Comments - बंदगी जिनका सफीना था--(ग़ज़ल)-- मिथिलेश वामनकर - Open Books Online2024-03-29T15:29:20Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A707837&xn_auth=noआदरणीय मनन जी, ग़ज़ल की सराहना…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-28:5170231:Comment:7100122015-10-28T16:51:54.643Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p><span>आदरणीय मनन जी, </span><span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p>
<p><span>आदरणीय मनन जी, </span><span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p> अच्छी गजल मिथिलेश जी आपने,शुक…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-25:5170231:Comment:7094152015-10-25T12:14:01.694ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
अच्छी गजल मिथिलेश जी आपने,शुक्रिया
अच्छी गजल मिथिलेश जी आपने,शुक्रिया आदरणीय दिग्विजय जी आपके मुखर…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-22:5170231:Comment:7084202015-10-22T17:47:26.571Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय दिग्विजय जी आपके मुखर अनुमोदन को पाकर दिल खुश हो गया है <span>ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. इस ग़ज़ल पर आपने मुझे '<strong>गजलो के</strong><span> </span><strong>राजकुमार'</strong> कहकर मान दिया उसके लिए हार्दिक आभार. यकीन मानिए इस मंच पर आप प्रस्तुत हुई गुनीजनों की गज़लें पढ़ेंगे तो आप पायेंगे यहाँ ग़ज़लों के बादशाह हैं जिनसे मैं थोड़ा बहुत सीख सका हूँ. सादर </span></p>
<p>आदरणीय दिग्विजय जी आपके मुखर अनुमोदन को पाकर दिल खुश हो गया है <span>ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. इस ग़ज़ल पर आपने मुझे '<strong>गजलो के</strong><span> </span><strong>राजकुमार'</strong> कहकर मान दिया उसके लिए हार्दिक आभार. यकीन मानिए इस मंच पर आप प्रस्तुत हुई गुनीजनों की गज़लें पढ़ेंगे तो आप पायेंगे यहाँ ग़ज़लों के बादशाह हैं जिनसे मैं थोड़ा बहुत सीख सका हूँ. सादर </span></p> आदरणीया कांता जी, ग़ज़ल की सरा…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-22:5170231:Comment:7083222015-10-22T17:42:06.295Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p><span>आदरणीया कांता जी, </span><span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p>
<p><span>आदरणीया कांता जी, </span><span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p> मैं आपकी गजल जब जब पढ़ता हूँ…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-22:5170231:Comment:7080962015-10-22T08:30:46.733ZDIGVIJAYhttp://www.openbooksonline.com/profile/DIGVIJAY
<p>मैं आपकी गजल जब जब पढ़ता हूँ तो मुझे आश्चर्य होता हैं कि कोई कैसे इतनी बेहतर-बेहतर गजले इतनी सादगी और साधारण शब्दो में कह सकता हैं.....सलाम आपको <strong>गजलो के</strong> <strong>राजकुमार </strong>।<strong> </strong>सादर</p>
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<p>मैं आपकी गजल जब जब पढ़ता हूँ तो मुझे आश्चर्य होता हैं कि कोई कैसे इतनी बेहतर-बेहतर गजले इतनी सादगी और साधारण शब्दो में कह सकता हैं.....सलाम आपको <strong>गजलो के</strong> <strong>राजकुमार </strong>।<strong> </strong>सादर</p>
<p></p> बंदगी जिनका सफीना था, वही पार…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:Comment:7079572015-10-21T20:19:37.287Zkanta royhttp://www.openbooksonline.com/profile/kantaroy
बंदगी जिनका सफीना था, वही पार गए<br />
नाखुदाओं पे भरोसा जो किया, हार गए..... वाह !!! इस शेर में आपने क्या बात कर दी है आदरणीय मिथिलेश जी । आपकी गजल पढ कर सच में मन हरा हो उठता है ।
बंदगी जिनका सफीना था, वही पार गए<br />
नाखुदाओं पे भरोसा जो किया, हार गए..... वाह !!! इस शेर में आपने क्या बात कर दी है आदरणीय मिथिलेश जी । आपकी गजल पढ कर सच में मन हरा हो उठता है । आदरणीय श्याम जी, ग़ज़ल की सराह…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:Comment:7080232015-10-21T09:20:12.677Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय श्याम जी, <span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p>
<p>आदरणीय श्याम जी, <span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार</span></p> आदरणीय जयनित जी ग़ज़ल की सराहन…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:Comment:7080222015-10-21T09:19:57.500Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय जयनित जी <span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आदरणीय रवि जी की बात से मैं भी सहमत हूँ. सादर </span><span><br/></span></p>
<p>आदरणीय जयनित जी <span> ग़ज़ल की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. आदरणीय रवि जी की बात से मैं भी सहमत हूँ. सादर </span><span><br/></span></p> आदरणीय रवि जी ग़ज़ल पर विलम्ब स…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:Comment:7081092015-10-21T09:18:51.222Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय रवि जी ग़ज़ल पर विलम्ब से उपस्थित हुआ हूँ. इसलिए क्षमा चाहता हूँ. आपका हार्दिक आभार कि आदरणीय जयनित जी की शंका पर आपने स्वयं आगे आकर समाधान साझा किया. ये मंच के प्रति आपके समर्पण को ही इंगित करता है. पुनः आभार </p>
<p>आदरणीय रवि जी ग़ज़ल पर विलम्ब से उपस्थित हुआ हूँ. इसलिए क्षमा चाहता हूँ. आपका हार्दिक आभार कि आदरणीय जयनित जी की शंका पर आपने स्वयं आगे आकर समाधान साझा किया. ये मंच के प्रति आपके समर्पण को ही इंगित करता है. पुनः आभार </p> आदरणीय जयनित जी जो अल्फ़ाज़…tag:www.openbooksonline.com,2015-10-21:5170231:Comment:7077932015-10-21T07:17:58.903ZRavi Shuklahttp://www.openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय जयनित जी जो अल्फ़ाज़ आपको नहीं समझ आ रहे मंच पर बेहिचक रखिये सभी मित्र अपनी समझ के अनुसार उसे साझा कर लेंगे जिससे आप ग़ज़ल का पूरा लुत्फ़ ले सकेगें ।</p>
<p>आदरणीय जयनित जी जो अल्फ़ाज़ आपको नहीं समझ आ रहे मंच पर बेहिचक रखिये सभी मित्र अपनी समझ के अनुसार उसे साझा कर लेंगे जिससे आप ग़ज़ल का पूरा लुत्फ़ ले सकेगें ।</p>