Comments - दोहे {सावन} - Open Books Online2024-03-29T06:19:47Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A790494&xn_auth=noआपका आभार आदरणीया राजेश कुमार…tag:www.openbooksonline.com,2016-08-09:5170231:Comment:7907712016-08-09T00:33:16.232ZKalipad Prasad Mandalhttp://www.openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आपका आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ! आपको पसन्द आया जानकर प्रेरणा मिली |</p>
<p>सादर </p>
<p>आपका आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ! आपको पसन्द आया जानकर प्रेरणा मिली |</p>
<p>सादर </p> बहुत बढ़िया प्रयास हुआ दोहों प…tag:www.openbooksonline.com,2016-08-07:5170231:Comment:7905882016-08-07T13:53:56.715Zrajesh kumarihttp://www.openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>बहुत बढ़िया प्रयास हुआ दोहों पर सम सामयिक दोहे ..हार्दिक बधाई आद० कालिपद प्रसाद जी |</p>
<p>बहुत बढ़िया प्रयास हुआ दोहों पर सम सामयिक दोहे ..हार्दिक बधाई आद० कालिपद प्रसाद जी |</p> आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,उत्साह…tag:www.openbooksonline.com,2016-08-06:5170231:Comment:7906422016-08-06T13:58:23.196ZKalipad Prasad Mandalhttp://www.openbooksonline.com/profile/KalipadPrasadMandal
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,उत्साह वर्धन के लिए हृदयातल से आभारी हूँ | छन्द के बारे में जो कुछ जाना आप ही के "छन्द विधान" से जाना | कृपया आगे भी मार्ग दर्शन करते रहिये | आश्विन मास के बारे में सोचा नहीं था | देखूँगा |</p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,उत्साह वर्धन के लिए हृदयातल से आभारी हूँ | छन्द के बारे में जो कुछ जाना आप ही के "छन्द विधान" से जाना | कृपया आगे भी मार्ग दर्शन करते रहिये | आश्विन मास के बारे में सोचा नहीं था | देखूँगा |</p>
<p>सादर </p> आपकी कोशिश के लिए हृदयतल से ब…tag:www.openbooksonline.com,2016-08-06:5170231:Comment:7906332016-08-06T08:35:50.750ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपकी कोशिश के लिए हृदयतल से बधाइयाँ. </p>
<p>पहले दोहे की तार्किकता तनिक शंका के घेरे में है. क्या आश्विन मास को देखा गया है कि वह अपनी गोद में कितने पर्व-त्यौहारो को समेटे हुए है ? .. :-))</p>
<p>बहरहाल, आपकी कोशिश बनी रहे. इस हेतु पुनः मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ </p>
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<p>आपकी कोशिश के लिए हृदयतल से बधाइयाँ. </p>
<p>पहले दोहे की तार्किकता तनिक शंका के घेरे में है. क्या आश्विन मास को देखा गया है कि वह अपनी गोद में कितने पर्व-त्यौहारो को समेटे हुए है ? .. :-))</p>
<p>बहरहाल, आपकी कोशिश बनी रहे. इस हेतु पुनः मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ </p>
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