Comments - आज यों निर्लज्जता सरिता सी बहती जा रही है - Open Books Online2024-03-29T01:03:15Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A562573&xn_auth=noकैसे हैं ? कहाँ हैं ? बहुत दि…tag:www.openbooksonline.com,2014-08-01:5170231:Comment:5637242014-08-01T12:27:59.457ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>कैसे हैं ? कहाँ हैं ? बहुत दिनों बाद कोई प्रस्तुति आयी है..</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p>
<p>कैसे हैं ? कहाँ हैं ? बहुत दिनों बाद कोई प्रस्तुति आयी है..</p>
<p>शुभ-शुभ</p>
<p></p> मंदिरों के शीर्ष पर भी गर्द च…tag:www.openbooksonline.com,2014-07-30:5170231:Comment:5632072014-07-30T05:21:22.187Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://www.openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p><span>मंदिरों के शीर्ष पर भी गर्द चढ़ती जा रही है --- वाह ! बहुत खूब ! हम कहाँ जा रहे है ? अब ह्रदय में नीरसता ही व्याप रही है </span></p>
<p>हार्दिक बधाई श्री संदीप भाई </p>
<p><span>मंदिरों के शीर्ष पर भी गर्द चढ़ती जा रही है --- वाह ! बहुत खूब ! हम कहाँ जा रहे है ? अब ह्रदय में नीरसता ही व्याप रही है </span></p>
<p>हार्दिक बधाई श्री संदीप भाई </p> संदीप जी
सुन्दर प्रयास है i
ल…tag:www.openbooksonline.com,2014-07-28:5170231:Comment:5625802014-07-28T05:40:54.732Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>संदीप जी</p>
<p>सुन्दर प्रयास है i</p>
<p>लालसा भी कोयले पर स्वर्ण मढ़ती जा रही है</p>
<p> और</p>
<p>घोसलों की शीर्ष पर भी गर्द चढ़ती जा रही है</p>
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<p>संदीप जी</p>
<p>सुन्दर प्रयास है i</p>
<p>लालसा भी कोयले पर स्वर्ण मढ़ती जा रही है</p>
<p> और</p>
<p>घोसलों की शीर्ष पर भी गर्द चढ़ती जा रही है</p>
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