Comments - तू गांधी की लाठी ले ले (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी - Open Books Online2024-03-28T13:54:34Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A888913&xn_auth=noबहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जना…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-18:5170231:Comment:8904342017-10-18T05:57:19.888ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब मुझे इस तरह प्रोत्साहित करने के लिए, मेरी रचना पर समय देने के लिए।
बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब और जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब मुझे इस तरह प्रोत्साहित करने के लिए, मेरी रचना पर समय देने के लिए। प्रतीकों का बड़ा ही खूबसूरत इस…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8896652017-10-15T16:22:11.413Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
प्रतीकों का बड़ा ही खूबसूरत इस्तेमाल किया है आदरणीय..इस उम्दा लघु कथा के लिए बधाई..
प्रतीकों का बड़ा ही खूबसूरत इस्तेमाल किया है आदरणीय..इस उम्दा लघु कथा के लिए बधाई.. शैर आप ही की नज़्र है जनाब,जैस…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8895882017-10-15T15:08:25.476ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
शैर आप ही की नज़्र है जनाब,जैसे चाहें इस्तेमाल करें,शैर पसन्द करने के लिए शुक्रिया ।
शैर आप ही की नज़्र है जनाब,जैसे चाहें इस्तेमाल करें,शैर पसन्द करने के लिए शुक्रिया । //'गुमराही से बचना है तो
तू ग…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8898222017-10-15T14:37:34.608ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
//'गुमराही से बचना है तो<br />
तू गाँधी की लाठी ले ले'//..<br />
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आपके इस बेहतरीन मिस्रे को मैं सोशल मीडिया पर रचना के साथ, आपके नाम के साथ टिप्पणी में लिखने की इज़ाजत चाहता हूं मुहतरम जनाब समर कबीर साहब। यह तो इत्तेफाक सुख। वैसे मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने यह शीर्षक बच्चों वाली मशहूर कविता : //मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं//.. से प्रेरित होकर लिखा है। सादर!
//'गुमराही से बचना है तो<br />
तू गाँधी की लाठी ले ले'//..<br />
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आपके इस बेहतरीन मिस्रे को मैं सोशल मीडिया पर रचना के साथ, आपके नाम के साथ टिप्पणी में लिखने की इज़ाजत चाहता हूं मुहतरम जनाब समर कबीर साहब। यह तो इत्तेफाक सुख। वैसे मैं आपको बताना चाहता हूं कि मैंने यह शीर्षक बच्चों वाली मशहूर कविता : //मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं//.. से प्रेरित होकर लिखा है। सादर! मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर शिरक़त…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8895872017-10-15T14:29:25.577ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर शिरक़त फ़रमाकर एक बार फिर से मेरी स्नेहिल हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रेवा साहब।
मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर शिरक़त फ़रमाकर एक बार फिर से मेरी स्नेहिल हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रेवा साहब। रचना पर उपस्थित हो कर अपनी रा…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8897382017-10-15T14:27:48.303ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
रचना पर उपस्थित हो कर अपनी राय से अवगत कराने व हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश शेवगांवकर साहब और आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल साहब। विनम्र निवेदन है कि उपरोक्त लघुकथा के संदेश : 'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'--- के मद्देनज़र रचना के इस संवाद पर ग़ौर फ़रमाइयेगा, तो आपके द्वारा सुझाई गई सकारात्मक बात स्वत: आप को स्पष्ट हो जायेगी : (लाठी का सकारात्मक प्रतीकात्मक संदेश) :<br />
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// ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित…
रचना पर उपस्थित हो कर अपनी राय से अवगत कराने व हौसला अफज़ाई के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश शेवगांवकर साहब और आदरणीय कालीपद प्रसाद मण्डल साहब। विनम्र निवेदन है कि उपरोक्त लघुकथा के संदेश : 'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'--- के मद्देनज़र रचना के इस संवाद पर ग़ौर फ़रमाइयेगा, तो आपके द्वारा सुझाई गई सकारात्मक बात स्वत: आप को स्पष्ट हो जायेगी : (लाठी का सकारात्मक प्रतीकात्मक संदेश) :<br />
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// ये देखो, गांधी जी की लाठी! ये लाठी मेरे लिए उनके अनुभवों, विचारों और दर्शन की सुगठित प्रतीक है। किताबों, काग़ज़ों, चरखों, कलैंडरों से, और खादी से गांधी को कोई कितना भी दूर कर दे, लेकिन उनकी दी ये लाठी मुझे संबल देती है! मैं तुम्हें कभी गुमराह नहीं होने दूंगी!"//<br />
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फिर भी यदि कुछ स्पष्ट न हो रहा हो, तो कृपया अवश्य बताइयेगा, ताकि रचना में कुछ आवश्यक बदलाव किया जा सके। सादर। रचना के मर्म को और प्रतीकात्म…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8898202017-10-15T14:18:52.816ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
रचना के मर्म को और प्रतीकात्मकता को मान्य कर मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब।
रचना के मर्म को और प्रतीकात्मकता को मान्य कर मेरी हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहब। //'गुमराही से बचना है तो, तू…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8898182017-10-15T14:17:09.273ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
//'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'//... वाह, आपने पूरी तरह से मेरी इस लघुकथा के मर्म को ज़हन में लेते हुए गहराई तक समझा और इतने ख़ूबसूरत तरीक़े से अनुमोदन कर मुझे प्रोत्साहित किया है कि मेरा लेखन सार्थक हो गया। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब।
//'गुमराही से बचना है तो, तू गाँधी की लाठी ले ले'//... वाह, आपने पूरी तरह से मेरी इस लघुकथा के मर्म को ज़हन में लेते हुए गहराई तक समझा और इतने ख़ूबसूरत तरीक़े से अनुमोदन कर मुझे प्रोत्साहित किया है कि मेरा लेखन सार्थक हो गया। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब। जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदा…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-15:5170231:Comment:8895782017-10-15T11:59:49.329ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।<br />
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आपकी कविता का शीर्षक इत्तिफ़ाक़ से बह्र में कहा हुआ एक मिसरा है, इसे एक शैर में तब्दील किया है,मुलाहिज़ा फरमाएं,जो शायद आपकी लघुकथा का भाव भी है :-<br />
'गुमराही से बचना है तो<br />
तू गाँधी की लाठी ले ले'
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।<br />
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आपकी कविता का शीर्षक इत्तिफ़ाक़ से बह्र में कहा हुआ एक मिसरा है, इसे एक शैर में तब्दील किया है,मुलाहिज़ा फरमाएं,जो शायद आपकी लघुकथा का भाव भी है :-<br />
'गुमराही से बचना है तो<br />
तू गाँधी की लाठी ले ले' जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहब,…tag:www.openbooksonline.com,2017-10-14:5170231:Comment:8892892017-10-14T16:08:27.563ZSALIM RAZA REWAhttp://www.openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहब,<br />
लघुकथा के लिए मुबारक़बाद.
जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहब,<br />
लघुकथा के लिए मुबारक़बाद.