Comments - सब सही पर कुछ भी सही नहीं है - डॉo विजय शंकर - Open Books Online2024-03-29T10:22:52Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A914484&xn_auth=noआदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-24:5170231:Comment:9154642018-02-24T00:27:55.108ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपकी सुखद अभिव्यक्ति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p>
<p>आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपकी सुखद अभिव्यक्ति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p> आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-24:5170231:Comment:9153852018-02-24T00:24:57.396ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपकी सुखद अभिव्यक्ति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p>
<p>आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी , आपकी सुखद अभिव्यक्ति के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p> आदरणीय सुश्री रक्षिता जी , आप…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-23:5170231:Comment:9151452018-02-23T05:31:17.626ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय सुश्री रक्षिता जी , आपके सुझाव के लिए आभार , आपने कविता को पूर्ण मनोयोग से पढ़ा इसके लिए भी मैं आपका आभारी हूँ।निवेदन है कि मैं यह संकेत देना चाहता हूँ कि ऊँट सामने है पर आप उसे दिखावे के लिए हंडिया में ढूंढते हैं , यह आपकी त्रुटि या भ्रम नहीं वरन सच है , यह आप जानबूझ कर करते हैं. अतः इसे सही लिखा गया है। यहां पर इस पर बल नहीं दिया गया कि ऐसा करना गलत है , वरन इस पर बल दिया गया कि आप यही कर रहे हैं , आप इसे स्वीकार करें कि यह आप जानबूझ ऐसा कर रहें हैं। इसलिए ऐसा लिखा गया है। संभवतः आप…</p>
<p>आदरणीय सुश्री रक्षिता जी , आपके सुझाव के लिए आभार , आपने कविता को पूर्ण मनोयोग से पढ़ा इसके लिए भी मैं आपका आभारी हूँ।निवेदन है कि मैं यह संकेत देना चाहता हूँ कि ऊँट सामने है पर आप उसे दिखावे के लिए हंडिया में ढूंढते हैं , यह आपकी त्रुटि या भ्रम नहीं वरन सच है , यह आप जानबूझ कर करते हैं. अतः इसे सही लिखा गया है। यहां पर इस पर बल नहीं दिया गया कि ऐसा करना गलत है , वरन इस पर बल दिया गया कि आप यही कर रहे हैं , आप इसे स्वीकार करें कि यह आप जानबूझ ऐसा कर रहें हैं। इसलिए ऐसा लिखा गया है। संभवतः आप सहमत होंगी। आपकी बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।</p> आदरणीय विजय जी नमस्कार
बहुत स…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-23:5170231:Comment:9151262018-02-23T03:08:15.630Zरक्षिता सिंहhttp://www.openbooksonline.com/profile/RakshitaSingh
<p>आदरणीय विजय जी नमस्कार</p>
<p>बहुत सुन्दर रचना, परन्तु अन्तिम पंक्ति में " यह भी सही है, के स्थान पर यह भी सही नही है, ज्यादा बेहतर है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p>
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<p>आदरणीय विजय जी नमस्कार</p>
<p>बहुत सुन्दर रचना, परन्तु अन्तिम पंक्ति में " यह भी सही है, के स्थान पर यह भी सही नही है, ज्यादा बेहतर है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।</p>
<p></p> आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब ,…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9147992018-02-22T16:22:09.475ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p>
<p>आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p> आद0 विजय जी सादर अभिवादन। विच…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9150502018-02-22T12:56:43.400Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
<p>आद0 विजय जी सादर अभिवादन। विचारोत्तेजक रचना के लिए दिल से बधाई देता हूँ। सादर</p>
<p>आद0 विजय जी सादर अभिवादन। विचारोत्तेजक रचना के लिए दिल से बधाई देता हूँ। सादर</p> मुहतरम जनाब विजय साहिब , ज़हन…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9150232018-02-22T08:28:50.318ZTasdiq Ahmed Khanhttp://www.openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मुहतरम जनाब विजय साहिब , ज़हन में सवाल उठाती सुन्दर रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।</p>
<p>मुहतरम जनाब विजय साहिब , ज़हन में सवाल उठाती सुन्दर रचना हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।</p> आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्का…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9148202018-02-22T00:51:31.627ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आप पुनः स्वस्थ होकर मंच पर आये , बहुत खुशी हुयी। आप स्वस्थ रहें और आते रहें , मंच और हम सब लाभान्वित होते रहें। आपसे रोज ही कुछ न कुछ सीखने को मिलता है , मिलता रहे। <br/>आपको कविता पसंद आई , आभार , ह्रदय से। प्रश्न सोचने पर विवश करते हैं , सच है। बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आप पुनः स्वस्थ होकर मंच पर आये , बहुत खुशी हुयी। आप स्वस्थ रहें और आते रहें , मंच और हम सब लाभान्वित होते रहें। आपसे रोज ही कुछ न कुछ सीखने को मिलता है , मिलता रहे। <br/>आपको कविता पसंद आई , आभार , ह्रदय से। प्रश्न सोचने पर विवश करते हैं , सच है। बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।</p> आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9148192018-02-22T00:43:48.660ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपकी शुभकामनाओं के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p>
<p>आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपकी शुभकामनाओं के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।</p> आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , आपकी…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9148172018-02-22T00:43:30.704ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p><br/>आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , आपकी विचार वान टिप्पणी के लिए आभार एवं बधाई के लिए धन्यवाद। सच किंचित कुछ नहीं माँगता है। सच सच होता है और नहीं होता है फिर भी मान लिया जाता है की है वह मिथ्या या झूठ होता है जो स्वयं में होता ही नहीं। वह क्या न मांग ले ? विषय चर्चा का है , सादर।</p>
<p><br/>आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , आपकी विचार वान टिप्पणी के लिए आभार एवं बधाई के लिए धन्यवाद। सच किंचित कुछ नहीं माँगता है। सच सच होता है और नहीं होता है फिर भी मान लिया जाता है की है वह मिथ्या या झूठ होता है जो स्वयं में होता ही नहीं। वह क्या न मांग ले ? विषय चर्चा का है , सादर।</p>