Comments - ऑक्सीजन - (लघुकथा) - मिथिलेश वामनकर - Open Books Online2024-03-28T23:55:33Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A690570&xn_auth=noआदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा के…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6919402015-08-25T11:33:19.830Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p><span>आदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा के मर्म पर आपका मुखर अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. आपकी आत्मीय प्रशंसा से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन </span></p>
<p><span>आदरणीया राजेश दीदी, लघुकथा के मर्म पर आपका मुखर अनुमोदन पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. आपकी आत्मीय प्रशंसा से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन </span></p> स्त्री को गहने प्रिय होते हैं…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6919292015-08-25T07:56:33.174Zrajesh kumarihttp://www.openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>स्त्री को गहने प्रिय होते हैं ये बात अपनी जगह सही है किन्तु वही स्त्री वक़्त पड़ने पर खुद उन गहनों को उतार कर हाथ पर रख देती है ऐसे उदाहरण जीवन में बहुत देखे भी हैं गहने एक तरफ जहाँ तन की शोभा हैं वहीँ जरूरत वक़्त के लिए एक तरह से सेविंग भी |इस लघु कथा का सन्देश भी इसी बात पर निर्भर है बहुत अच्छी लघु कथा लिखी मिथिलेश भैया हार्दिक बधाई |</p>
<p>स्त्री को गहने प्रिय होते हैं ये बात अपनी जगह सही है किन्तु वही स्त्री वक़्त पड़ने पर खुद उन गहनों को उतार कर हाथ पर रख देती है ऐसे उदाहरण जीवन में बहुत देखे भी हैं गहने एक तरफ जहाँ तन की शोभा हैं वहीँ जरूरत वक़्त के लिए एक तरह से सेविंग भी |इस लघु कथा का सन्देश भी इसी बात पर निर्भर है बहुत अच्छी लघु कथा लिखी मिथिलेश भैया हार्दिक बधाई |</p> आदरणीय जितेन्द्र जी आप जैसे ल…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6920122015-08-25T05:29:31.538Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय जितेन्द्र जी आप जैसे लघुकथाकार से सकारात्मक टीप पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. लघुकथा के मुखर अनुमोदन से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.</p>
<p>आदरणीय जितेन्द्र जी आप जैसे लघुकथाकार से सकारात्मक टीप पाना मेरे लिए बहुत मायने रखता है. लघुकथा के मुखर अनुमोदन से मुग्ध हूँ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.</p> आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आप…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6918692015-08-25T05:27:35.116Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने सर,<span>गहने होते ही इसीलिये हैं. </span> लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन </p>
<p>आदरणीय गिरिराज सर, सही कहा आपने सर,<span>गहने होते ही इसीलिये हैं. </span> लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. नमन </p> आदरणीय मिथिलेश भाई , गहने होत…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6917022015-08-25T04:39:45.718Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय मिथिलेश भाई , गहने होते ही इसीलिये हैं , जब तक कठिन स्थिति न आये शरीर की शोभा बढाये नहीं तो घर की इज़्ज़त बचाये । अच्छी लगी आपकी लघुकथा । बधाई आपको ।</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश भाई , गहने होते ही इसीलिये हैं , जब तक कठिन स्थिति न आये शरीर की शोभा बढाये नहीं तो घर की इज़्ज़त बचाये । अच्छी लगी आपकी लघुकथा । बधाई आपको ।</p> बहुत सुंदर , आदरणीय मिथिलेश ज…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-24:5170231:Comment:6917502015-08-24T22:06:24.770Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya
<p>बहुत सुंदर , आदरणीय मिथिलेश जी. आपकी लघुकथा हर तरह से कसौटी पर कसी हुई है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई</p>
<p>बहुत सुंदर , आदरणीय मिथिलेश जी. आपकी लघुकथा हर तरह से कसौटी पर कसी हुई है. प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई</p> आदरणीय वीरेंदर जी, लघुकथा की…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-23:5170231:Comment:6914052015-08-23T18:04:54.233Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय वीरेंदर जी, <span>लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. //<span> <span>कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है।// आपके मार्गदर्शन के सापेक्ष पुनर्विचार करता हूँ. सादर </span></span></span></p>
<p>आदरणीय वीरेंदर जी, <span>लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. //<span> <span>कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है।// आपके मार्गदर्शन के सापेक्ष पुनर्विचार करता हूँ. सादर </span></span></span></p> आदरणीया कांता जी, लघुकथा की स…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-23:5170231:Comment:6915862015-08-23T18:03:11.445Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीया कांता जी, <span>लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.</span></p>
<p>आदरणीया कांता जी, <span>लघुकथा की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.</span></p> आदः मिथिलेश जी रचना पर प्रतिक…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-23:5170231:Comment:6913692015-08-23T05:55:55.261ZVIRENDER VEER MEHTAhttp://www.openbooksonline.com/profile/VIRENDERMEHTAVEERMEHTA
आदः मिथिलेश जी रचना पर प्रतिक्रिया आ ही चुकी है फिर भी इस मध्यम वर्ग की भावपूर्ण प्रस्तुति पर सादर बधाई। (आदः भाई जी मुझे इस कथा में कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है। एक विचार मात्र भाई जी, सादर।)
आदः मिथिलेश जी रचना पर प्रतिक्रिया आ ही चुकी है फिर भी इस मध्यम वर्ग की भावपूर्ण प्रस्तुति पर सादर बधाई। (आदः भाई जी मुझे इस कथा में कर्ज की बात बार बार करने की पीछे शायद उनकी परेशानी पर जोर डालने की कोशिश की गयी है जो थोड़ा सा कथा को बोझिल भी करती है। एक विचार मात्र भाई जी, सादर।) वाह !!!!बडी भीनी - भीनी सी लघ…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6911982015-08-22T13:28:09.358Zkanta royhttp://www.openbooksonline.com/profile/kantaroy
वाह !!!!बडी भीनी - भीनी सी लघुकथा बनी है आदरणीय मिथिलेश जी । बधाई स्वीकार करें ।
वाह !!!!बडी भीनी - भीनी सी लघुकथा बनी है आदरणीय मिथिलेश जी । बधाई स्वीकार करें ।