Comments - ग़ज़ल - दो पहर की धूप भी अच्छी लगी ( गिरिराज भंडारी ) - Open Books Online2024-03-28T14:34:46Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A882246&xn_auth=noयादों की थीं खुश्बुयें फैलीं…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-22:5170231:Comment:8833102017-09-22T16:53:58.085Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://www.openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ<br />
तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी...बहुत खूबसूरत आदरणीय बहुत खूबसूरत
यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ<br />
तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी...बहुत खूबसूरत आदरणीय बहुत खूबसूरत वाह ! शानदार ग़ज़ल कही भोले भ…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-21:5170231:Comment:8826902017-09-21T17:10:02.278ZRavi Prabhakarhttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviPrabhakar
<p>वाह ! शानदार ग़ज़ल कही भोले भंडारी बाबा !</p>
<p></p>
<p>यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ</p>
<p>तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी</p>
<p></p>
<p>चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं</p>
<p>जो अधूरी थी बची, अच्छी लगी</p>
<p></p>
<p>इन दो शे'रों के लिए विशेष बधाई स्वीकारें । सादर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>वाह ! शानदार ग़ज़ल कही भोले भंडारी बाबा !</p>
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<p>यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ</p>
<p>तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी</p>
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<p>चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं</p>
<p>जो अधूरी थी बची, अच्छी लगी</p>
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<p>इन दो शे'रों के लिए विशेष बधाई स्वीकारें । सादर</p>
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<p></p> आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर उपस्थ…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8827172017-09-20T13:01:24.072Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति हो उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।</p>
<p>आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति हो उत्साह वर्धन करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।</p> आदरणीय नीरज भाई , आपकी मुखर स…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8827162017-09-20T13:00:47.858Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय नीरज भाई , आपकी मुखर सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभार ।</p>
<p>आदरणीय नीरज भाई , आपकी मुखर सराहना ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका हृदय से आभार ।</p> आदरणीय बसंत भाई , ग़ज़ल की सराह…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8828172017-09-20T12:58:55.646Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय बसंत भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।</p>
<p>आदरणीय बसंत भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।</p> आदरणीय मोहित भाई , उत्साह वर्…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8828162017-09-20T12:58:13.220Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय मोहित भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार</p>
<p>आदरणीय मोहित भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार</p> आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की स…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8828152017-09-20T12:57:34.587Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।</p>
<p>आदरणीय राम अवध भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।</p> आदरणीय गिरिराज जी,
बहुत खूब!…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8825342017-09-20T11:30:54.979ZNiraj Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NirajKumar406
<p>आदरणीय गिरिराज जी,</p>
<p>बहुत खूब! बेहतरीन! मैं भी थोडा शायर हो लेता हूँ :</p>
<p>इसकी मीठी सादगी अच्छी लगी.</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय गिरिराज जी,</p>
<p>बहुत खूब! बेहतरीन! मैं भी थोडा शायर हो लेता हूँ :</p>
<p>इसकी मीठी सादगी अच्छी लगी.</p>
<p>सादर </p> जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उ…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-20:5170231:Comment:8826362017-09-20T08:44:48.881ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ । वाह अदभुत
चाहतें पूरी हुईं त…tag:www.openbooksonline.com,2017-09-19:5170231:Comment:8824912017-09-19T15:37:31.995Zबसंत कुमार शर्माhttp://www.openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>वाह अदभुत </p>
<p>चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं </p>
<p>ज अधूरी थी बची अच्छी लगी, क्या बात है </p>
<p>वाह अदभुत </p>
<p>चाहतें पूरी हुईं तो मर गईं </p>
<p>ज अधूरी थी बची अच्छी लगी, क्या बात है </p>