Comments - ग़ज़ल - वक़्त कुछ ऐसा मेरे साथ गुज़ारा उसने - Open Books Online2024-03-29T06:40:49Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A884252&xn_auth=noहार्दिक आभार आ. शिज्जु सर। सा…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-28:5170231:Comment:8848752017-09-28T11:18:04.393ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
हार्दिक आभार आ. शिज्जु सर। सादर धन्यवाद।
हार्दिक आभार आ. शिज्जु सर। सादर धन्यवाद। शुक्रिया सर।tag:www.openbooksonline.com,2017-09-28:5170231:Comment:8849272017-09-28T11:16:24.320ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
शुक्रिया सर।
शुक्रिया सर। आदरणीय महेंद्र कुमार जी अच्छी…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-28:5170231:Comment:8850162017-09-28T05:52:44.135Zशिज्जु "शकूर"http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>आदरणीय महेंद्र कुमार जी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मा. निलेश भाई की इस्लाह से और निखर गई है मेरी तरफ से सादर बधाई</p>
<p>आदरणीय महेंद्र कुमार जी अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मा. निलेश भाई की इस्लाह से और निखर गई है मेरी तरफ से सादर बधाई</p> क्षमा मांगने की क्या बात है,आ…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-28:5170231:Comment:8851112017-09-28T05:01:53.932ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
क्षमा मांगने की क्या बात है,आपने कोई ग़लती नहीं की है, सबका अपना अपना मिज़ाज होता है,इसे अन्यथा न लें ।
क्षमा मांगने की क्या बात है,आपने कोई ग़लती नहीं की है, सबका अपना अपना मिज़ाज होता है,इसे अन्यथा न लें । ऐसा कह के आपने शर्मिंदा कर दि…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-28:5170231:Comment:8851082017-09-28T02:34:18.567ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>ऐसा कह के आपने शर्मिंदा कर दिया सर. खैर, यदि कोई गलती हो गयी हो तो उसे क्षमा कीजिएगा. सादर. </p>
<p>ऐसा कह के आपने शर्मिंदा कर दिया सर. खैर, यदि कोई गलती हो गयी हो तो उसे क्षमा कीजिएगा. सादर. </p> आपके मिज़ाज को जहाँ तक मैंने स…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8848032017-09-27T15:45:03.942ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
आपके मिज़ाज को जहाँ तक मैंने समझा है,आप किसी का भी सुझाया गया मिसरा लेना पसंद नहीं करते हैं,इसलिये बहतर यही है कि जो मिसरा आपको उचित लगे उसी को रखिये ।<br />
वैसे 'मुआफ़' और 'बख़्श'शब्द में ज़ियादा फ़र्क़ नहीं है ।
आपके मिज़ाज को जहाँ तक मैंने समझा है,आप किसी का भी सुझाया गया मिसरा लेना पसंद नहीं करते हैं,इसलिये बहतर यही है कि जो मिसरा आपको उचित लगे उसी को रखिये ।<br />
वैसे 'मुआफ़' और 'बख़्श'शब्द में ज़ियादा फ़र्क़ नहीं है । आ. निलेश सर, अपना कीमती वक़्त…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845982017-09-27T15:13:35.449ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p><span>आ. निलेश सर, अपना कीमती वक़्त दे कर मेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. मूल बात फ्लो अथवा रवानी की ही है. अभी मैं एकदम नया हूँ इसलिए इतनी बारीक़ बातें नहीं समझ पाता. आपके सुझाव अनुसार मैंने आख़िरी शेर के ऊला मिसरे को इस तरह कहने की कोशिश की है : "</span><strong>जला कर राख़ मैं कर दूँगा क़सम से ख़ुद को</strong><span>". शायद अब ठीक हो. देख लीजिएगा. एक बार ग़ज़ल में पुनः आपकी उपस्थति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</span></p>
<p><span>आ. निलेश सर, अपना कीमती वक़्त दे कर मेरे प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ. मूल बात फ्लो अथवा रवानी की ही है. अभी मैं एकदम नया हूँ इसलिए इतनी बारीक़ बातें नहीं समझ पाता. आपके सुझाव अनुसार मैंने आख़िरी शेर के ऊला मिसरे को इस तरह कहने की कोशिश की है : "</span><strong>जला कर राख़ मैं कर दूँगा क़सम से ख़ुद को</strong><span>". शायद अब ठीक हो. देख लीजिएगा. एक बार ग़ज़ल में पुनः आपकी उपस्थति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</span></p> आ. समर सर, "बख़्श" शब्द पर मैं…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845932017-09-27T15:05:00.645ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आ. समर सर, "<span>बख़्श" शब्द पर मैंने भी सोचा था पर मुझे लगता है कि जो बात "मुआफ़" शब्द में है वो इस "<span>बख़्श" शब्द में नहीं है. सानी मिसरे और इस ग़ज़ल के मिज़ाज को देखते हुए मैं इस शब्द को लेकर असमंजस में हूँ </span></span>हालाँकि काफी हद तक वही भाव आ रहे हैं. फिर भी, मैं यह आपके ऊपर छोड़ता हूँ कि इस शेर में कौन सा ऊला मिसरा रखा जाए :</p>
<p>1. <span>आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही</span></p>
<p>2. आप के कहने पे बख़्शा था उसे, लो देखो</p>
<p>3. बात इक बार की होती तो न होता कुछ…</p>
<p>आ. समर सर, "<span>बख़्श" शब्द पर मैंने भी सोचा था पर मुझे लगता है कि जो बात "मुआफ़" शब्द में है वो इस "<span>बख़्श" शब्द में नहीं है. सानी मिसरे और इस ग़ज़ल के मिज़ाज को देखते हुए मैं इस शब्द को लेकर असमंजस में हूँ </span></span>हालाँकि काफी हद तक वही भाव आ रहे हैं. फिर भी, मैं यह आपके ऊपर छोड़ता हूँ कि इस शेर में कौन सा ऊला मिसरा रखा जाए :</p>
<p>1. <span>आप कहते थे इसे बख़्श दो, देखो ख़ुद ही</span></p>
<p>2. आप के कहने पे बख़्शा था उसे, लो देखो</p>
<p>3. बात इक बार की होती तो न होता कुछ भी </p>
<p>आपके कीमती सुझाव और ग़ज़ल पर पुनः समय देने के लिए हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद सर. सादर.</p> ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845892017-09-27T14:50:29.151ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. गिरिराज सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</p>
<p>ग़ज़ल को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. गिरिराज सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</p> ग़ज़ल पर उपस्थति हो कर उसका मान…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8847902017-09-27T14:49:15.188ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>ग़ज़ल पर उपस्थति हो कर उसका मान बढ़ाने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. रवि सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</p>
<p>ग़ज़ल पर उपस्थति हो कर उसका मान बढ़ाने और मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ आ. रवि सर. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.</p>