Comments - बाज़ (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-28T11:26:16Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A952766&xn_auth=noआदरणीय विजय शंकर जी! रचना ने…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-17:5170231:Comment:9538362018-10-17T02:44:47.925ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आदरणीय विजय शंकर जी! रचना ने आपका ध्यान आकृष्ट किया,इसके लिए दिली आभार व्यक्त करता हूँ।हाँ,बुराई तो बुराई ही होती है,चाहे जिस किसी की तरफ से आरोपित हो।पर इतना जरूर कहना लाजिमी होगा कि बुराई का,खासकर विषय जनित बुराई का तो तत्काल ही प्रतिकार होना चाहिए।प्रतिकार करने के लिए किसी का ग्रीन कार्ड धारक होना लाजिमी नहीं हैं।</p>
<p>आदरणीय विजय शंकर जी! रचना ने आपका ध्यान आकृष्ट किया,इसके लिए दिली आभार व्यक्त करता हूँ।हाँ,बुराई तो बुराई ही होती है,चाहे जिस किसी की तरफ से आरोपित हो।पर इतना जरूर कहना लाजिमी होगा कि बुराई का,खासकर विषय जनित बुराई का तो तत्काल ही प्रतिकार होना चाहिए।प्रतिकार करने के लिए किसी का ग्रीन कार्ड धारक होना लाजिमी नहीं हैं।</p> बहुत बहुत आभार आदरणीया नीताजी।tag:www.openbooksonline.com,2018-10-17:5170231:Comment:9539292018-10-17T02:40:18.893ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीया नीताजी।</p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीया नीताजी।</p> आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, सां…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-16:5170231:Comment:9538342018-10-16T23:09:28.699ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, सांकेतिक रूप में एक सामयिक विषय पर अच्छी एवं सारगर्भित प्रस्तुति। आपका संकेत सही है। सच तो यह है कि प्रायः सामाजिक बुराइयों को जानते भी हैं और सहते भी रहते हैं , और वह भी चुपचाप। कहीं कोई आगे बढ़ कर साहस दिखाता है तो बहुत से लोग उसमें ‘ मैं भी , मैं भी ‘ कहते हुए शामली हो जाते हैं। पर इतने मात्र से सामाजिक बुराइयां दूर होती नहीं हैं। शायद उन्हें दूर करने के लिए और अधिक सशक्त आवाज और विरोध की आवश्यकता होती है। <br/>आपको इस प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर।</p>
<p>आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, सांकेतिक रूप में एक सामयिक विषय पर अच्छी एवं सारगर्भित प्रस्तुति। आपका संकेत सही है। सच तो यह है कि प्रायः सामाजिक बुराइयों को जानते भी हैं और सहते भी रहते हैं , और वह भी चुपचाप। कहीं कोई आगे बढ़ कर साहस दिखाता है तो बहुत से लोग उसमें ‘ मैं भी , मैं भी ‘ कहते हुए शामली हो जाते हैं। पर इतने मात्र से सामाजिक बुराइयां दूर होती नहीं हैं। शायद उन्हें दूर करने के लिए और अधिक सशक्त आवाज और विरोध की आवश्यकता होती है। <br/>आपको इस प्रस्तुति के लिए बधाई, सादर।</p> आज की ज्वलंत समस्या पर प्रकाश…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-16:5170231:Comment:9539162018-10-16T10:54:16.925ZNita Kasarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NitaKasar
<p>आज की ज्वलंत समस्या पर प्रकाश डाला है जो सोशल मीडिया और अख़बारों में प्रमुखता से सामने आई है ।बधाईआपको कथा के लिये आद० मनन कुमार सिंह जी ।</p>
<p>आज की ज्वलंत समस्या पर प्रकाश डाला है जो सोशल मीडिया और अख़बारों में प्रमुखता से सामने आई है ।बधाईआपको कथा के लिये आद० मनन कुमार सिंह जी ।</p> आभारtag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9535332018-10-15T16:29:12.768ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आभार</p>
<p>आभार</p> वाह वाह वाह वाह बहुत बढ़िया।शा…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-15:5170231:Comment:9533832018-10-15T14:18:24.544Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>वाह वाह वाह वाह बहुत बढ़िया।शानदार ।बहुत बहुत दिली बधाई आपको इस रचना के लिए। </p>
<p>वाह वाह वाह वाह बहुत बढ़िया।शानदार ।बहुत बहुत दिली बधाई आपको इस रचना के लिए। </p> आपका शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।tag:www.openbooksonline.com,2018-10-13:5170231:Comment:9530432018-10-13T11:00:20.567ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।</p>
<p>आपका शुक्रिया आदरणीया नीलम जी।</p> आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सु…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-13:5170231:Comment:9529892018-10-13T10:59:33.372ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्र जी।</p>
<p>आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सुरेंद्र जी।</p> आदरणीय मनन कुमार जी, सम-सामयि…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-13:5170231:Comment:9528942018-10-13T10:21:13.791ZNeelam Upadhyayahttp://www.openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p>आदरणीय मनन कुमार जी, सम-सामयिक विषय पर बहुत ही बढ़िया लघुकथा। इशारों - इशारों में ही आज के ज्वलंत विषय को उठा कर उसकी राह को मुकर्रर कर दिया। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आदरणीय मनन कुमार जी, सम-सामयिक विषय पर बहुत ही बढ़िया लघुकथा। इशारों - इशारों में ही आज के ज्वलंत विषय को उठा कर उसकी राह को मुकर्रर कर दिया। हार्दिक बधाई।</p> आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभ…tag:www.openbooksonline.com,2018-10-13:5170231:Comment:9529782018-10-13T07:51:54.810Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। सत्य यहीं है कि जब उनको ऊँचाई चाहिए था तो वे सब कुछ सहन करने को तैयार थी पर जब ऊँचाई मिल गयी तो..... बहुत बढ़िया और अभी सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान पर भी कटाक्ष करती बेहतरीन लघुकथा पर आपको बधाई।</p>
<p>आद0 मनन कुमार सिंह जी सादर अभिवादन। सत्य यहीं है कि जब उनको ऊँचाई चाहिए था तो वे सब कुछ सहन करने को तैयार थी पर जब ऊँचाई मिल गयी तो..... बहुत बढ़िया और अभी सोशल मीडिया पर चल रहे अभियान पर भी कटाक्ष करती बेहतरीन लघुकथा पर आपको बधाई।</p>