Comments - कुण्डलिया छंद - Open Books Online2024-03-28T17:26:36Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A849798&xn_auth=noआदरणीय नीलेश जी,
आपकी उपस्थित…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-20:5170231:Comment:8501822017-04-20T14:26:38.776ZHariom Shrivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/HariomShrivastava
आदरणीय नीलेश जी,<br />
आपकी उपस्थिति से रचना को मान मिला। बोलीं कुछ भन्नाय में 'कुछ' की जगह 'वो' करने का आपका सुझाव स्वागत योग्य है। धन्यवाद। पहले छंद में आपने कहा कि स्पष्ट नहीं कि "क्या पीने में"। इस संबंध में छंद में आगे 'जाम टकराने' व 'मदिरा पीने में' का जिक्र आया है। अतः स्पष्ट है कि पीने का अर्थ "मदिरा पीने से है"। सादर। इसी तरह मार्गदर्शन देते रहें। सादर।
आदरणीय नीलेश जी,<br />
आपकी उपस्थिति से रचना को मान मिला। बोलीं कुछ भन्नाय में 'कुछ' की जगह 'वो' करने का आपका सुझाव स्वागत योग्य है। धन्यवाद। पहले छंद में आपने कहा कि स्पष्ट नहीं कि "क्या पीने में"। इस संबंध में छंद में आगे 'जाम टकराने' व 'मदिरा पीने में' का जिक्र आया है। अतः स्पष्ट है कि पीने का अर्थ "मदिरा पीने से है"। सादर। इसी तरह मार्गदर्शन देते रहें। सादर। आ, हरिओम जी .... अच्छे छन्द ह…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-20:5170231:Comment:8503182017-04-20T11:29:24.602ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ, हरिओम जी .... <br></br>अच्छे छन्द हुए हैं .. बधाई ..<br></br>.<br></br><span>बोलीं कुछ भन्नाय, देर क्यों इतनी लागी।...... जब आप को पता है कि क्या बोली तो कुछ का प्रयोग ठीक नहीं है .... कुछ अस्पष्टता के लिये ठीक है ....बोली वो भन्नाय ..<br></br>.<br></br>पहले छन्द में भी ..<br></br><br></br><span>पीने में आनंद है, मिथ्या है संसार।</span><br></br><span>पीने से बढ़ता सदा, आपस में है प्यार।।..... क्या पीने में ?? मदिरा में आनंद है ..... मदिरा से बढ़ता सदा ,,,,,<br></br></span>मैं इस विषय का ज्ञाता नहीं हूँ ,,,, भाषा के…</span></p>
<p>आ, हरिओम जी .... <br/>अच्छे छन्द हुए हैं .. बधाई ..<br/>.<br/><span>बोलीं कुछ भन्नाय, देर क्यों इतनी लागी।...... जब आप को पता है कि क्या बोली तो कुछ का प्रयोग ठीक नहीं है .... कुछ अस्पष्टता के लिये ठीक है ....बोली वो भन्नाय ..<br/>.<br/>पहले छन्द में भी ..<br/><br/><span>पीने में आनंद है, मिथ्या है संसार।</span><br/><span>पीने से बढ़ता सदा, आपस में है प्यार।।..... क्या पीने में ?? मदिरा में आनंद है ..... मदिरा से बढ़ता सदा ,,,,,<br/></span>मैं इस विषय का ज्ञाता नहीं हूँ ,,,, भाषा के हिसाब से कुछ लगा तो कह दिया ..<br/>.<br/><br/></span></p> आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-20:5170231:Comment:8502582017-04-20T10:11:13.983ZHariom Shrivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/HariomShrivastava
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी,आपकी सराहनीय प्रतिक्रिया से सृजन सार्थक हुआ। हार्दिक आभार। आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सा…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-20:5170231:Comment:8501452017-04-20T03:18:03.070Zनाथ सोनांचलीhttp://www.openbooksonline.com/profile/SurendraNathSingh
आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन, आपकी बेहद उम्दा भावपूर्ण कुंडलियाँ के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन, आपकी बेहद उम्दा भावपूर्ण कुंडलियाँ के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय समर समर कबीर जी, आदरणी…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8502332017-04-19T18:15:58.683ZHariom Shrivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/HariomShrivastava
आदरणीय समर समर कबीर जी, आदरणीय अशोक रक्ताले जी,व आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, मेरी प्रथम प्रस्तुति पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार।
आदरणीय समर समर कबीर जी, आदरणीय अशोक रक्ताले जी,व आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, मेरी प्रथम प्रस्तुति पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार। कुण्डलिया छंद में संयत सुगढ़ …tag:www.openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8499992017-04-19T18:05:13.039ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>कुण्डलिया छंद में संयत सुगढ़ रचनाएँ हुई हैं .. सादर धन्यवाद आदरणीय </p>
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<p>कुण्डलिया छंद में संयत सुगढ़ रचनाएँ हुई हैं .. सादर धन्यवाद आदरणीय </p>
<p></p> आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सा…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8500402017-04-19T15:15:51.235ZAshok Kumar Raktalehttp://www.openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर, मदिरापान से लेकर चाय तक तीनों ही कुण्डलिया छंद अच्छे रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.</p>
<p>आदरणीय हरिओम श्रीवास्तव जी सादर, मदिरापान से लेकर चाय तक तीनों ही कुण्डलिया छंद अच्छे रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.</p> जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-19:5170231:Comment:8502172017-04-19T14:28:13.022ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत बढ़िया कुण्डलिया छन्द लिखे आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब हरिओम श्रीवास्तव जी आदाब,बहुत बढ़िया कुण्डलिया छन्द लिखे आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।