Comments - ग़ज़ल -- बह्र-ए-शिकस्ता में एक प्रयास (मिथिलेश वामनकर) - Open Books Online2024-03-29T13:39:44Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A651072&xn_auth=noआदरणीय विजय निकोर सर सराहना औ…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-13:5170231:Comment:6543762015-05-13T16:14:05.005Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
आदरणीय विजय निकोर सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।<br />
नमन।
आदरणीय विजय निकोर सर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार।<br />
नमन। बहुत ही खूबसूरत गज़ल।आनंद आ गय…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-13:5170231:Comment:6542422015-05-13T01:55:31.047Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>बहुत ही खूबसूरत गज़ल।आनंद आ गया।</p>
<p>बहुत ही खूबसूरत गज़ल।आनंद आ गया।</p> आदरणीय गोपाल सर सराहना हेतु ह…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6520292015-05-07T17:18:38.666Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
आदरणीय गोपाल सर सराहना हेतु हार्दिक आभार।
आदरणीय गोपाल सर सराहना हेतु हार्दिक आभार। बहुत खूब आदरणीय . गुनीजन सब क…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6520182015-05-07T15:57:54.952Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>बहुत खूब आदरणीय . गुनीजन सब कुछ कह ही चुके हैं . सादर .</p>
<p>बहुत खूब आदरणीय . गुनीजन सब कुछ कह ही चुके हैं . सादर .</p> आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सराहना…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6520092015-05-07T11:31:18.316Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सराहना हेतु हार्दिक आभार </p>
<p>आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सराहना हेतु हार्दिक आभार </p> तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ु…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6518492015-05-07T09:53:07.704Znarendrasinh chauhanhttp://www.openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा</p>
<p>मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे</p>
<p>बहोत खूब सुन्दर</p>
<p></p>
<p>तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा</p>
<p>मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे</p>
<p>बहोत खूब सुन्दर</p>
<p></p> आदरणीय आशुतोष जी ग़ज़ल की सराहन…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6518362015-05-07T08:33:22.981Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
आदरणीय आशुतोष जी ग़ज़ल की सराहना हेतु हार्दिक आभार।
आदरणीय आशुतोष जी ग़ज़ल की सराहना हेतु हार्दिक आभार। आदरणीय मिथिलेश जी ..इस कामयाब…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-07:5170231:Comment:6516792015-05-07T06:47:04.913ZDr Ashutosh Mishrahttp://www.openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>आदरणीय मिथिलेश जी ..इस कामयाब ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..हर शेर एक से बढ़कर एक है </p>
<p>आदरणीय मिथिलेश जी ..इस कामयाब ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..हर शेर एक से बढ़कर एक है </p> आदरणीय सौरभ सर,
इस बह्र पर प्…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-06:5170231:Comment:6517282015-05-06T19:00:34.056Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
आदरणीय सौरभ सर,<br />
इस बह्र पर प्रयास आपको पसंद आया लिखना सार्थक हो गया। आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदैव अच्छा लिखने के लिए प्रेरित होता हूँ।<br />
इस प्रयास के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार।<br />
नमन।
आदरणीय सौरभ सर,<br />
इस बह्र पर प्रयास आपको पसंद आया लिखना सार्थक हो गया। आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदैव अच्छा लिखने के लिए प्रेरित होता हूँ।<br />
इस प्रयास के अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार।<br />
नमन। आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी ग़ज़ल की…tag:www.openbooksonline.com,2015-05-06:5170231:Comment:6515592015-05-06T16:50:50.985ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी ग़ज़ल की बहर और उसपर से इसकी कहन दोनों मुग्ध कर रही हैं. निम्नलिखित शेरों ने तो बस मोह लिया. <br></br><br></br>यहाँ अपने आप से मैं रहा बेखबर हमेशा<br></br>मैं मशीन हो गया हूँ मुझे आदमी बना दे<br></br><br></br>जो नसीब में है कासा तो गुमान क्यों ज़रा सा<br></br>ये हुनर नहीं है मुझमें, मुझे माँगना सिखा दे<br></br><br></br>तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा<br></br>मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे<br></br><br></br>दिल से शुभकामनाएँ व बधाइयाँ <br></br><br></br> <br></br>भाई, हम सलाह तो नहीं दे सकते, लेकिन तीन-वीन बजे…</p>
<p>आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी ग़ज़ल की बहर और उसपर से इसकी कहन दोनों मुग्ध कर रही हैं. निम्नलिखित शेरों ने तो बस मोह लिया. <br/><br/>यहाँ अपने आप से मैं रहा बेखबर हमेशा<br/>मैं मशीन हो गया हूँ मुझे आदमी बना दे<br/><br/>जो नसीब में है कासा तो गुमान क्यों ज़रा सा<br/>ये हुनर नहीं है मुझमें, मुझे माँगना सिखा दे<br/><br/>तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा<br/>मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे<br/><br/>दिल से शुभकामनाएँ व बधाइयाँ <br/><br/> <br/>भाई, हम सलाह तो नहीं दे सकते, लेकिन तीन-वीन बजे तक न जगा करें. वैसे निशाचरी का एक अलग ही मज़ा है !<br/>शुभ-शुभ<br/><br/></p>