Comments - नसीहत को गिनिए नहीं धमकियों में - अरुण कुमार निगम - Open Books Online2024-03-28T23:05:20Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A943175&xn_auth=noआदरणीय अरुण जी गजल के लिए ब…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-06:5170231:Comment:9434802018-08-06T18:21:04.483ZRavi Shuklahttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p><span style="font-size: 12pt;">आदरणीय अरुण जी गजल के लिए बघाई कुबूल करें गुणी जन कह ही चुके हे बाकी बातें । सादर </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;">आदरणीय अरुण जी गजल के लिए बघाई कुबूल करें गुणी जन कह ही चुके हे बाकी बातें । सादर </span></p> वाह निगम साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-06:5170231:Comment:9435772018-08-06T17:29:55.596ZNaveen Mani Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/NaveenManiTripathi
<p>वाह निगम साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई । बधाई आपको ।</p>
<p>मगर आप भी खो गए जातियों में ।</p>
<p>वाह निगम साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई । बधाई आपको ।</p>
<p>मगर आप भी खो गए जातियों में ।</p> जनाब अरुण कुमार साहिब, ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-06:5170231:Comment:9435712018-08-06T16:28:21.320ZTasdiq Ahmed Khanhttp://www.openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>जनाब अरुण कुमार साहिब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l मुहतरम समर साहिब के मशवरे पर ग़ौर कीजियेगा I शेर 2 के सानी मिसरे में सदा की जगह मगर ज़्यादा सही लग रहा है , देखिएगा </p>
<p>जनाब अरुण कुमार साहिब, ग़ज़ल की अच्छी कोशिश है, मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l मुहतरम समर साहिब के मशवरे पर ग़ौर कीजियेगा I शेर 2 के सानी मिसरे में सदा की जगह मगर ज़्यादा सही लग रहा है , देखिएगा </p> जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2018-08-05:5170231:Comment:9433872018-08-05T09:48:02.686ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p>'<span>मगर आप भी ढल गए मूर्तियों में'</span></p>
<p><span>ये मिसरा लय में नहीं देखियेगा 'मूर्तियों'?</span></p>
<p></p>
<p>' <span>पलक के झपकते, यूँ ही चुटकियों में'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए- तनाफ़ुर है, देखें 'पलक के'</span></p>
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<p>जनाब अरुण कुमार निगम जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p>'<span>मगर आप भी ढल गए मूर्तियों में'</span></p>
<p><span>ये मिसरा लय में नहीं देखियेगा 'मूर्तियों'?</span></p>
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<p>' <span>पलक के झपकते, यूँ ही चुटकियों में'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में ऐब-ए- तनाफ़ुर है, देखें 'पलक के'</span></p>
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<p></p> वाहःहः खूबtag:www.openbooksonline.com,2018-08-05:5170231:Comment:9435082018-08-05T07:33:28.311Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>वाहःहः खूब</p>
<p>वाहःहः खूब</p>