Comments - आओं ना यार चले .... (मिथिलेश वामनकर) - Open Books Online2024-03-29T08:32:04Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A599105&xn_auth=noआदरणीय khursheed khairadi ज…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-29:5170231:Comment:6004862014-12-29T14:27:34.182Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/khursheedkhairadi" class="fn url">khursheed khairadi</a><span> </span> जी नवगीत के इस प्रयास पर आप के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. हार्दिक धन्यवाद </p>
<p>आदरणीय <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/khursheedkhairadi" class="fn url">khursheed khairadi</a><span> </span> जी नवगीत के इस प्रयास पर आप के स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ. हार्दिक धन्यवाद </p> उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-29:5170231:Comment:6003962014-12-29T10:20:33.033Zkhursheed khairadihttp://www.openbooksonline.com/profile/khursheedkhairadi
<p>उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे</p>
<p>मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से </p>
<p>आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........</p>
<p> </p>
<p>क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था</p>
<p>था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो </p>
<p>खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......</p>
<p> आदरणीय मिथिलेश जी सभी बंध सुन्दर बने हैं , सरस भाव ,सहज लय और अनुराग एवं आशा की गति हर शब्द के साथ ध्वनित हो रही है |सादर अभिनन्दन |</p>
<p>उतनी ही प्यास रहे, जितना विश्वास रहे</p>
<p>मन की तरंगों से पुलकित उमंगों से </p>
<p>आशा के विन्दु से जीवन विस्तार चले........</p>
<p> </p>
<p>क्या था जो पाया था, क्या था जो खोया था</p>
<p>था कुछ समेटा जो सारा ही जाया तो </p>
<p>खुशियों की टहनी को थोड़ा सा झार चले.......</p>
<p> आदरणीय मिथिलेश जी सभी बंध सुन्दर बने हैं , सरस भाव ,सहज लय और अनुराग एवं आशा की गति हर शब्द के साथ ध्वनित हो रही है |सादर अभिनन्दन |</p> आदरणीय सोमेश भाई जी बहुत बहुत…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-29:5170231:Comment:6004352014-12-29T05:25:23.779Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
आदरणीय सोमेश भाई जी बहुत बहुत आभार।
आदरणीय सोमेश भाई जी बहुत बहुत आभार। काव्य-विधा पर सौरभ सर का आना…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002892014-12-28T17:52:32.855Zsomesh kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/someshkuar
<p>काव्य-विधा पर सौरभ सर का आना और उसे सार्थक कहना ही रचना की सफ़लता को इंगित कर देता है |ऐसे में कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचता |साधुवाद </p>
<p>काव्य-विधा पर सौरभ सर का आना और उसे सार्थक कहना ही रचना की सफ़लता को इंगित कर देता है |ऐसे में कहने के लिए कुछ भी शेष नहीं बचता |साधुवाद </p> आदरणीय सौरभ सर आपने गीत-नवगी…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6003502014-12-28T16:32:26.012Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर आपने गीत-नवगीत के विषय में बहुत सही कहा - \\<span>गीत-नवगीतों का अध्ययन\\<span>तदनुरूप प्रयास\\</span></span></p>
<p>आदरणीय राहुल भाई जी ओ बी ओ पर नवगीत पर आदरणीय सौरभ सर का आलेख और उपलब्ध नवगीत पढ़े.. मेरे लिए यही सहायक रहा है .</p>
<p></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर आपने गीत-नवगीत के विषय में बहुत सही कहा - \\<span>गीत-नवगीतों का अध्ययन\\<span>तदनुरूप प्रयास\\</span></span></p>
<p>आदरणीय राहुल भाई जी ओ बी ओ पर नवगीत पर आदरणीय सौरभ सर का आलेख और उपलब्ध नवगीत पढ़े.. मेरे लिए यही सहायक रहा है .</p>
<p></p> गीत-नवगीतों को लेकर ऐसे ही प्…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002782014-12-28T16:05:57.359ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>गीत-नवगीतों को लेकर ऐसे ही प्रश्न भाई राहुलजी ने मुझसे भी कई-कई-कई बार पूछे हैं. <br></br> मैं भाई राहुलजी को पहली बार ही यह सुझाव दे दिया था कि वे जितना हो सके गीत-नवगीतों का अध्ययन करें. तदनुरूप प्रयास करें. क्योंकि ऐसे प्रश्नों का सार्थक उत्तर मात्र और मात्र स्वाध्याय से ही संभव है. अन्यथा रेडीमेड उत्तर जो स्पून-फीडिंग के समकक्ष ही होंगे से कोई साहित्य साधना संभव नहीं है. अध्ययन के लिए इस मंच पर भी कई-कई गीत-नवगीत पोस्ट हुए हैं. इन सभी बातों को मैं मुखर हो कर साझा कर चुका हूँ.</p>
<p>मैं…</p>
<p>गीत-नवगीतों को लेकर ऐसे ही प्रश्न भाई राहुलजी ने मुझसे भी कई-कई-कई बार पूछे हैं. <br/> मैं भाई राहुलजी को पहली बार ही यह सुझाव दे दिया था कि वे जितना हो सके गीत-नवगीतों का अध्ययन करें. तदनुरूप प्रयास करें. क्योंकि ऐसे प्रश्नों का सार्थक उत्तर मात्र और मात्र स्वाध्याय से ही संभव है. अन्यथा रेडीमेड उत्तर जो स्पून-फीडिंग के समकक्ष ही होंगे से कोई साहित्य साधना संभव नहीं है. अध्ययन के लिए इस मंच पर भी कई-कई गीत-नवगीत पोस्ट हुए हैं. इन सभी बातों को मैं मुखर हो कर साझा कर चुका हूँ.</p>
<p>मैं समझता था, मेरे उपर्युक्त सुझाव के बाद भाई राहुलजी को कोई संशय नहीं रहना था. मुझे यह भी लगा, कि मेरे उस सुझाव के बाद आगे मेरे द्वारा उन्हें उत्तर न मिलना मेरे द्वारा अनदेखी की गयी ऐसा कत्तई नहीं समझा गया होगा. <br/> शुभेच्छाएँ.</p> आदरणीय सौरभ सर, इस गीत को मैं…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6001942014-12-28T16:00:56.747Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, इस गीत को मैं नवगीत नहीं लिख पा रहा था क्योंकि नवगीत में निर्गुण भाव प्रयोग के तौर पर कर रहा था. वास्तव में नवगीत आपके आलेख को पढने के बाद ही लिखना आरम्भ किया... ये मेरा दूसरा नवगीत है और नवगीत में निर्गुण धारा की स्थिति के विषय में स्पष्ट नहीं हूँ. बहुत मन से लिखा यह नवगीत जिन सक्षम और परिपक्व हाथो तक पहुँचाना था वो पहुँच गया है, तुक के शब्दों का चयन विशेष तौर पर आप तक पहुँचाना चाहता था और ये सोच कर भाव विभोर हूँ कि आपने मेरे मनचाहे विषय पर मन को जीत लेने वाली टिप्पणी दी है.…</p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, इस गीत को मैं नवगीत नहीं लिख पा रहा था क्योंकि नवगीत में निर्गुण भाव प्रयोग के तौर पर कर रहा था. वास्तव में नवगीत आपके आलेख को पढने के बाद ही लिखना आरम्भ किया... ये मेरा दूसरा नवगीत है और नवगीत में निर्गुण धारा की स्थिति के विषय में स्पष्ट नहीं हूँ. बहुत मन से लिखा यह नवगीत जिन सक्षम और परिपक्व हाथो तक पहुँचाना था वो पहुँच गया है, तुक के शब्दों का चयन विशेष तौर पर आप तक पहुँचाना चाहता था और ये सोच कर भाव विभोर हूँ कि आपने मेरे मनचाहे विषय पर मन को जीत लेने वाली टिप्पणी दी है. मेरे लिए आपकी टिप्पणी किसी भक्त की प्रार्थना पर भगवान् द्वारा दिए आशीर्वाद के समान है .... आज ह्रदय मंदिर में घंटियाँ बज रही है..... भजन गूँज रहे है..... आरतियाँ हो रही है ... अभिभूत हूँ ... भाव विभोर हूँ . धन्यवाद कहकर इस आशीर्वाद को लघु नहीं करूँगा ... किसी रचनाकार को बार बार ऐसी टिप्पणियाँ नहीं मिलती...शब्द कम पड़ रहे है.बस नमन...</p> आदरणीय राहुल भाई जी, सही कहूं…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6001912014-12-28T15:44:38.948Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय राहुल भाई जी, सही कहूं तो गीत कैसा होता है मैं आज भी नहीं समझा हूँ बस लयात्मकता के साथ भावो से शब्द जोड़ते जाता हूँ और गीत हो जाता है. मुझे लगता है गीत हमारे संस्कारों में ही है. मैं गीतों के शिल्प पर वास्तव में कुछ भी नहीं समझ पाया हूँ. आपने जो प्रश्न किये है मुझे उन्हीं में उत्तर दिख रहा है -</p>
<p><span>१.<span style="text-decoration: line-through;">क्या</span> गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है</span><br></br><span>२.<span style="text-decoration: line-through;">क्या</span> गीत…</span></p>
<p>आदरणीय राहुल भाई जी, सही कहूं तो गीत कैसा होता है मैं आज भी नहीं समझा हूँ बस लयात्मकता के साथ भावो से शब्द जोड़ते जाता हूँ और गीत हो जाता है. मुझे लगता है गीत हमारे संस्कारों में ही है. मैं गीतों के शिल्प पर वास्तव में कुछ भी नहीं समझ पाया हूँ. आपने जो प्रश्न किये है मुझे उन्हीं में उत्तर दिख रहा है -</p>
<p><span>१.<span style="text-decoration: line-through;">क्या</span> गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है</span><br/><span>२.<span style="text-decoration: line-through;">क्या</span> गीत का मुखडेा और अन्तरा अलग अलग बहर मे हो सकते है?</span><br/><span>३.मैंने कुछ ऐसे भी गीत सुने जिनमे मुखडा फिर अन्तरा फिर बिना पुरक पंक्ति के ही टेक लगा दी जाती है! ये भी गीत है </span></p>
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<p>बाकी गुनिजन ही बता सकते है ... सादर </p> आदरणीय मिथिलेश सर क्रपया मेरी…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002722014-12-28T15:34:03.083ZRahul Dangi Panchalhttp://www.openbooksonline.com/profile/RahulDangi
आदरणीय मिथिलेश सर क्रपया मेरी प्रार्थना स्वीकार करें!<br />
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१.क्या गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है<br />
२.क्या गीत का मुखडेा और अन्तरा अलग अलग बहर मे हो सकते है?<br />
३.मैंने कुछ ऐसे भी गीत सुने जिनमे मुखडा फिर अन्तरा फिर बिना पुरक पंक्ति के ही टेक लगा दी जाती है!<br />
क्रपया बताने का कष्ट करें! सादर प्रणाम!
आदरणीय मिथिलेश सर क्रपया मेरी प्रार्थना स्वीकार करें!<br />
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१.क्या गीत स्वत: निर्मित बहर पर लिखा जा सकता है<br />
२.क्या गीत का मुखडेा और अन्तरा अलग अलग बहर मे हो सकते है?<br />
३.मैंने कुछ ऐसे भी गीत सुने जिनमे मुखडा फिर अन्तरा फिर बिना पुरक पंक्ति के ही टेक लगा दी जाती है!<br />
क्रपया बताने का कष्ट करें! सादर प्रणाम! अदभुत रचना आदरणीय वाह जवाब नह…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-28:5170231:Comment:6002692014-12-28T15:27:11.729ZRahul Dangi Panchalhttp://www.openbooksonline.com/profile/RahulDangi
अदभुत रचना आदरणीय वाह जवाब नहीं आपका ! आपसी रचना मैं कब तक कर पाऊंगा! लाजवाब आदरणीय
अदभुत रचना आदरणीय वाह जवाब नहीं आपका ! आपसी रचना मैं कब तक कर पाऊंगा! लाजवाब आदरणीय