Comments - क़दम उठाने से पहले विचार करना था - Open Books Online2024-03-28T13:14:10Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A850236&xn_auth=noजनाब नवीन जी आदाब, सुख़न नवाज़ी…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-09:5170231:Comment:8656142017-07-09T18:25:59.550ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब नवीन जी आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब नवीन जी आदाब, सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । वाह सर क्या खूब लिखा । लाजबाब…tag:www.openbooksonline.com,2017-07-09:5170231:Comment:8656102017-07-09T15:11:42.919ZNaveen Mani Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/NaveenManiTripathi
वाह सर क्या खूब लिखा । लाजबाब ग़ज़ल हुई । बधाई आपको ।
वाह सर क्या खूब लिखा । लाजबाब ग़ज़ल हुई । बधाई आपको । जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़…tag:www.openbooksonline.com,2017-06-26:5170231:Comment:8631862017-06-26T00:28:05.660ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदा…tag:www.openbooksonline.com,2017-06-26:5170231:Comment:8632902017-06-26T00:25:09.245ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया । //उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाह…tag:www.openbooksonline.com,2017-06-24:5170231:Comment:8629542017-06-24T05:49:14.738Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>//<span>उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाहत में</span><br/><span>शऊर-ओ-फ़िक्र की सरहद को पार करना था</span><br/><br/><span>वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता</span><br/><span>उसी के तीर से उसका शिकार करना था//</span></p>
<p></p>
<p><span>सभी शेर बहुत अच्छे हैं, और यह और भी मन-पसंद हैं। दिल से बधाई, समर जी।</span></p>
<p>//<span>उठाके बोझ ज़माने का तेरी चाहत में</span><br/><span>शऊर-ओ-फ़िक्र की सरहद को पार करना था</span><br/><br/><span>वो मेरी तेग़ से मरता तो क्या मज़ा आता</span><br/><span>उसी के तीर से उसका शिकार करना था//</span></p>
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<p><span>सभी शेर बहुत अच्छे हैं, और यह और भी मन-पसंद हैं। दिल से बधाई, समर जी।</span></p> वाह वाह बहुत खूब सर ।tag:www.openbooksonline.com,2017-06-14:5170231:Comment:8624182017-06-14T05:15:16.862ZNaveen Mani Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/NaveenManiTripathi
वाह वाह बहुत खूब सर ।
वाह वाह बहुत खूब सर । जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़…tag:www.openbooksonline.com,2017-05-15:5170231:Comment:8570522017-05-15T12:18:01.258ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब महेन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है…tag:www.openbooksonline.com,2017-05-15:5170231:Comment:8570072017-05-15T05:15:12.002ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p><em>हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू</em></p>
<p><em>सब समझते है ये धन्धा बड़े आराम का है</em></p>
<p>-राहत इन्दौरी<em> </em></p>
<p></p>
<p><em><span>हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है,ग़ज़ल का फ़न क्या</span><br></br><span>चन्द लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाये</span></em></p>
<p>-जाँ निसार अख़्तर</p>
<p></p>
<p><em>लोग आसान समझते हैं ग़ज़ल गोई को</em><br></br><em>दिल का शीराज़ा बिखरता है ग़ज़ल कहने में</em></p>
<p>-नरेश कुमार शाद</p>
<p></p>
<p><em>हुसूल-ए-इल्म की ख़ातिर भटकते फिरते हैं</em><br></br><em>ग़ज़ल का फ़न…</em></p>
<p><em>हमसे पूछो कि ग़ज़ल मांगती है कितना लहू</em></p>
<p><em>सब समझते है ये धन्धा बड़े आराम का है</em></p>
<p>-राहत इन्दौरी<em> </em></p>
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<p><em><span>हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है,ग़ज़ल का फ़न क्या</span><br/><span>चन्द लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाये</span></em></p>
<p>-जाँ निसार अख़्तर</p>
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<p><em>लोग आसान समझते हैं ग़ज़ल गोई को</em><br/><em>दिल का शीराज़ा बिखरता है ग़ज़ल कहने में</em></p>
<p>-नरेश कुमार शाद</p>
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<p><em>हुसूल-ए-इल्म की ख़ातिर भटकते फिरते हैं</em><br/><em>ग़ज़ल का फ़न जो हमें बा वक़ार करना था</em></p>
<p>-समर कबीर<em> </em></p>
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<p>वाह! यह सिर्फ ओबीओ पर ही संभव है. जय-जय. </p> //ये एक बार नहीं बार बार करना…tag:www.openbooksonline.com,2017-05-15:5170231:Comment:8569102017-05-15T04:58:56.799ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>//ये एक बार नहीं बार बार करना था, बग़ैर नाव के दरिया को पार करना था// वाह! क्या ख़ूब शेर कहा है आपने आदरणीय समर कबीर सर. इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है. सादर. </p>
<p>//ये एक बार नहीं बार बार करना था, बग़ैर नाव के दरिया को पार करना था// वाह! क्या ख़ूब शेर कहा है आपने आदरणीय समर कबीर सर. इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई प्रेषित है. सादर. </p> मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आद…tag:www.openbooksonline.com,2017-05-12:5170231:Comment:8560452017-05-12T12:23:41.209ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
मोहतरमा कल्पना भट्ट साहिबा आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।