Comments - ग़ज़ल - सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहीं - Open Books Online2024-03-29T07:40:25Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A890554&xn_auth=noआदरणीय सुरेन्द्र जी,
उदार सरा…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-23:5170231:Comment:8913792017-10-23T08:06:54.761ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय सुरेन्द्र जी,</p>
<p>उदार सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय सुरेन्द्र जी,</p>
<p>उदार सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p> आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवाद…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-23:5170231:Comment:8913772017-10-23T07:54:47.108Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन।<br />
जब भी जलाओ तुम दिए, अपनी मुड़ेर पर कभी<br />
सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहीं । वाह! वाह!! बहुत ही बढ़िया शैर।।<br />
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन।<br />
जब भी जलाओ तुम दिए, अपनी मुड़ेर पर कभी<br />
सोचो कुछ उनके बारे में, जिनका दिया जला नहीं । वाह! वाह!! बहुत ही बढ़िया शैर।।<br />
शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें आदरणीय बृजेश जी,
आपकी उदार प्…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-22:5170231:Comment:8913222017-10-22T02:46:07.456ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय बृजेश जी,</p>
<p>आपकी उदार प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय बृजेश जी,</p>
<p>आपकी उदार प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p> आदरणीय राम अवध जी,
आभार आपका,…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-22:5170231:Comment:8911642017-10-22T02:44:03.864ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय राम अवध जी,</p>
<p>आभार आपका, गलती किसी से भी हो सकती है. ये कोई बड़ी बात नहीं है.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय राम अवध जी,</p>
<p>आभार आपका, गलती किसी से भी हो सकती है. ये कोई बड़ी बात नहीं है.</p>
<p>सादर </p> क्या कहने आदरणीय बहुत शानदार…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8908872017-10-21T05:27:28.392Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
क्या कहने आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल कही है..सादर
क्या कहने आदरणीय बहुत शानदार ग़ज़ल कही है..सादर आप सही हैं मैने बह्र को समझने…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8909772017-10-21T05:10:31.637ZRam Awadh VIshwakarmahttp://www.openbooksonline.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आप सही हैं मैने बह्र को समझने में गल्ती की। ज्ञान वर्धन के लिये शुक्रिया।
आप सही हैं मैने बह्र को समझने में गल्ती की। ज्ञान वर्धन के लिये शुक्रिया। आदरणीय राम अवध जी,
आपने गलत अ…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8908052017-10-21T03:31:19.140ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय राम अवध जी,</p>
<p>आपने गलत अरकान पर ग़ज़ल को देखने की कोशिश की है. इस ग़ज़ल की बहर 'रजज़ मुसम्मन मतवी मख़्बून' (<span>मुफ्तइलुन मुफाइलुन मुफ्तइलुन मुफाइलुन) है. ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल 'दिल ही तो है न संगो-खिश्त दर्द से भर न आए क्यों ' इसी बहर में है. इस बहर के अरकान के हिसाब से देखें मिसरे बिलकुल ठीक है.</span></p>
<p>प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय राम अवध जी,</p>
<p>आपने गलत अरकान पर ग़ज़ल को देखने की कोशिश की है. इस ग़ज़ल की बहर 'रजज़ मुसम्मन मतवी मख़्बून' (<span>मुफ्तइलुन मुफाइलुन मुफ्तइलुन मुफाइलुन) है. ग़ालिब की मशहूर ग़ज़ल 'दिल ही तो है न संगो-खिश्त दर्द से भर न आए क्यों ' इसी बहर में है. इस बहर के अरकान के हिसाब से देखें मिसरे बिलकुल ठीक है.</span></p>
<p>प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर </p> आदरणीय सलीम साहब,
प्रशंसा के…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-21:5170231:Comment:8910152017-10-21T03:20:01.574ZAjay Tiwarihttp://www.openbooksonline.com/profile/AjayTiwari
<p>आदरणीय सलीम साहब,</p>
<p>प्रशंसा के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय सलीम साहब,</p>
<p>प्रशंसा के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद.</p>
<p>सादर</p> आदरणीय तिवारी जी
इसमें कोई दो…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-20:5170231:Comment:8908522017-10-20T12:11:31.340ZRam Awadh VIshwakarmahttp://www.openbooksonline.com/profile/RamAwadhVIshwakarma
आदरणीय तिवारी जी<br />
इसमें कोई दो राय नहीं ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत हुई है।लेकिन बह्र मतला के ऊला मिसरा में ही गड़बड़ा गया है। बह् है<br />
मुस्तफ्इलुन मफाइलुन मुस्तफ्इलुन मुफाइलुन।<br />
2212 1212 2212 1212<br />
साथ ही<br />
"वक्त के आसमान पर " यहाँ भी मूल बह्र में न होकर<br />
<br />
फाइलातुन मफाइलुन हो गई है।<br />
2122 1212<br />
हो सकता है आप सही हों। मैने अपने अल्प ज्ञान के अनुसार टिप्पणी की है। सादर
आदरणीय तिवारी जी<br />
इसमें कोई दो राय नहीं ग़ज़ल बहुत ही खूबसूरत हुई है।लेकिन बह्र मतला के ऊला मिसरा में ही गड़बड़ा गया है। बह् है<br />
मुस्तफ्इलुन मफाइलुन मुस्तफ्इलुन मुफाइलुन।<br />
2212 1212 2212 1212<br />
साथ ही<br />
"वक्त के आसमान पर " यहाँ भी मूल बह्र में न होकर<br />
<br />
फाइलातुन मफाइलुन हो गई है।<br />
2122 1212<br />
हो सकता है आप सही हों। मैने अपने अल्प ज्ञान के अनुसार टिप्पणी की है। सादर आदरणीय अजय तिवारी जी ,पूरी ग़ज़…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-20:5170231:Comment:8906392017-10-20T03:21:55.352ZSALIM RAZA REWAhttp://www.openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
<p>आदरणीय अजय तिवारी जी ,<br/>पूरी ग़ज़ल खूबसूरत है दिल से मुबारक़बाद ,</p>
<p>आदरणीय अजय तिवारी जी ,<br/>पूरी ग़ज़ल खूबसूरत है दिल से मुबारक़बाद ,</p>