Comments - जिंदगी की उधेड़बुन (लघुकथा ) - Open Books Online2024-03-29T13:41:34Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A938876&xn_auth=noबहुत ही संवेदनशील लघु कथा हुई…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-13:5170231:Comment:9400452018-07-13T12:09:19.297Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत ही संवेदनशील लघु कथा हुई आदरणीय..लेकिन आखरी दो पंक्तियों में कसावट की कमी लगी..</p>
<p>बहुत ही संवेदनशील लघु कथा हुई आदरणीय..लेकिन आखरी दो पंक्तियों में कसावट की कमी लगी..</p> जनाब मोहन जी आदाब,लघुकथा का प…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-11:5170231:Comment:9396292018-07-11T05:55:19.261ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मोहन जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब मोहन जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
सुबह आठ बजे से उसका साईकल…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-09:5170231:Comment:9389472018-07-09T13:05:54.280Zमोहन बेगोवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrMohanlal
<p> </p>
<p>सुबह आठ बजे से उसका साईकल इस एवन्यु में घूम रहा था । उसके भोंपू की आवाज़ एवन्यु के हर कोने तक पहुंच चुकी थी। <br></br>मगर न कोठी से कोई भी औरत न ही माँ के साथ बच्चा बाहर आया। उसके साईकल पर लगे बड़े, छोटे गुबारे, छोटी बड़ी कार या कोई बजाने वाले खिलौने सभी उस की तरफ झाँक रहे थे । दो घंटे हो गए थे इस एवन्यु दाखल हुए। साईकल की रफ्तार भी धीमी हो चली थी। चेहरा उदास और आँखों में नमी बढने लगी अचानक ही उस ने इक कोठी के आगे साईकल आ लगाई, इक बार बेल्ल बजाई कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर बेल्ल बजाई।…</p>
<p> </p>
<p>सुबह आठ बजे से उसका साईकल इस एवन्यु में घूम रहा था । उसके भोंपू की आवाज़ एवन्यु के हर कोने तक पहुंच चुकी थी। <br/>मगर न कोठी से कोई भी औरत न ही माँ के साथ बच्चा बाहर आया। उसके साईकल पर लगे बड़े, छोटे गुबारे, छोटी बड़ी कार या कोई बजाने वाले खिलौने सभी उस की तरफ झाँक रहे थे । दो घंटे हो गए थे इस एवन्यु दाखल हुए। साईकल की रफ्तार भी धीमी हो चली थी। चेहरा उदास और आँखों में नमी बढने लगी अचानक ही उस ने इक कोठी के आगे साईकल आ लगाई, इक बार बेल्ल बजाई कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर बेल्ल बजाई। थोड़ी देर बाद इक बाऊ जी बाहर आये। <br/>“सर जी, आप कोई खिलौना खरीद लें, कोई ग्राहक अभी नहीं मिला, दो घंटे हो गए हैं।", खिलौने बेचने वाले बच्चे ने कहा ।<br/>“मगर हमारे तो कोई बच्चा ही नहीं किस लिए हम लेंगे, तब बाऊ जी ये कह गेट बंद करने लगे। <br/>“सर जी, खरीद लीजिए न, मेरी माँ बीमार है, बच्चे ने फिर कहा ।“ <br/> बाऊ जी का ध्यान घर में काम करने वाली के बच्चे की तरफ गया और धीरे से गेट बंद किये बिना वह अंदर दाखिल हुए और थोड़ी देर बाद बाऊ जी ने उस के हाथ में कुछ पकड़ा दिया। <br/>“ये क्या, बाऊ जी ने खुद से सवाल किया, क्या ऐसे हल हो जायेगा उसकी समस्या का।“<br/>बच्चा साईकल चला आगे बढ़ गया और बाऊ जी इसी उधेड़बुन गुम हुआ उसके साईकल चलाते पैरों की तरफ देखता रहा।</p> बच्चे के स्वाभिमान की रक्षा क…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-09:5170231:Comment:9389442018-07-09T09:47:42.719Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>बच्चे के स्वाभिमान की रक्षा के लिए और उसकी सहायता करने के लिए खिलौना खरीदना फिजूल था तो घर का कुछ काम कराकर ,उसकी सहायता की जा सकती थी.,वैसे कहानी बहुत कुछ आज की व्यवस्था के नजदीक दिखाई देती हैं.उम्दा रचना के लिए आर्थिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।</p>
<p>बच्चे के स्वाभिमान की रक्षा के लिए और उसकी सहायता करने के लिए खिलौना खरीदना फिजूल था तो घर का कुछ काम कराकर ,उसकी सहायता की जा सकती थी.,वैसे कहानी बहुत कुछ आज की व्यवस्था के नजदीक दिखाई देती हैं.उम्दा रचना के लिए आर्थिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।</p> हाथ में कुछ पकड़ा देने से त…tag:www.openbooksonline.com,2018-07-09:5170231:Comment:9391152018-07-09T07:33:18.996ZNeelam Upadhyayahttp://www.openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<p> हाथ में कुछ पकड़ा देने से तो बच्चे के स्वाभिमान की रक्षा नहीं हुई । हाँ, कुछ सहायता अवश्य हो जाएगी, उसकी माँ के इलाज में। लेकिन मेरे विचार से अच्छा होता अगर बच्चे से कोई खिलौना खरीद कर "कुछ" दिया गया होता । अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। </p>
<p> हाथ में कुछ पकड़ा देने से तो बच्चे के स्वाभिमान की रक्षा नहीं हुई । हाँ, कुछ सहायता अवश्य हो जाएगी, उसकी माँ के इलाज में। लेकिन मेरे विचार से अच्छा होता अगर बच्चे से कोई खिलौना खरीद कर "कुछ" दिया गया होता । अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। </p>