Comments - आलोचना के स्वर // आबिद अली मंसूरी! - Open Books Online2024-03-29T02:08:08Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A712818&xn_auth=noAadarniye nadir Khan ji, bahu…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-16:5170231:Comment:9250872018-04-16T03:48:18.748ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
Aadarniye nadir Khan ji, bahut-bahut shukriya!!!!
Aadarniye nadir Khan ji, bahut-bahut shukriya!!!! आदरणीय सौरभ जी ह्रदय से आभार…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-09:5170231:Comment:7223752015-12-09T19:24:31.538ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीय सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका, शायद मुझे इससे आगे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आपने अच्छे से समझाया है, आपके मार्गदर्शन के लिए भी ह्रदय से आभारी हूं, आशा है यह सहयोग हमेसःआ बनाए रखेंगे, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका, शायद मुझे इससे आगे कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि आपने अच्छे से समझाया है, आपके मार्गदर्शन के लिए भी ह्रदय से आभारी हूं, आशा है यह सहयोग हमेसःआ बनाए रखेंगे, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p> आदरणीया नीता जी हार्दिक आभार…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-09:5170231:Comment:7224572015-12-09T19:16:14.683ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीया नीता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p>
<p>आदरणीया नीता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p> आदरणीया कॉंंता जी हार्दिक आभा…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-09:5170231:Comment:7223742015-12-09T19:15:39.818ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीया कॉंंता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p>
<p>आदरणीया कॉंंता जी हार्दिक आभार आपका, विलम्ब के लिए क्षमाप्रार्थी हूं!</p> जानते हैंअपने अन्दर फ़ैलेखरपतब…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-04:5170231:Comment:7213532015-12-04T12:07:13.173Zkanta royhttp://www.openbooksonline.com/profile/kantaroy
<p>जानते हैं<br/>अपने अन्दर फ़ैले<br/>खरपतबारों को सभी<br/>पर नहीं चाहते<br/>उखाड़ना<br/>उनकी जड़ों को,---------बहुत ही गहरी और सच्ची बात कही है यहाँ आपने अपनी रचना के माध्यम से आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी ,इस शानदार रचना के लिए बधाई आपको।</p>
<p>जानते हैं<br/>अपने अन्दर फ़ैले<br/>खरपतबारों को सभी<br/>पर नहीं चाहते<br/>उखाड़ना<br/>उनकी जड़ों को,---------बहुत ही गहरी और सच्ची बात कही है यहाँ आपने अपनी रचना के माध्यम से आदरणीय आबिद अली मंसूरी जी ,इस शानदार रचना के लिए बधाई आपको।</p> आलोचनाओं के संबंध में बहुत उम…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-02:5170231:Comment:7212122015-12-02T13:34:16.512ZNita Kasarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NitaKasar
आलोचनाओं के संबंध में बहुत उम्दा रचना प्रस्तुत की है बधाई आपको आद० आबिद अली मंसूरी जी ।
आलोचनाओं के संबंध में बहुत उम्दा रचना प्रस्तुत की है बधाई आपको आद० आबिद अली मंसूरी जी । इस रचना में आलोचना को किसी के…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-17:5170231:Comment:7159462015-11-17T17:15:52.850ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस रचना में आलोचना को किसी के किये या किसी के व्यक्तित्व के नीर-क्षीर करने का संदर्भ लिया गया प्रतीत होता है. अधिक ज़ोर उस विन्दु पर है जहाँ किसी के बारे में सुधारात्मक किन्तु तीक्ष्णता के साथ बातें कही जाती हैं. वस्तुतः आलोचना तीक्ष्णता के साथ कमियाँ उजागर मात्र नहीं होती बल्कि किसी की सापेक्ष विवेचना होती है जो सकारात्मक भी हो सकती है. परन्तु, यह शब्द आज इसी अर्थ के साथ प्रचलित हो गया है. एक तरह से आलोचक आलोचना के समय किसी के बारे में सही या सकारात्मक बातों के प्रति उतने उत्साही नहीं होते,…</p>
<p>इस रचना में आलोचना को किसी के किये या किसी के व्यक्तित्व के नीर-क्षीर करने का संदर्भ लिया गया प्रतीत होता है. अधिक ज़ोर उस विन्दु पर है जहाँ किसी के बारे में सुधारात्मक किन्तु तीक्ष्णता के साथ बातें कही जाती हैं. वस्तुतः आलोचना तीक्ष्णता के साथ कमियाँ उजागर मात्र नहीं होती बल्कि किसी की सापेक्ष विवेचना होती है जो सकारात्मक भी हो सकती है. परन्तु, यह शब्द आज इसी अर्थ के साथ प्रचलित हो गया है. एक तरह से आलोचक आलोचना के समय किसी के बारे में सही या सकारात्मक बातों के प्रति उतने उत्साही नहीं होते, अपितु, नकारात्मक बातों को उजागर करने के क्रम में इतने आग्रही हो जाते हैं कि व्यक्तित्व का सकारात्मक पहलू एक तरह से छुप जाता है. उसकी अपेक्षित चर्चा ही नहीं हो पाती. इस प्रस्तुति के संदर्भ में यही विन्दु हावी है. आज के संदर्भ में यह ग़लत भी नहीं है. </p>
<p></p>
<p>रचना अच्छी हुई है लेकिन नयी कविता की प्रस्तुति का अर्थ यह नहीं होता कि शब्द प्रति शब्द पंक्तियाँ बदल दी जायें. पंक्तियों का अर्थ भाव अथवा कथ्य के आयाम में परिवर्तन हुआ करता है. वहीं भाव-समुच्चय एक साथ रखे जाते हैं.</p>
<p>फिर, भावों को शब्द-विन्यास के क्रम में प्रस्तुत करने का अभ्यास आवश्यक है. </p>
<p></p>
<p>भाई आबिद अली मन्सूरीजी की रचना को पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ --</p>
<p></p>
<p><span>कौन सुनता है</span></p>
<div>कौन सुनना चाहता है</div>
<div>किसे पसन्द है आलोचना अपनी</div>
<div>एक कड़वा सच छिपा होता है आलोचना के शब्दों में</div>
<div>जिसे नहीं चहते हम स्वीकार करना,</div>
<div> </div>
<div>जानते हैं अपने अन्दर फ़ैले <strong>खरपतवारों</strong> को सभी </div>
<div>पर नहीं चाहते उखाड़ना उनकी जड़ों को,</div>
<div>कभी-कभी अकारण ही करना पड़ता है सामना</div>
<div>आलोचनाओं के बबंडर का</div>
<div>यह मानसिकता होती है कुछ लोगों की</div>
<div>अच्छे को बुरा कहने की,</div>
<div>भटक जाते हैं उद्देश्य से अपने</div>
<div>और <strong>टेक</strong> देते हैं घुटने हम / आलोचनाओं के डर से /</div>
<div>उनके आगे जैसा कुछ लोग चाहते हैं</div>
<div> </div>
<div>कड़वे होते हैं </div>
<div>मिठास नहीं होती इनमें मिश्री सी </div>
<div> </div>
<div>जीवन में निरंतर आगे बढ़ने</div>
<div>और अच्छा बनने की सीख देते हैं हमें</div>
<div>कितने प्रेरक और सार्थक होते हैं</div>
<div>आलोचना के स्वर !</div>
<div> </div> खूबसूरत रचना के लिए बधाई।tag:www.openbooksonline.com,2015-11-12:5170231:Comment:7142052015-11-12T10:21:36.125Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>खूबसूरत रचना के लिए बधाई।</p>
<p>खूबसूरत रचना के लिए बधाई।</p> आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार आ…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-05:5170231:Comment:7131662015-11-05T10:39:46.214ZAbid ali mansoorihttp://www.openbooksonline.com/profile/Abidalimansoori
<p>आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार आपका, शायद आपने रचना को ध्यान से नहीं पढ़ा, खैर.. आपने जो बातें अंत में कहीं हैं उनका भावार्थ आप रचना की अंतिम पंक्तियों में समझ सकते हैं, जहां आलोचना को आपके कहे अनुसार ही बतया गया है,जिन्हें स्वीकार कर हमें अपने अन्दर अच्छे परिवर्तन लाना चाहिए! हमारा समाज बहुत बढ़ा है और इस समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आलोचना का हकदार होने के बाद भी अपनी आलोचना सुनना पसन्द या सच्चाई स्वीकार नहीं करते! कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बेमतलब ही दूसरों की आलोचना करते हैं जिससे सभी का नहीं,…</p>
<p>आदरणीय मनोज जी हार्दिक आभार आपका, शायद आपने रचना को ध्यान से नहीं पढ़ा, खैर.. आपने जो बातें अंत में कहीं हैं उनका भावार्थ आप रचना की अंतिम पंक्तियों में समझ सकते हैं, जहां आलोचना को आपके कहे अनुसार ही बतया गया है,जिन्हें स्वीकार कर हमें अपने अन्दर अच्छे परिवर्तन लाना चाहिए! हमारा समाज बहुत बढ़ा है और इस समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आलोचना का हकदार होने के बाद भी अपनी आलोचना सुनना पसन्द या सच्चाई स्वीकार नहीं करते! कुछ लोग ऐसे भी हैं जो बेमतलब ही दूसरों की आलोचना करते हैं जिससे सभी का नहीं, कुछ लोगों का मनोवल तो टूट ही जाता है और वे अपने कर्म से भटक जाते हैं,जैसाकुछ लोग चाहते भी हैं! और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपनी आलोचनाओं को पूरी ईमानदारी से स्वीकार भी करते हैं, और फिर अच्छा करने, अच्छा बनने का प्रयास भी करते हैं जो उनके लिए अक्सर हितकर होता है,एक बार पुनः आभार आपका आदरणीय मनोज जी!</p> बहुत शुबकामनाये
इस रचना पर
बध…tag:www.openbooksonline.com,2015-11-05:5170231:Comment:7131542015-11-05T08:59:47.946Zमनोज अहसासhttp://www.openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
बहुत शुबकामनाये<br />
इस रचना पर<br />
बधाई<br />
पर मैं ये नहीं समझ पाया के आलोचना को आपने इस रचना में किन अर्थों में लिया है<br />
क्या आपने आलोचना को<br />
निंदा करने अथवा केवल दोष बताने के सन्दर्भ में लिया है<br />
जबकि आलोचना का अर्थ मैं तो निष्पक्ष विवेचन समझता रहा हूँ<br />
आपसे तथा समस्त विद्वानों से मार्गदर्शन निवेदित है
बहुत शुबकामनाये<br />
इस रचना पर<br />
बधाई<br />
पर मैं ये नहीं समझ पाया के आलोचना को आपने इस रचना में किन अर्थों में लिया है<br />
क्या आपने आलोचना को<br />
निंदा करने अथवा केवल दोष बताने के सन्दर्भ में लिया है<br />
जबकि आलोचना का अर्थ मैं तो निष्पक्ष विवेचन समझता रहा हूँ<br />
आपसे तथा समस्त विद्वानों से मार्गदर्शन निवेदित है