Comments - कसक (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-29T02:21:59Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A747918&xn_auth=noजिसने अन्न उगाया वो वहीं रह ग…tag:www.openbooksonline.com,2018-06-09:5170231:Comment:9333572018-06-09T05:28:04.375ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>जिसने अन्न उगाया वो वहीं रह गया और जिसने उस अन्न को बेचा वो कहाँ से कहाँ पहुँच गया. किसानों की व्यथा को कसक के माध्यम से क्या ख़ूब उभारा है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.</p>
<p>जिसने अन्न उगाया वो वहीं रह गया और जिसने उस अन्न को बेचा वो कहाँ से कहाँ पहुँच गया. किसानों की व्यथा को कसक के माध्यम से क्या ख़ूब उभारा है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.</p> किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शाय…tag:www.openbooksonline.com,2016-05-04:5170231:Comment:7628862016-05-04T10:56:08.753ZKALPANA BHATT ('रौनक़')http://www.openbooksonline.com/profile/KALPANABHATT832
<p>किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शायी है आदरणीय सर | </p>
<p>किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शायी है आदरणीय सर | </p> आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-09:5170231:Comment:7483312016-03-09T15:36:28.037Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम! समकालीन दुर्व्यवस्थाओं को उजागर करती यथार्थ कथावस्तु को नमन. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर</p>
<p>आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम! समकालीन दुर्व्यवस्थाओं को उजागर करती यथार्थ कथावस्तु को नमन. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर</p> मार्मिक चित्रण आदरणीय ।।बधाईtag:www.openbooksonline.com,2016-03-09:5170231:Comment:7483192016-03-09T12:51:43.069Zram shiromani pathakhttp://www.openbooksonline.com/profile/ramshiromanipathak
मार्मिक चित्रण आदरणीय ।।बधाई
मार्मिक चित्रण आदरणीय ।।बधाई किसानों को हमेशा मौसम पर निर्…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-09:5170231:Comment:7481232016-03-09T06:57:58.214Zrajesh kumarihttp://www.openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>किसानों को हमेशा मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है और मौसम भी उसका सगा नहीं है परेशां होकर किसान उनके बच्चे पलायन कर रहे हैं किसानों की दयनीय स्थिति को इस लघु कथा के माध्यम से बाखूबी उकेरा है आपने ..बहुत शानदार प्रस्तुति .हार्दिक बधाई आ० योगराज जी .</p>
<p>किसानों को हमेशा मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है और मौसम भी उसका सगा नहीं है परेशां होकर किसान उनके बच्चे पलायन कर रहे हैं किसानों की दयनीय स्थिति को इस लघु कथा के माध्यम से बाखूबी उकेरा है आपने ..बहुत शानदार प्रस्तुति .हार्दिक बधाई आ० योगराज जी .</p> किसानों की पीड़ा को महसूस किय…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-08:5170231:Comment:7480152016-03-08T09:22:07.943ZNita Kasarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NitaKasar
किसानों की पीड़ा को महसूस किया जा सकता हाै कथा के ज़रिये ये कैसी लाचारी है?अन्नदाता पर आफ़त भारी है ।बधाईयां आपके लिये आद०योगराज प्रभाकर जी ।
किसानों की पीड़ा को महसूस किया जा सकता हाै कथा के ज़रिये ये कैसी लाचारी है?अन्नदाता पर आफ़त भारी है ।बधाईयां आपके लिये आद०योगराज प्रभाकर जी । मोहतरम जनाब योगराज साहिब , …tag:www.openbooksonline.com,2016-03-07:5170231:Comment:7476772016-03-07T15:47:21.361ZTasdiq Ahmed Khanhttp://www.openbooksonline.com/profile/TasdiqAhmedKhan
<p>मोहतरम जनाब योगराज साहिब , गरीब किसान की सही तस्वीर लघु कथा में खिंच गयी , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं </p>
<p>मोहतरम जनाब योगराज साहिब , गरीब किसान की सही तस्वीर लघु कथा में खिंच गयी , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं </p> किसानों की दयनीय स्थिति का बह…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-07:5170231:Comment:7476722016-03-07T15:28:37.137ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है आदरणीय सौरभ सर। सब का पेट भरने वाला स्वयं शून्यता की तपिश सह रहा है। इस मार्मिक और श्रेष्ठ लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। </p>
<p>किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है आदरणीय सौरभ सर। सब का पेट भरने वाला स्वयं शून्यता की तपिश सह रहा है। इस मार्मिक और श्रेष्ठ लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। </p> कहने भर की ज़मींदारी ,हैं अनगि…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-07:5170231:Comment:7479382016-03-07T15:27:59.331Zसतविन्द्र कुमार राणाhttp://www.openbooksonline.com/profile/28fn40mg3o5v9
कहने भर की ज़मींदारी ,हैं अनगिनत लाचारी<br />
जमीन होने से तो अच्छा ,बेच लेते तरकारी।।<br />
मार्मिक चित्रण।सादर नमन श्रद्धेय सर जी।
कहने भर की ज़मींदारी ,हैं अनगिनत लाचारी<br />
जमीन होने से तो अच्छा ,बेच लेते तरकारी।।<br />
मार्मिक चित्रण।सादर नमन श्रद्धेय सर जी। हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भा…tag:www.openbooksonline.com,2016-03-07:5170231:Comment:7477592016-03-07T14:40:33.037ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!</p>