Comments - जो न सोचा था कभी............'जान' गोरखपुरी - Open Books Online2024-03-29T14:26:12Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A636492&xn_auth=noआ० जितेन्द्र सर! आपकी सराहना…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6375132015-04-02T07:12:52.518ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० जितेन्द्र सर! आपकी सराहना से बल मिला,बहुत बहुत शुक्रिया!</p>
<p>आ० जितेन्द्र सर! आपकी सराहना से बल मिला,बहुत बहुत शुक्रिया!</p> आदरणीय nilesh Shevgaonkar सर!…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6375122015-04-02T07:11:56.410ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आदरणीय nilesh Shevgaonkar सर!जब लगन लगा दी है,लगाने वाले ने तो रुकने,छुटने की बात ही कहाँ आती है??,बस आप जैसे अग्रजों का पावन सानिध्य और मार्गदर्शन मिलता रहे!रचना पर आपका मार्गदर्शन पाकर अभिभूत हूँ!बहुत बहुत आभार!</p>
<p>आदरणीय nilesh Shevgaonkar सर!जब लगन लगा दी है,लगाने वाले ने तो रुकने,छुटने की बात ही कहाँ आती है??,बस आप जैसे अग्रजों का पावन सानिध्य और मार्गदर्शन मिलता रहे!रचना पर आपका मार्गदर्शन पाकर अभिभूत हूँ!बहुत बहुत आभार!</p> आ० मिथिलेश सर आपकी उपस्थिति स…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6373812015-04-02T07:05:53.763ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० मिथिलेश सर आपकी उपस्थिति सदा मूल्यवान रहती है,जी बिल्कुल मै आप सभी अग्रजों की बातों को सूत्र मानकर स्वध्याय कर रहा हूँ!आभार!</p>
<p>आ० मिथिलेश सर आपकी उपस्थिति सदा मूल्यवान रहती है,जी बिल्कुल मै आप सभी अग्रजों की बातों को सूत्र मानकर स्वध्याय कर रहा हूँ!आभार!</p> आ० गोपाल सर मेरी रचनाओ पर आपक…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6372052015-04-02T07:02:12.735ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० गोपाल सर मेरी रचनाओ पर आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलना मेरा सौभाग्य है,आपके स्नेह से मै अभिभूत हूँ!<br></br> जो लाज्तमा -ए-जुज्ब- ए -रदीफैंन दोष दोष आ रहा है,वह जानकार ही किया है,क्युकी सर कोई और तरह से शब्द रखने से मै संतुष्ट नही हो पा रहा था!इसके लिए क्षमा चाहूँगा!सर यह रचना मैंने २००६ में लिखी थी,इसे बहर में रखकर मैंने यहाँ प्रस्तुत करने की कोशिश की है!मूल तरनुनुम गायन का रूप न बिगड़े,इसलिये कहन में दोष आ जा रहा है.ये मेरा विकार है कि मै कहन के मामले में अभी कच्चा हूँ!धीरे-धीरे सुधार कर…</p>
<p>आ० गोपाल सर मेरी रचनाओ पर आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलना मेरा सौभाग्य है,आपके स्नेह से मै अभिभूत हूँ!<br/> जो लाज्तमा -ए-जुज्ब- ए -रदीफैंन दोष दोष आ रहा है,वह जानकार ही किया है,क्युकी सर कोई और तरह से शब्द रखने से मै संतुष्ट नही हो पा रहा था!इसके लिए क्षमा चाहूँगा!सर यह रचना मैंने २००६ में लिखी थी,इसे बहर में रखकर मैंने यहाँ प्रस्तुत करने की कोशिश की है!मूल तरनुनुम गायन का रूप न बिगड़े,इसलिये कहन में दोष आ जा रहा है.ये मेरा विकार है कि मै कहन के मामले में अभी कच्चा हूँ!धीरे-धीरे सुधार कर रहा हूँ!आशीर्वाद बनाये रक्खे आदरणीय!</p> आ० विजय सरजी हैस्लाफजई के लिए…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6374402015-04-02T06:48:43.357ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० विजय सरजी हैस्लाफजई के लिए बहुत बहुत आभार!</p>
<p>आ० विजय सरजी हैस्लाफजई के लिए बहुत बहुत आभार!</p> आ० हरिप्रकाश सरजी! रचना के अन…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6374392015-04-02T06:48:02.500ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>आ० हरिप्रकाश सरजी! रचना के अनुमोदन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!</p>
<p>आ० हरिप्रकाश सरजी! रचना के अनुमोदन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!</p> आ० sushil sarna जी आभार!tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6372972015-04-02T06:46:54.054ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://www.openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
आ० sushil sarna जी आभार!
आ० sushil sarna जी आभार! आदतन हम कुछ किसी से मांग ना स…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-02:5170231:Comment:6373342015-04-02T04:14:48.124Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya
<p>आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके</p>
<p>और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये.......बहुत सुंदर. इस अशआर पर विशेष बधाई स्वीकारें</p>
<p>आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके</p>
<p>और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये.......बहुत सुंदर. इस अशआर पर विशेष बधाई स्वीकारें</p> और हाँ सिया किये भी ठीक नहीं…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-01:5170231:Comment:6368042015-04-01T08:52:02.851ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>और हाँ सिया किये भी ठीक नहीं है .. सिला किये प्रयुक्त होना चाहिए शायद </p>
<p>और हाँ सिया किये भी ठीक नहीं है .. सिला किये प्रयुक्त होना चाहिए शायद </p> आ. अच्छा प्रयास हुआ है. कहन अ…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-01:5170231:Comment:6368962015-04-01T08:49:49.103ZNilesh Shevgaonkarhttp://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. अच्छा प्रयास हुआ है. <br></br>कहन अपूर्ण है. जहाँ तक काफिये का सवाल है उसे ठीक से निभाया है आपने पर कहन के अधूरे पन ने बात संप्रेषित नहीं होने दी है.<br></br>आ. डॉ श्रीवास्तव साहब की बात को आगे बढाते हुए ये कहूँगा कि एक दिया तो देने वाला लगा और एक दिया असल में दीया (दीपक) है. दीये को दिया लिखना जायज़ है लेकिन काफ़िये में मात्रापतन अपने आप में एक दोष है.<br></br>काफिये के आसपास ग़ज़ल बुनी जारी है और वहीँ यदि मात्रा गिरानी पड़े तो गड़बड़ हो जाती है.<br></br>आपके प्रयास के लिए आपको बधाई. चल पड़े हैं तो मंज़िल मिल ही…</p>
<p>आ. अच्छा प्रयास हुआ है. <br/>कहन अपूर्ण है. जहाँ तक काफिये का सवाल है उसे ठीक से निभाया है आपने पर कहन के अधूरे पन ने बात संप्रेषित नहीं होने दी है.<br/>आ. डॉ श्रीवास्तव साहब की बात को आगे बढाते हुए ये कहूँगा कि एक दिया तो देने वाला लगा और एक दिया असल में दीया (दीपक) है. दीये को दिया लिखना जायज़ है लेकिन काफ़िये में मात्रापतन अपने आप में एक दोष है.<br/>काफिये के आसपास ग़ज़ल बुनी जारी है और वहीँ यदि मात्रा गिरानी पड़े तो गड़बड़ हो जाती है.<br/>आपके प्रयास के लिए आपको बधाई. चल पड़े हैं तो मंज़िल मिल ही जाएगी. रुकियेगा मत.<br/>सादर </p>