Comments - तसल्ली (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-28T09:17:50Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A940648&xn_auth=noआदरणीय मुज़फ्फर इक़बाल साहब, न…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-23:5170231:Comment:9410712018-07-23T08:57:18.486ZNeelam Upadhyayahttp://www.openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p>आदरणीय मुज़फ्फर इक़बाल साहब, नमस्कार। समाज में बुजुर्गों के एकाकीपन का आभास दिलाती सुन्दर रचना की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई । </p>
<p>आदरणीय मुज़फ्फर इक़बाल साहब, नमस्कार। समाज में बुजुर्गों के एकाकीपन का आभास दिलाती सुन्दर रचना की प्रस्तुति । हार्दिक बधाई । </p> बुजुर्गों की समाज की हालत बहु…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-23:5170231:Comment:9411562018-07-23T08:37:51.495Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>बुजुर्गों की समाज की हालत बहुत ही दयनीय हैं, समस्या का समाधान सिर्फ माता पिता ही अपने आपको धैर्य की गठरी बांधकर आभासी दुनियां बनाकर जिए.समाज की अनगिनत समस्याओं में से एक समस्या यह भी हैं,बेहतरीन रचना द्वारा प्रस्तुत करना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।</p>
<p>बुजुर्गों की समाज की हालत बहुत ही दयनीय हैं, समस्या का समाधान सिर्फ माता पिता ही अपने आपको धैर्य की गठरी बांधकर आभासी दुनियां बनाकर जिए.समाज की अनगिनत समस्याओं में से एक समस्या यह भी हैं,बेहतरीन रचना द्वारा प्रस्तुत करना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।</p> जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-22:5170231:Comment:9409622018-07-22T06:23:14.505ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब मुज़फ़्फ़र इक़बाल साहिब आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p> हमारे समाज के बुज़ुर्ग मां-बाप…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-22:5170231:Comment:9412212018-07-22T03:31:14.519ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>हमारे समाज के बुज़ुर्ग मां-बाप के एक अहम मसले और आभासी तसल्ली को उभारती विचारोत्तेजक व सामाजिक सरोकार की बहुत बढ़िया रचना के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब <strong>मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी</strong> साहिब। शुरू के भाग मेंं कुुुछ शब्द कम किये जाने की गुंजााइश लगती है।सादर।</p>
<p>हमारे समाज के बुज़ुर्ग मां-बाप के एक अहम मसले और आभासी तसल्ली को उभारती विचारोत्तेजक व सामाजिक सरोकार की बहुत बढ़िया रचना के लिए बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब <strong>मुज़फ़्फ़र इक़बाल सिद्दीक़ी</strong> साहिब। शुरू के भाग मेंं कुुुछ शब्द कम किये जाने की गुंजााइश लगती है।सादर।</p> बहुत बहुत आभार ,आदरणीय tag:www.openbooksonline.com,2018-07-21:5170231:Comment:9408792018-07-21T00:47:27.077ZMUZAFFAR IQBAL SIDDIQUIhttp://www.openbooksonline.com/profile/MUZAFFARIQBALSIDDIQUI
<p><span>बहुत बहुत आभार ,आदरणीय </span></p>
<p><span>बहुत बहुत आभार ,आदरणीय </span></p> सुन्दर सार्थक रचना ने लिये…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-20:5170231:Comment:9407642018-07-20T07:11:07.434ZShyam Narain Vermahttp://www.openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
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<tbody><tr><td width="576">सुन्दर सार्थक रचना ने लिये आपको बधाई ….</td>
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<tbody><tr><td width="576">सुन्दर सार्थक रचना ने लिये आपको बधाई ….</td>
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