Comments - दो गज़लें - Open Books Online2024-03-28T19:10:09Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A673339&xn_auth=noआदरणीय Rana Pratap Singh जी…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-27:5170231:Comment:6818112015-07-27T09:18:19.269ZHarash Mahajanhttp://www.openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh">Rana Pratap Singh</a><a class="nolink"> </a> जी बहुत ही अच्छी और सशक्त ग़ज़ल हुई है | प्रेरित करने वाली !! हार्दिल बधाई सर !<br/>साभार</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh">Rana Pratap Singh</a><a class="nolink"> </a> जी बहुत ही अच्छी और सशक्त ग़ज़ल हुई है | प्रेरित करने वाली !! हार्दिल बधाई सर !<br/>साभार</p> वाह ! एक अरसे बाद आपकी प्रस्त…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-16:5170231:Comment:6775752015-07-16T17:49:07.822ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह ! एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुतियों को पटल पर देख कर अच्छा लगा. दोनों ग़ज़लें बहुत ही सुन्दर हुई हैं. दोनों ग़ज़लों के सभी शेर कोटेबल हैं. दिली दाद लीजिये राणा भाई.<br/><br/></p>
<p>वाह ! एक अरसे बाद आपकी प्रस्तुतियों को पटल पर देख कर अच्छा लगा. दोनों ग़ज़लें बहुत ही सुन्दर हुई हैं. दोनों ग़ज़लों के सभी शेर कोटेबल हैं. दिली दाद लीजिये राणा भाई.<br/><br/></p> वाह दोनों ग़ज़ले खूबसूरत हुई…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-12:5170231:Comment:6759802015-07-12T11:50:39.100ZMAHIMA SHREEhttp://www.openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>वाह दोनों ग़ज़ले खूबसूरत हुई हैं..बधाई</p>
<p>वाह दोनों ग़ज़ले खूबसूरत हुई हैं..बधाई</p> बेहतरीन आदरणीय राना जी.tag:www.openbooksonline.com,2015-07-09:5170231:Comment:6740712015-07-09T03:49:02.138Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>बेहतरीन आदरणीय राना जी.</p>
<p>बेहतरीन आदरणीय राना जी.</p> जब जब आँखों से तुमको पढने चले…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6741872015-07-08T19:10:18.615Zshree suneelhttp://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel
जब जब आँखों से तुमको पढने चले<br />
तब तब धड़कन की मनमानी हो गई... ख़ूब .. बहुत ख़ूब<br />
<br />
वो उड़ने का अपने हुनर बेचता है<br />
परिंदा कटे अपने पर बेचता है. .. व्वाहह! क्या बात है!<br />
आदरणीय राणा प्रताप सर जी, इन ख़ूबसूरत ग़ज़लों के लिए दिल से बधाइयाँ आपको. खा़स तौर से दूसरी ग़ज़ल के लिए. सादर.
जब जब आँखों से तुमको पढने चले<br />
तब तब धड़कन की मनमानी हो गई... ख़ूब .. बहुत ख़ूब<br />
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वो उड़ने का अपने हुनर बेचता है<br />
परिंदा कटे अपने पर बेचता है. .. व्वाहह! क्या बात है!<br />
आदरणीय राणा प्रताप सर जी, इन ख़ूबसूरत ग़ज़लों के लिए दिल से बधाइयाँ आपको. खा़स तौर से दूसरी ग़ज़ल के लिए. सादर. खूब सुन्दर गजल के लिए हार्दिक…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6743322015-07-08T13:12:27.114Znarendrasinh chauhanhttp://www.openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>खूब सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई</p>
<p>खूब सुन्दर गजल के लिए हार्दिक बधाई</p> आदरणीय राणा भाई , बहुत शुक्रि…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6743152015-07-08T12:22:54.307Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय राणा भाई , बहुत शुक्रिया , एक अलिफ वस्ल तक ही समझ पाया था , दूसरे की कल्पना भी नही कर पाया । अब समझ आ गया । आपका बहुत आभार ।</p>
<p>आदरणीय राणा भाई , बहुत शुक्रिया , एक अलिफ वस्ल तक ही समझ पाया था , दूसरे की कल्पना भी नही कर पाया । अब समझ आ गया । आपका बहुत आभार ।</p> आदरणीय धर्मेन्द्र भैया आपके अ…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6742142015-07-08T12:00:45.263ZRana Pratap Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय धर्मेन्द्र भैया आपके अनुमोदन से लेखन सार्थक हुआ|</p>
<p>आदरणीय धर्मेन्द्र भैया आपके अनुमोदन से लेखन सार्थक हुआ|</p> भाई कृष्ण मिश्र जी आपने गजलों…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6740272015-07-08T12:00:19.048ZRana Pratap Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>भाई कृष्ण मिश्र जी आपने गजलों को पसंद किया यह हमारी खुशकिस्मती है|</p>
<p>भाई कृष्ण मिश्र जी आपने गजलों को पसंद किया यह हमारी खुशकिस्मती है|</p> आदरणीय गिरिराज जी नवाजिश करम…tag:www.openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6743142015-07-08T11:59:27.643ZRana Pratap Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय गिरिराज जी नवाजिश करम मेहरबानी है आपकी| आपने जिस मिसरे की तकतीअ करने को कहा है दरअसल वहां पर दो बार लगातार अलिफ़ वस्ल हुआ है </p>
<p>वो/1/उन/२/को/२ ब/1/से/२/के/२/क/1/कर/२/बे/२/च/1/ता/२/है/२</p>
<p></p>
<p>सादर|</p>
<p>आदरणीय गिरिराज जी नवाजिश करम मेहरबानी है आपकी| आपने जिस मिसरे की तकतीअ करने को कहा है दरअसल वहां पर दो बार लगातार अलिफ़ वस्ल हुआ है </p>
<p>वो/1/उन/२/को/२ ब/1/से/२/के/२/क/1/कर/२/बे/२/च/1/ता/२/है/२</p>
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<p>सादर|</p>