Comments - जिगर औ साँस में उतर आई मई (ग़ज़ल, इस्लाह के लिए) - Open Books Online2024-03-29T09:19:00Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A946556&xn_auth=no//और क्षमा निवेदन कि आपका कमे…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-31:5170231:Comment:9469772018-08-31T01:01:44.835ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>//<span>और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया//</span></p>
<p><span>कोई बात नहीं ।</span></p>
<p><span>आपका प्रयोग सराहनीय है,लेकिन मैंने भी आपके प्रति अपना फ़र्ज़ ही निभाया है,ख़ुश रहो, सलामत रहो ।</span></p>
<p>//<span>और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया//</span></p>
<p><span>कोई बात नहीं ।</span></p>
<p><span>आपका प्रयोग सराहनीय है,लेकिन मैंने भी आपके प्रति अपना फ़र्ज़ ही निभाया है,ख़ुश रहो, सलामत रहो ।</span></p> और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-30:5170231:Comment:9471202018-08-30T18:03:21.146ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया</p>
<p>और क्षमा निवेदन कि आपका कमेंट गल्ती से डिलीट हो गया</p> आदरणीय बाऊजी, दरअसल इस प्रयोग…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-30:5170231:Comment:9469712018-08-30T18:02:40.075ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>आदरणीय बाऊजी, दरअसल इस प्रयोग के लिए मेरी कोई ज़िद नहीं है, बस एक प्रयास मात्र है जो निश्चित सिद्धांतों से हर हाल अलग हैं...... इस अलग प्रयोग का एक ही कारण रहा, वो है......जब मैं <strong>इश्क़-है</strong> पढ़ता हूँ तो उसका उच्चारण <strong>इश्क्है</strong> उच्चारित<strong> </strong>होता है।</p>
<p></p>
<p>शेष, यहाँ कोई ज़िद नहीं है.....यह तो एक सीखने के क्रम में बन पड़ी ग़ज़ल है, जरूरी नहीं कि इसे नियमों से ऊपर जाकर स्वीकार करवाने की कोशिश करूँ.......प्रणाम</p>
<p>आदरणीय बाऊजी, दरअसल इस प्रयोग के लिए मेरी कोई ज़िद नहीं है, बस एक प्रयास मात्र है जो निश्चित सिद्धांतों से हर हाल अलग हैं...... इस अलग प्रयोग का एक ही कारण रहा, वो है......जब मैं <strong>इश्क़-है</strong> पढ़ता हूँ तो उसका उच्चारण <strong>इश्क्है</strong> उच्चारित<strong> </strong>होता है।</p>
<p></p>
<p>शेष, यहाँ कोई ज़िद नहीं है.....यह तो एक सीखने के क्रम में बन पड़ी ग़ज़ल है, जरूरी नहीं कि इसे नियमों से ऊपर जाकर स्वीकार करवाने की कोशिश करूँ.......प्रणाम</p> 122 212 122 212
ये शेरो/शायरी…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-30:5170231:Comment:9469492018-08-30T13:55:32.050ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>122 212 122 212</p>
<p>ये शेरो/शायरी/मुझे इश्/क्है भई<br></br>सभी से/आप से/किसी ख़ा/स्से नई</p>
<p>क़लम चिल्/ला उठी/जहाँ के/दर्द से<br></br>कुई तड़/पा निगा/ह नम जो/ हो गई</p>
<p>किसी नें/राष्ट्र को/तरेरी/आँख तो<br></br>ज़िगर औ/साँस में/चढ़ाई/ है मई</p>
<p>सुनो ए/नाज़नीं/घमण्डी/होने का<br></br>इसे इल्/ज़ाम दे/ने को बस/तुम नई</p>
<p>महज़ खट/ती रहीं/वो बच्चों/के लिए<br></br>सभी मा/ओं की उम/र यूँ ही तो गई</p>
<p>आदरणीय बाऊजी आपके समझाने का अंदाज़ बहुत खूब रहा। ईमानदारी से कहता हूँ......आपका कमेंट पढ़ के पंकज का ज़िद्दी मन,…</p>
<p>122 212 122 212</p>
<p>ये शेरो/शायरी/मुझे इश्/क्है भई<br/>सभी से/आप से/किसी ख़ा/स्से नई</p>
<p>क़लम चिल्/ला उठी/जहाँ के/दर्द से<br/>कुई तड़/पा निगा/ह नम जो/ हो गई</p>
<p>किसी नें/राष्ट्र को/तरेरी/आँख तो<br/>ज़िगर औ/साँस में/चढ़ाई/ है मई</p>
<p>सुनो ए/नाज़नीं/घमण्डी/होने का<br/>इसे इल्/ज़ाम दे/ने को बस/तुम नई</p>
<p>महज़ खट/ती रहीं/वो बच्चों/के लिए<br/>सभी मा/ओं की उम/र यूँ ही तो गई</p>
<p>आदरणीय बाऊजी आपके समझाने का अंदाज़ बहुत खूब रहा। ईमानदारी से कहता हूँ......आपका कमेंट पढ़ के पंकज का ज़िद्दी मन, तपाक से बोल उठा, इसकी तकती'अ करते हैं। लेकिन जैसे ही काम शुरू हुआ, अधिगमकर्ता यानी lerner को ख़ुद ब ख़ुद महसूस हो गया कि.............</p>
<p><strong>1. बह्र से खारिज़ हैं, ग़ज़ल के अधिकांश शेर</strong><br/><strong>2. कोई भी ग़ज़ल पोस्ट करने से पहले पंकज....तकती'अ बहुत ज़रूरी है।</strong></p>
<p>बहुत सारा आभार और विनयवत प्रणाम........ओबीओ मंच यूँ ही आपके बिना अधूरा थोड़े ही लगता है।</p>
<p><br/>पंकज</p> अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-30:5170231:Comment:9467782018-08-30T09:10:16.618ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,इन अशआर की दिये गए अरकान से तक़ती'अ करके देखें,फिर बतएँ कि क्या आप संतुष्ट हैं?</p>
<p>अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,इन अशआर की दिये गए अरकान से तक़ती'अ करके देखें,फिर बतएँ कि क्या आप संतुष्ट हैं?</p> आदरणीय रवि सर, मत्ला टाइप किय…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-29:5170231:Comment:9466292018-08-29T12:02:38.138ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>आदरणीय रवि सर, मत्ला टाइप किये जाने से रह गया, क्षमा चाहता हूँ.....</p>
<p>आदरणीय रवि सर, मत्ला टाइप किये जाने से रह गया, क्षमा चाहता हूँ.....</p> आदरणीय पंकज जी इन अशआर से संद…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-29:5170231:Comment:9465692018-08-29T10:50:52.527ZRavi Shuklahttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय पंकज जी इन अशआर से संदेश तो पहुंच रहा है किंतु किस विधा में इसे लिखा है यह स्पष्ट नहीं है बहर आपने लिखी है और अगर ग़ज़ल की श्रेणी में है तो मतला होना चाहिए मैं अभी गजल के मतले तक नहीं पहुंच सका हूं कृपया स्पष्ट करें। पुनः बधाई</p>
<p>आदरणीय पंकज जी इन अशआर से संदेश तो पहुंच रहा है किंतु किस विधा में इसे लिखा है यह स्पष्ट नहीं है बहर आपने लिखी है और अगर ग़ज़ल की श्रेणी में है तो मतला होना चाहिए मैं अभी गजल के मतले तक नहीं पहुंच सका हूं कृपया स्पष्ट करें। पुनः बधाई</p>