Comments - जैसी तुम हो मॉंं // आबिद अली मंसूरी! - Open Books Online2024-03-29T01:24:34Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A713202&xn_auth=noबहुत कुछ कह डालने की चाहत में…tag:www.openbooksonline.com,2018-02-22:5170231:Comment:9150152018-02-22T01:15:13.076ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>बहुत कुछ कह डालने की चाहत में गागर में सागर भर डाला आपने। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब आबिद अली मंसूरी साहिब। इस भावपूर्ण रचना को विस्तार देकर बढ़िया छंदबद्ध सृजन भी आप कर सकते हैं।</p>
<p>बहुत कुछ कह डालने की चाहत में गागर में सागर भर डाला आपने। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब आबिद अली मंसूरी साहिब। इस भावपूर्ण रचना को विस्तार देकर बढ़िया छंदबद्ध सृजन भी आप कर सकते हैं।</p> आदरणीय मोहन जी सच कहा आपने, स…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7134932015-11-06T17:35:10.934ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीय मोहन जी सच कहा आपने, सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद!</p>
<p>आदरणीय मोहन जी सच कहा आपने, सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद!</p> आदरणीय मिथिलेश जी आभार आपका म…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7133982015-11-06T17:33:14.881ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीय मिथिलेश जी आभार आपका मनोवल बढ़ाने के लिए, आशा है समय-समय पर मार्गदर्शन भी करते रहेंगे आप!</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश जी आभार आपका मनोवल बढ़ाने के लिए, आशा है समय-समय पर मार्गदर्शन भी करते रहेंगे आप!</p> आदरणीय विजय जी उत्साहवर्धन के…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7135632015-11-06T17:30:52.770ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीय विजय जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका!</p>
<p>आदरणीय विजय जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आपका!</p> आदरणीय मंसूर जी, माँ की ममता…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7136432015-11-06T13:57:57.212Zमोहन बेगोवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrMohanlal
<p><span>आदरणीय मंसूर जी, माँ की ममता कि क्या कहने , मगर लगता है, समय के साथ माँ के बदले हुए रूप पर बहुत कम काम हुआ है, जैसी तबदीली समाज में हो रही उस से माँ के रिश्ते में भी तबदीली देखने को मिल रही है </span></p>
<p><span>आदरणीय मंसूर जी, माँ की ममता कि क्या कहने , मगर लगता है, समय के साथ माँ के बदले हुए रूप पर बहुत कम काम हुआ है, जैसी तबदीली समाज में हो रही उस से माँ के रिश्ते में भी तबदीली देखने को मिल रही है </span></p> आदरणीय मंसूर जी बढ़िया प्रस्तु…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7135432015-11-06T08:04:36.365Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय मंसूर जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई </p>
<p>आदरणीय मंसूर जी बढ़िया प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई </p> सारा संसार भी
मॉं की व्याख्या…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-06:5170231:Comment:7133592015-11-06T03:19:35.034ZDr. Vijai Shankerhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
सारा संसार भी<br />
मॉं की व्याख्या<br />
नहीं कर सकता।<br />
रचना सराहनीय है , बधाई आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी , सादर।
सारा संसार भी<br />
मॉं की व्याख्या<br />
नहीं कर सकता।<br />
रचना सराहनीय है , बधाई आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी , सादर। रचना प्रकाशन के लिए हार्दिक आ…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-05:5170231:Comment:7135112015-11-05T17:51:46.779ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>रचना प्रकाशन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक महोदय!</p>
<p>रचना प्रकाशन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय सम्पादक महोदय!</p>