Comments - ग़ज़ल - दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है - Open Books Online2024-03-28T18:36:16Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A958339&xn_auth=noआदरणीय तेजवीर जी, उत्साहवर्धन…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-30:5170231:Comment:9589672018-10-30T11:26:27.398ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय तेजवीर जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.खेद है की मैं यथा समय उत्तर नहीं दे पाया.</p>
<p>आदरणीय तेजवीर जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.खेद है की मैं यथा समय उत्तर नहीं दे पाया.</p> आदरणीय विजय जी, आपकी उत्साहवर…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-30:5170231:Comment:9589032018-10-30T11:18:28.027ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय विजय जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>आदरणीय विजय जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p> गज़ल अच्छी लगी और इस पर हो रहे…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-30:5170231:Comment:9588702018-10-30T04:57:26.376Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>गज़ल अच्छी लगी और इस पर हो रहे वार्तालाप से सीखने को भी मिला। आपको बधाई अजय जी।</p>
<p>गज़ल अच्छी लगी और इस पर हो रहे वार्तालाप से सीखने को भी मिला। आपको बधाई अजय जी।</p> आदरणीय समर साहब,
बह्रे-मुतक़ार…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-29:5170231:Comment:9587732018-10-29T11:47:06.979ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय समर साहब,</p>
<p>बह्रे-मुतक़ारिब और बह्रे-मुतदारिक में बहुत से आहंग ऐसे है जो एक ही रूक्न 'फ़ेलुन' के दुहराव से बनाते हैं इस लिए उन्हें प्रायः एक ही समझ लिया जाता है. मसलन : </p>
<p></p>
<p><strong>मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुसक्किन मुजाइफ़</strong></p>
<p><strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन </strong> <strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन</strong></p>
<p><strong>22 22 22 22 22 22 22 22 </strong></p>
<p><strong> </strong></p>
<p>ढूंढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के…</p>
<p>आदरणीय समर साहब,</p>
<p>बह्रे-मुतक़ारिब और बह्रे-मुतदारिक में बहुत से आहंग ऐसे है जो एक ही रूक्न 'फ़ेलुन' के दुहराव से बनाते हैं इस लिए उन्हें प्रायः एक ही समझ लिया जाता है. मसलन : </p>
<p></p>
<p><strong>मुतदारिक मुसम्मन मख़्बून मुसक्किन मुजाइफ़</strong></p>
<p><strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन </strong> <strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन</strong></p>
<p><strong>22 22 22 22 22 22 22 22 </strong></p>
<p><strong> </strong></p>
<p>ढूंढोगे अगर मुल्कों मुल्कों मिलने के नहीं नायाब हैं हम</p>
<p>जो याद न आए भूल के फिर ऐ हमनफ़सो वो ख़्वाब हैं हम - शाद अज़ीमाबादी</p>
<p></p>
<p>इस में 'फ़इलुन'(112) फ़ेलुन (22) आ सकते हैं लेकिन फ़ेल (21) फ़ऊलु(121) या फ़ऊलुन (122) नहीं आ सकते. </p>
<p> </p>
<p><strong>मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ </strong> <strong>सालिम अल आखिर 16-</strong><strong>रुक्नी</strong></p>
<p><strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन </strong> <strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन</strong></p>
<p><strong>22 22 22 22 22 22 22 22</strong></p>
<p></p>
<p>कूच की साअ'त आ गई सर पर 'शाद' उठा ले झोली-बिस्तर</p>
<p>नींद में सारी रात बसर की चौंक मुसाफ़िर रात नहीं है - शाद अज़ीमाबादी</p>
<p></p>
<p>इस बह्र में 'फ़इलुन' (112) का इस्तेमाल नहीं हो सकता. फ़ेल (21) फ़ऊलु(121) फ़ऊलुन (122) या फ़ेलुन (22) आ सकते हैं. </p>
<p></p>
<p></p>
<p>ठीक इसी तरह इस ग़ज़ल की बह्र : </p>
<p></p>
<p><strong>मुतदारिक मख़्बून मुसक्किन महज़ूज़ 16-</strong><strong>रुक़्नी</strong></p>
<p><strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</strong></p>
<p><strong>22 22 22 22 22 22 22 2</strong> </p>
<p></p>
<p>और बह्रे-मीर :</p>
<p></p>
<p><strong>मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ मुखन्नक 16-</strong><strong>रुक्नी</strong></p>
<p><strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन </strong> <strong>फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा</strong></p>
<p><strong>22 22 22 22 22 22 22 2</strong></p>
<p></p>
<p>दोनों अलग-अलग बहरें हैं और इनके लिए भी वही नियम लागू होते हैं.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>\\जो शाइरी सीधे दिल पर असर करे उसी को तग़ज़्ज़ुल कहते हैं\\</p>
<p></p>
<p>सीधे असर कविता की कोई भी विधा कर सकती है. इस गुण को फ़साहत कहा जाता है. जो आतंरिक गुण ग़ज़ल को अन्य काव्य-विधाओं से अलग करता है उसे तग़ज़्ज़ुल कहते हैं.</p>
<p></p>
<p>कोई भी बात; बशर्ते उसके तथ्य ठीक हों, उसे मानने से मुझे कभी इन्कार नहीं रहा. </p>
<p>सादर </p> आदरणीय नीलेश जी, लय एक व्यक्त…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-29:5170231:Comment:9588472018-10-29T10:29:53.873ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय नीलेश जी, लय एक व्यक्तिगत तथ्य है इसके आधार पर बह्र तय नहीं हो सकती. एक आदमी कह सकता है की लय ठीक है दूसरा कह सकता है कि ठीक नहीं है. लय का मानक अंदाजे और दूर की कौड़ी वाला होता जबकि अरूज़ के निर्णय ठोस गणित जैसे अकाट्य होते हैं. ख़ास तौर से बहरे-मीर को लय के आधार पर तय करने का मानक उन लाल बुझकड़ों का उड़ाया हुआ है जो इस बह्र के अरूज़ी स्वरूप को जानते ही नहीं थे और लय की अटकल से इसका निर्णय करते थे. और अरूज़ के मामले में नाम बहुत महत्त्व पूर्ण है नहीं तो गलती होने की संभावना बनी रहती…</p>
<p>आदरणीय नीलेश जी, लय एक व्यक्तिगत तथ्य है इसके आधार पर बह्र तय नहीं हो सकती. एक आदमी कह सकता है की लय ठीक है दूसरा कह सकता है कि ठीक नहीं है. लय का मानक अंदाजे और दूर की कौड़ी वाला होता जबकि अरूज़ के निर्णय ठोस गणित जैसे अकाट्य होते हैं. ख़ास तौर से बहरे-मीर को लय के आधार पर तय करने का मानक उन लाल बुझकड़ों का उड़ाया हुआ है जो इस बह्र के अरूज़ी स्वरूप को जानते ही नहीं थे और लय की अटकल से इसका निर्णय करते थे. और अरूज़ के मामले में नाम बहुत महत्त्व पूर्ण है नहीं तो गलती होने की संभावना बनी रहती है. </p>
<p>सादर</p> मैं इस समय पारिवारिक उलझनों म…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-28:5170231:Comment:9587372018-10-28T14:49:09.105ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मैं इस समय पारिवारिक उलझनों में फँसा हूँ इसलिये कुछ अधिक लिखना सम्भव नहीं है,वैसे मैं भी ज़ाती तौर पर इसे मात्रिक बह्र ही कहना पसन्द करूँगा,कुछ भी कह देने से वो ग़ज़ल नहीं होती,और ग़ज़लियत जिसे हम तग़ज़्ज़ुल भी कहते हैं उसकी परिभाषा तो हर दौर में एक ही रही है,कि जो शाइरी सीधे दिल पर असर करे उसी को तग़ज़्ज़ुल कहते हैं, लेकिन आप इसे तस्लीम करने में हिचकिचा रहे हैं ।</p>
<p>मैं इस समय पारिवारिक उलझनों में फँसा हूँ इसलिये कुछ अधिक लिखना सम्भव नहीं है,वैसे मैं भी ज़ाती तौर पर इसे मात्रिक बह्र ही कहना पसन्द करूँगा,कुछ भी कह देने से वो ग़ज़ल नहीं होती,और ग़ज़लियत जिसे हम तग़ज़्ज़ुल भी कहते हैं उसकी परिभाषा तो हर दौर में एक ही रही है,कि जो शाइरी सीधे दिल पर असर करे उसी को तग़ज़्ज़ुल कहते हैं, लेकिन आप इसे तस्लीम करने में हिचकिचा रहे हैं ।</p> आ. अजय जी,बह्र को सिर्फ लय के…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-28:5170231:Comment:9588132018-10-28T13:15:54.952ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. अजय जी,<br/>बह्र को सिर्फ लय के पैमाने पर देखना चाहिए.. <br/>असलम, सलीम, सुलेमान जैसे नाम सिर्फ भ्रम उत्पन्न करते हैं... <br/>ये सारा ताल का खेल है... वही मात्रा पतन की आज्ञा भी देता है और वही अंत में एक लघु लेने की भी...<br/>ताल से ताल मिला..ओ <br/>सादर </p>
<p>आ. अजय जी,<br/>बह्र को सिर्फ लय के पैमाने पर देखना चाहिए.. <br/>असलम, सलीम, सुलेमान जैसे नाम सिर्फ भ्रम उत्पन्न करते हैं... <br/>ये सारा ताल का खेल है... वही मात्रा पतन की आज्ञा भी देता है और वही अंत में एक लघु लेने की भी...<br/>ताल से ताल मिला..ओ <br/>सादर </p> आदरणीय निलेश जी, आरूज़ को अरूज़…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-28:5170231:Comment:9585932018-10-28T12:32:08.656ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय निलेश जी, आरूज़ को अरूज़ के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए. मात्रिक जैसी संज्ञाए सिर्फ़ भ्रम पैदा करती है. बहरे मीर भी जिसे मात्रिक बह्र की संज्ञा दी जाती है उसे भी मात्रिक कहना एक भ्रम मात्र है. वह वर्णिक छन्दों के ज्यादा करीब है. जल्दी ही इस पर विस्तार से लिखूँगा. और ये बह्र तो किसी तरह से मात्रिक है ही नहीं. सादर </p>
<p>आदरणीय निलेश जी, आरूज़ को अरूज़ के नज़रिए से ही देखा जाना चाहिए. मात्रिक जैसी संज्ञाए सिर्फ़ भ्रम पैदा करती है. बहरे मीर भी जिसे मात्रिक बह्र की संज्ञा दी जाती है उसे भी मात्रिक कहना एक भ्रम मात्र है. वह वर्णिक छन्दों के ज्यादा करीब है. जल्दी ही इस पर विस्तार से लिखूँगा. और ये बह्र तो किसी तरह से मात्रिक है ही नहीं. सादर </p> आ. अजय जी ,बनारस को क्योटो कह…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-28:5170231:Comment:9586492018-10-28T12:15:21.880ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. अजय जी ,<br/>बनारस को क्योटो कह देने से वो क्योटो नहीं हो जाता,,<br/>नाम कुछ भी दे दें, ये रहेगी तो मात्रिक बह्र ही ;))</p>
<p></p>
<p>आ. अजय जी ,<br/>बनारस को क्योटो कह देने से वो क्योटो नहीं हो जाता,,<br/>नाम कुछ भी दे दें, ये रहेगी तो मात्रिक बह्र ही ;))</p>
<p></p> आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्य…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-28:5170231:Comment:9587352018-10-28T12:14:29.556ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्यवाद,</p>
<p>यह एक प्रयोग है और अरूज़ी नुक़्ते से भी अगर सफल है तो मेरे लिए एक संतोषप्रद बात है.</p>
<p>जहाँ तक ग़ज़लियत की बात है इसे आज तक किसी परिभाषा में नहीं बाँधा जा सका है हर आदमी का इसके बारे अपना दृष्टिकोण होता है.</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय समर साहब, हार्दिक धन्यवाद,</p>
<p>यह एक प्रयोग है और अरूज़ी नुक़्ते से भी अगर सफल है तो मेरे लिए एक संतोषप्रद बात है.</p>
<p>जहाँ तक ग़ज़लियत की बात है इसे आज तक किसी परिभाषा में नहीं बाँधा जा सका है हर आदमी का इसके बारे अपना दृष्टिकोण होता है.</p>
<p>सादर</p>