसे दिखाना हो गया टेढ़ा > किसी को आईना भी अब दिखाना हो गया टेढ़ा (ये सिर्फ़ एक विकल्प है संशोधन नहीं)</span></p>
<p>सादर </p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन ।…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9594862018-11-03T06:15:03.164Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । समझाइस के लिए सादर आभार ।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । समझाइस के लिए सादर आभार ।</p> " सरल सा रिश्ता भी अब तो चलान…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9597322018-11-03T06:09:54.273ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>" <span>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा</span><br/><span>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना हो गया टेढ़ा"</span></p>
<p><span>अब ठीक है भाई ।</span></p>
<p>" <span>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा</span><br/><span>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना हो गया टेढ़ा"</span></p>
<p><span>अब ठीक है भाई ।</span></p> आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9597262018-11-03T04:43:43.016Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। मतले को बदलने का प्रयास किया है पुनः मार्गदर्शन करें -</p>
<p></p>
<p>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा<br/>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना/जताना हो गया टेढ़ा<br/>मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी<br/>कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।१।</p>
<p>आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। मतले को बदलने का प्रयास किया है पुनः मार्गदर्शन करें -</p>
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<p>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा<br/>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना/जताना हो गया टेढ़ा<br/>मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी<br/>कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।१।</p> आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन…tag:www.openbooksonline.com,2018-11-03:5170231:Comment:9597252018-11-03T04:35:19.076Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। मतले को बदलने का प्रयास किया है पुनः मार्गदर्शन करें -</p>
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<p>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा<br/>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना/जताना हो गया टेढ़ा।।<br/>मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी<br/>कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।।</p>
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। मतले को बदलने का प्रयास किया है पुनः मार्गदर्शन करें -</p>
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<p>सरल सा रिश्ता भी अब तो चलाना हो गया टेढ़ा<br/>वफा तुझमें नहीं बाकी बताना/जताना हो गया टेढ़ा।।<br/>मुहर मुंसिफ लगा बैठे सही अब बेवफाई भी<br/>कि बन्धन सात फेरों का निभाना हो गया टेढ़ा।।</p>