Comments - तेरे आने से धुंआ छँटना ही था--- पंकज कुमार मिश्र, गजल - Open Books Online2024-03-29T08:58:25Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A895313&xn_auth=noआदरणीय ब्रजेश जी आपने सही पकड़…tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8954622017-11-06T16:02:27.823ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय ब्रजेश जी आपने सही पकड़ा है, उक्त शेर को जल्द सुधारूँगा
आदरणीय ब्रजेश जी आपने सही पकड़ा है, उक्त शेर को जल्द सुधारूँगा बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय...इस…tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8952812017-11-06T15:58:53.643Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय...इसे समीक्षात्मक टिप्पड़ी कतई न समझें..ग़ज़ल में दो काफिये निभाए गए हैं लेकिन तीसरा शेर भिन्न हो रहा है..क्या मैं सही हूँ..??सादर
बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय...इसे समीक्षात्मक टिप्पड़ी कतई न समझें..ग़ज़ल में दो काफिये निभाए गए हैं लेकिन तीसरा शेर भिन्न हो रहा है..क्या मैं सही हूँ..??सादर आदरणीय बाऊजी आपके सुझाव हमेशा…tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8954472017-11-06T12:43:23.767ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय बाऊजी आपके सुझाव हमेशा ही उचित होते हैं, मुझे सीखने में सहायता प्रदान करते हैं।<br />
<br />
आपने सही कहा, दोष है; मैं सुधारता हूँ, जल्द ही।<br />
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इस ग़ज़ल में एक खास पैटर्न है, एक बार उस पर भी वाद प्रदान करें,<br />
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इस ग़ज़ल में काफ़िया नहीं, काफ़िये हैं।।।<br />
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सादर
आदरणीय बाऊजी आपके सुझाव हमेशा ही उचित होते हैं, मुझे सीखने में सहायता प्रदान करते हैं।<br />
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आपने सही कहा, दोष है; मैं सुधारता हूँ, जल्द ही।<br />
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इस ग़ज़ल में एक खास पैटर्न है, एक बार उस पर भी वाद प्रदान करें,<br />
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इस ग़ज़ल में काफ़िया नहीं, काफ़िये हैं।।।<br />
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सादर आदरणीय आरिफ़ सर सादर आभार।tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8952722017-11-06T12:40:51.718ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
आदरणीय आरिफ़ सर सादर आभार।
आदरणीय आरिफ़ सर सादर आभार। अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,…tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8955262017-11-06T12:02:11.812ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
'ख़्वाहिशें हैं जब मेरी तुमसे ही तो<br />
लब से तेरे नाम को रटना ही था'<br />
इस शैर में शुतरगुर्बा है, इसे यूँ कर सकते हैं :-<br />
'ख़्वाहिशें हैं जब मेरी तुझसे ही तो<br />
मुझको तेरे नाम को रटना ही था'
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।<br />
'ख़्वाहिशें हैं जब मेरी तुमसे ही तो<br />
लब से तेरे नाम को रटना ही था'<br />
इस शैर में शुतरगुर्बा है, इसे यूँ कर सकते हैं :-<br />
'ख़्वाहिशें हैं जब मेरी तुझसे ही तो<br />
मुझको तेरे नाम को रटना ही था' शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबार…tag:www.openbooksonline.com,2017-11-06:5170231:Comment:8954182017-11-06T02:37:27.718ZMohammed Arifhttp://www.openbooksonline.com/profile/MohammedArif
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय पंकज जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय पंकज जी । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।