Comments - हवा में - डॉo विजय शंकर - Open Books Online2024-03-28T18:27:08Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A891551&xn_auth=noविशद व्याख्या के लिए आभार , आ…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-31:5170231:Comment:8935352017-10-31T01:57:33.594ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
विशद व्याख्या के लिए आभार , आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी , धन्यवाद , सादर।
विशद व्याख्या के लिए आभार , आदरणीय शेख़ शहजाद उस्मानी जी , धन्यवाद , सादर। समझदार लोगों, चिंतित लोगों की…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-30:5170231:Comment:8934402017-10-30T17:59:18.167ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
समझदार लोगों, चिंतित लोगों की सोच का प्रतिनिधित्व करती बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी। दुनिया के व्यावसायीकरण/वैश्वीकरण के दौर में लालची लोग विशेष रूप से मानवतावादी संस्कृति की जड़ें कमज़ोर कर रहे हैं/काट रहे हैं, पशुता और शैतानियत की ओर बढ़ रहे हैं। समय रहते सबको जागरूक करने के लिए इस तरह के साहित्यिक सरल सृजन की नितांत आवश्यकता है। सादर।
समझदार लोगों, चिंतित लोगों की सोच का प्रतिनिधित्व करती बेहतरीन रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी। दुनिया के व्यावसायीकरण/वैश्वीकरण के दौर में लालची लोग विशेष रूप से मानवतावादी संस्कृति की जड़ें कमज़ोर कर रहे हैं/काट रहे हैं, पशुता और शैतानियत की ओर बढ़ रहे हैं। समय रहते सबको जागरूक करने के लिए इस तरह के साहित्यिक सरल सृजन की नितांत आवश्यकता है। सादर। आभार , आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-29:5170231:Comment:8928552017-10-29T13:43:59.118ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
आभार , आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी , सादर।
आभार , आदरणीय ब्रजेश कुमार ब्रज जी , सादर। बहुत सटीक और सार्थक कविता हुई…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-29:5170231:Comment:8929112017-10-29T05:42:19.248Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
बहुत सटीक और सार्थक कविता हुई आदरणीय डा. साहब
बहुत सटीक और सार्थक कविता हुई आदरणीय डा. साहब आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्र जी ,…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8920632017-10-26T14:59:33.155ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्र जी , आपकी सारपूर्ण विशद टिप्पणी के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर।
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्र जी , आपकी सारपूर्ण विशद टिप्पणी के लिए आभार , बधाई के लिए धन्यवाद , सादर। आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएं चि…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8919582017-10-26T12:24:13.371ZDr Ashutosh Mishrahttp://www.openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएं चिंतन से भरपूर होती हैं और जहाँ चिंतन है वहां ऐसी ताजगी भी अपेक्षित है।।आपकी रचना उसपर आपकी और आदरणीय समर सर आरिफ जी और सौरभ सर की प्रतिक्रियाओं से बहुत कुछ नया सीखने को मिला रचना पर हरदुक बधाई स्वीकार करें सादर
आदरणीय विजय सर आपकी रचनाएं चिंतन से भरपूर होती हैं और जहाँ चिंतन है वहां ऐसी ताजगी भी अपेक्षित है।।आपकी रचना उसपर आपकी और आदरणीय समर सर आरिफ जी और सौरभ सर की प्रतिक्रियाओं से बहुत कुछ नया सीखने को मिला रचना पर हरदुक बधाई स्वीकार करें सादर ऐसी भूल कई जगह पर हुई है. कई…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8919322017-10-26T05:20:21.727ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>ऐसी भूल कई जगह पर हुई है. कई पुस्तकों में अनंत ही कर दिया गया है. लेकिन लेखक ने अपना नाम अभिमन्यु अनत ही मान्य करवाया है. अतः यह जानकारी साझा कर लिया.</p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
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<p>ऐसी भूल कई जगह पर हुई है. कई पुस्तकों में अनंत ही कर दिया गया है. लेकिन लेखक ने अपना नाम अभिमन्यु अनत ही मान्य करवाया है. अतः यह जानकारी साझा कर लिया.</p>
<p>शुभेच्छाएँ </p>
<p></p> आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब, आप…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8918902017-10-26T05:04:55.261ZMohammed Arifhttp://www.openbooksonline.com/profile/MohammedArif
<p>आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,<br/> आपके द्वारा मॉरीशस के कवि, लेखक के नाम के संदर्भ में अवगत करवाया । मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । लेकिन मैं ध्यानाकर्षण करवाना चाहता हूँ कि:-<br/> (1) म.प्र.की पाठ्यपुस्तक ( म.प्र. राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा प्रकाशित ) की कक्षा 12 वीं में शामिल पाठ "कुछ कविताएँ"पेज नं.74 पर लेखक का नाम पाठ के अंत में "अभिमन्यु अनंत" ही मुद्रित है । सादर ।</p>
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<p>आदरणीय सौरभ पांडे जी आदाब,<br/> आपके द्वारा मॉरीशस के कवि, लेखक के नाम के संदर्भ में अवगत करवाया । मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई । लेकिन मैं ध्यानाकर्षण करवाना चाहता हूँ कि:-<br/> (1) म.प्र.की पाठ्यपुस्तक ( म.प्र. राज्य शिक्षा केंद्र भोपाल द्वारा प्रकाशित ) की कक्षा 12 वीं में शामिल पाठ "कुछ कविताएँ"पेज नं.74 पर लेखक का नाम पाठ के अंत में "अभिमन्यु अनंत" ही मुद्रित है । सादर ।</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8918852017-10-26T03:13:59.323ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना आपको पसंद आई, आपका आभार। आपसे पूर्णतया सहमत हूँ , बात संस्कृति और तथाकथित उन्नति के सभी मार्गों पर चलने की है। मैंने बहुत गौर से देखा है , दुनिया में लोग बहुत आधुनिक हैं , पर अपने सांस्कृतिक मूल्यों , चाहे वे कितने भी पुरातन क्यों न हों , से समझौता नहीं करते हैं , कम से कम दूसरों को देख कर तो बिलकुल नहीं। हम तो शायद अपनी संस्कृति के मूल तत्वों को जानते भी नहीं। फिर तजते जा रहे हैं , मजाक भी बना रहे हैं। आपकी बधाई धन्यवाद , सादर।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , रचना आपको पसंद आई, आपका आभार। आपसे पूर्णतया सहमत हूँ , बात संस्कृति और तथाकथित उन्नति के सभी मार्गों पर चलने की है। मैंने बहुत गौर से देखा है , दुनिया में लोग बहुत आधुनिक हैं , पर अपने सांस्कृतिक मूल्यों , चाहे वे कितने भी पुरातन क्यों न हों , से समझौता नहीं करते हैं , कम से कम दूसरों को देख कर तो बिलकुल नहीं। हम तो शायद अपनी संस्कृति के मूल तत्वों को जानते भी नहीं। फिर तजते जा रहे हैं , मजाक भी बना रहे हैं। आपकी बधाई धन्यवाद , सादर। आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-26:5170231:Comment:8920322017-10-26T03:13:13.010ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना की इतनी विशद विवेचना के बहुत बहुत आभार। हमारा अपने घर और संस्कृति दोनों के प्रति जो आज के युग का दृष्टिकोण है वह गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है। घर और संस्कृति का निर्माण प्रकृति पर आधारित होता है , दूसरों को देख कर नहीं। हमारी जलवायु के अनुरूप हवादार , cross veltiletion वाले मकान बनना लगभग बंद हो गए , बिल्डरों के बनाये मकान उसकी आमदनी को उछाल देने के नियमों के अंतर्गत बनाये जाते हैं। बिजली आती नहीं , लोग पूरा घर ए सी कटवा नहीं सकते , घुटन तो होगी ही। नये मकानों में…
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी , रचना की इतनी विशद विवेचना के बहुत बहुत आभार। हमारा अपने घर और संस्कृति दोनों के प्रति जो आज के युग का दृष्टिकोण है वह गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण है। घर और संस्कृति का निर्माण प्रकृति पर आधारित होता है , दूसरों को देख कर नहीं। हमारी जलवायु के अनुरूप हवादार , cross veltiletion वाले मकान बनना लगभग बंद हो गए , बिल्डरों के बनाये मकान उसकी आमदनी को उछाल देने के नियमों के अंतर्गत बनाये जाते हैं। बिजली आती नहीं , लोग पूरा घर ए सी कटवा नहीं सकते , घुटन तो होगी ही। नये मकानों में रोशन दान होते ही नहीं , गर्म और दूषित हवा बाहर निकल पाती ही नहीं। जहां घर का केंद्र आँगन हुआ करता था वहां आँगन रहित मकान की श्रृंखला उदित हो रही है। तर्क यह दिया जाता है , यही आधुनिक पैटर्न है , यूरोप से लिया गया है। यह यूरोप के लिए अच्छा है , वहां ठण्ड की वजह से अधिक खुले घर नहीं रख सकते , यह हमारी आवश्यकता नहीं है , पर बिल्डर को लाभदायक है। प्रभाव सामने है। ऐसे मकान रोग और उमस ही दे रहे हैं। पर मूल कारण यह है कि अर्थतंत्र सर्वोपरि होता जा रहा है , जीवन के आधारिक तत्व गौण होते जा रहे हैं।<br />
श्री अभिमन्यु अनत की कविता को प्रस्तुत करने के लिए आभार. बधाई हेतु धन्यवाद , सादर।