Comments - राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६२ - Open Books Online2024-03-29T13:20:19Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A953328&xn_auth=noटंकण की त्रुटी- 'बात ही बात म…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-17:5170231:Comment:9539492018-10-17T13:57:16.790Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
<p>टंकण की त्रुटी- '<span>बात ही बात में दिल क़ैद <strong>क्या</strong> नज़रों में' में <strong>क्या</strong> की जगह <strong>किया</strong> पढ़ा जाए. सादर </span></p>
<p>टंकण की त्रुटी- '<span>बात ही बात में दिल क़ैद <strong>क्या</strong> नज़रों में' में <strong>क्या</strong> की जगह <strong>किया</strong> पढ़ा जाए. सादर </span></p> आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-17:5170231:Comment:9538432018-10-17T05:32:23.995Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
<p>आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, आदाब. सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. </p>
<p>आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, आदाब. सुखन नवाज़ी का दिल से शुक्रिया. </p> आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. ब…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-17:5170231:Comment:9538422018-10-17T05:31:19.874Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. बताए गए बदलाव के साथ प्रस्तुतु करता हूँ. </p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. बताए गए बदलाव के साथ प्रस्तुतु करता हूँ. </p>
<p>सादर </p> आद0 राज़ नवादवी जी सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-16:5170231:Comment:9538222018-10-16T10:51:02.992Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 राज़ नवादवी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। कुछ शैर तो यकीनन दिल को छू गए। बधाई स्वीकार कीजिये।</p>
<p>आद0 राज़ नवादवी जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल कही आपने। कुछ शैर तो यकीनन दिल को छू गए। बधाई स्वीकार कीजिये।</p> //हिन्दुओं में मृत्यु के पश्च…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9533872018-10-15T17:05:51.727ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>//<span>हिन्दुओं में मृत्यु के पश्चात लाश को नहाने की परंपरा है, मेरा अभिप्रेय इसी से है//</span></p>
<p><span>मरने के पश्चात 'नहलाने' की परम्परा हर मज़हब में होती है,'नहाना' और "नहलाना"में बड़ा फ़र्क़ होता है,नहाया या नहाना स्वयं होता है,और जब कोई दूसरा ये अमल करे तो उसे नहलाना कहते हैं,'मैंने उसे नहलाया' 'मुझे नहाना है' उम्मीद है आप समझ गए होंगे ?</span></p>
<p>//<span>हिन्दुओं में मृत्यु के पश्चात लाश को नहाने की परंपरा है, मेरा अभिप्रेय इसी से है//</span></p>
<p><span>मरने के पश्चात 'नहलाने' की परम्परा हर मज़हब में होती है,'नहाना' और "नहलाना"में बड़ा फ़र्क़ होता है,नहाया या नहाना स्वयं होता है,और जब कोई दूसरा ये अमल करे तो उसे नहलाना कहते हैं,'मैंने उसे नहलाया' 'मुझे नहाना है' उम्मीद है आप समझ गए होंगे ?</span></p> आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. इ…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9534262018-10-15T10:23:09.086Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. इस्लाह का ह्रदय से आभार. सुझाई गई शुद्धियों का समावेश करता हूँ. '<span>तुझको इस मोड़तक लाने में ज़माने निकले'- क्या ऐसा कर सकता हूँ? हिन्दुओं में मृत्यु के पश्चात लाश को नहाने की परंपरा है, मेरा अभिप्रेय इसी से है, क्या अब भाव स्पष्ट होगा? ग़ैबत वाले शेर को हटा देता हूँ, मैंने इसका अर्थ ग़ैबी दुनिया या इल्म से समझा था. सादर </span></p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. इस्लाह का ह्रदय से आभार. सुझाई गई शुद्धियों का समावेश करता हूँ. '<span>तुझको इस मोड़तक लाने में ज़माने निकले'- क्या ऐसा कर सकता हूँ? हिन्दुओं में मृत्यु के पश्चात लाश को नहाने की परंपरा है, मेरा अभिप्रेय इसी से है, क्या अब भाव स्पष्ट होगा? ग़ैबत वाले शेर को हटा देता हूँ, मैंने इसका अर्थ ग़ैबी दुनिया या इल्म से समझा था. सादर </span></p> जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9535172018-10-15T10:04:06.161ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
<p></p>
<p>' <span>तुझको इस बात तक लाने में ज़माने निकले'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,इस मिसरे को यों कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इस जगह तक तुझे लाने में ज़माने निकले'</span></p>
<p></p>
<p><span>' हो चुका ख़त्म जब रिश्ता तो मनाने निकले'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यों करलें तो गेयता बढ जायेगी:-</span></p>
<p><span>'ख़त्म जब हो चुका…</span></p>
<p>जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।</p>
<p></p>
<p>' <span>तुझको इस बात तक लाने में ज़माने निकले'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,इस मिसरे को यों कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'इस जगह तक तुझे लाने में ज़माने निकले'</span></p>
<p></p>
<p><span>' हो चुका ख़त्म जब रिश्ता तो मनाने निकले'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यों करलें तो गेयता बढ जायेगी:-</span></p>
<p><span>'ख़त्म जब हो चुका रिश्ता तो मनाने निकले'</span></p>
<p></p>
<p><span>' आज वो लाश मेरी ख़ुद ही <strong>नहाने</strong> निकले'</span></p>
<p>इस मिसरे का भाव स्पष्ट नहीं है ।</p>
<p></p>
<p>' <span>जो कि थकते नहीं थे नाज़ उठाने में मेरे'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को यों करें तो गेयता बढ जायेगी:-</span></p>
<p><span>'जो मेरे नाज़ उठाने में नहीं थकते थे'</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>'<span>बिंदी माथे की, कई रंग की टूटी चूड़ी'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में शिल्प कमज़ोर है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'मुझको देने लगे ग़ैबत की नसीहत भई वाह'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में "ग़ैबत" का क्या अर्थ है?</span></p>
<p><span>बाक़ी शुभ शुभ ।</span></p>
<p></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुखन…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9534242018-10-15T09:46:55.354Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुखन नवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया। आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदा…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9532612018-10-15T09:45:23.409Zराज़ नवादवीhttp://www.openbooksonline.com/profile/RazNawadwi
आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का ह्रदय से आभार।
आदरणीय मुहम्मद आरिफ़ साहब, आदाब। ग़ज़ल में शिरकत और सुखन नवाज़ी का ह्रदय से आभार। आ. भाई राजनवादवी जी, एक और सु…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9533692018-10-15T06:39:35.354Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p><span>आ. भाई राजनवादवी जी, एक और सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।</span></p>
<p><span>आ. भाई राजनवादवी जी, एक और सुंदर गजल हुयी है । हार्दिक बधाई ।</span></p>