Comments - तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था//शकील जमशेदपुरी// - Open Books Online2024-03-28T14:14:26Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A541382&xn_auth=noशकील भाई, इस ग़ज़ल के लिए बधाई…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-22:5170231:Comment:5433122014-05-22T22:02:14.234ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>शकील भाई, इस ग़ज़ल के लिए बधाई लें .. मतले से ही ग़ज़ल पवान चढ़ जाती है.</p>
<p>ढेर सारी दाद कुबूल करें.</p>
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<p>शकील भाई, इस ग़ज़ल के लिए बधाई लें .. मतले से ही ग़ज़ल पवान चढ़ जाती है.</p>
<p>ढेर सारी दाद कुबूल करें.</p>
<p></p> बहुत ही लाजवाब गज़ल लिखी है।…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-20:5170231:Comment:5425372014-05-20T06:38:42.255Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
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<p>बहुत ही लाजवाब गज़ल लिखी है। बधाई, आदरणीय।</p>
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<p>बहुत ही लाजवाब गज़ल लिखी है। बधाई, आदरणीय।</p> आदरणीय शकील भाई , लाजवाब ग़ज़ल…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-19:5170231:Comment:5423962014-05-19T15:10:20.721Zगिरिराज भंडारीhttp://www.openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय शकील भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , सभी अशाअर सुन्दर लगे , आपको बधाइयाँ ॥</p>
<p>आदरणीय शकील भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , सभी अशाअर सुन्दर लगे , आपको बधाइयाँ ॥</p> लाजवाब शकील साहब!tag:www.openbooksonline.com,2014-05-18:5170231:Comment:5423402014-05-18T15:05:22.841ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>लाजवाब शकील साहब!</p>
<p>लाजवाब शकील साहब!</p> चलो माना मैं पत्थर दिल हूं, ल…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-17:5170231:Comment:5421142014-05-17T13:25:26.529Zgumnaam pithoragarhihttp://www.openbooksonline.com/profile/gumnaampithoragarhi
<p><span class="font-size-3">चलो माना मैं पत्थर दिल हूं, लेकिन हद भी होती है</span><br/><span class="font-size-3">मैं हर इक सिम्त से टूटा, यूं उसने आजमाया था</span><br/><br/></p>
<p><span class="font-size-3">बहुत खूब बधाई स्वीकारें</span></p>
<p><span class="font-size-3">चलो माना मैं पत्थर दिल हूं, लेकिन हद भी होती है</span><br/><span class="font-size-3">मैं हर इक सिम्त से टूटा, यूं उसने आजमाया था</span><br/><br/></p>
<p><span class="font-size-3">बहुत खूब बधाई स्वीकारें</span></p> शुक्रिया जितेन्द्र 'गीत' जी।…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-17:5170231:Comment:5419562014-05-17T11:28:46.863Zशकील समरhttp://www.openbooksonline.com/profile/ShakeelJamshedpuri
<p>शुक्रिया <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya" class="fn url">जितेन्द्र 'गीत'</a> जी। हौसला अफजाई और विस्तृत टिप्पणी के लिए।</p>
<p>शुक्रिया <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya" class="fn url">जितेन्द्र 'गीत'</a> जी। हौसला अफजाई और विस्तृत टिप्पणी के लिए।</p> शकील जी हर अशार बेहतरीन है .आ…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-17:5170231:Comment:5417882014-05-17T08:40:40.160ZDr Ashutosh Mishrahttp://www.openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
<p>शकील जी हर अशार बेहतरीन है .आपके इस शानदार प्रयास के लिए तहे दिल धन्यवाद </p>
<p><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था</span><br/><span class="font-size-3">तुम्हारे प्यार ने ऐसा भी मुझको दिन दिखाया था..क्या दीवानगी है भाई वाह </span></p>
<p>शकील जी हर अशार बेहतरीन है .आपके इस शानदार प्रयास के लिए तहे दिल धन्यवाद </p>
<p><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था</span><br/><span class="font-size-3">तुम्हारे प्यार ने ऐसा भी मुझको दिन दिखाया था..क्या दीवानगी है भाई वाह </span></p> तेरे धोखे को दुनिया भर की नजर…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-16:5170231:Comment:5415782014-05-16T17:45:26.625Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya
<p><span class="font-size-3">तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था</span><br></br><span class="font-size-3">समझ लेना ये तेरे दिल में रहने का किराया था .........</span> वाह! क्या कमाल का मतला हुआ <br></br><br></br><span class="font-size-3">सुनो वो गांव अपना इसलिए मैं छोड़ आया हूं</span><br></br><span class="font-size-3">हमारे प्यार का मौसम वहां पर लौट आया था</span> ..............सच! क्या बात कही है<br></br><br></br><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था…</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-3">तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था</span><br/><span class="font-size-3">समझ लेना ये तेरे दिल में रहने का किराया था .........</span> वाह! क्या कमाल का मतला हुआ <br/><br/><span class="font-size-3">सुनो वो गांव अपना इसलिए मैं छोड़ आया हूं</span><br/><span class="font-size-3">हमारे प्यार का मौसम वहां पर लौट आया था</span> ..............सच! क्या बात कही है<br/><br/><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था</span><br/><span class="font-size-3">तुम्हारे प्यार ने ऐसा भी मुझको दिन दिखाया था</span>............. दिल को छू गया <br/><br/><span class="font-size-3">चलो माना मैं पत्थर दिल हूं, लेकिन हद भी होती है</span><br/><span class="font-size-3">मैं हर इक सिम्त से टूटा, यूं उसने आजमाया था</span>............. बहुत बहुत खूब <br/><br/></p>
<p>बहुत ही खुबसूरत गजल आदरणीय शकील साहब, हर एक शेर बहुत खूब कहा. तहे दिल से बधाइयाँ आपको</p> तेरे धोखे को दुनिया भर की नजर…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-15:5170231:Comment:5414062014-05-15T13:02:12.692Zcoontee mukerjihttp://www.openbooksonline.com/profile/coonteemukerji
<p><span class="font-size-3">तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था</span><br></br><span class="font-size-3">समझ लेना ये तेरे दिल में रहने का किराया था......लाजवाब</span></p>
<p><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था</span><br></br><span class="font-size-3">तुम्हारे प्यार ने ऐसा भी मुझको दिन दिखाया था</span>....अगर आशिक ऐसी गज़ल कहने लगे तो ऐ खुदा उसे बार बार माशूका धोखा देने गुश्तखी करने लगेगी. .....धोखे के गरज से नहीं बल्कि इश्क की मारी.....बहुत उम्दा गज़ल के…</p>
<p><span class="font-size-3">तेरे धोखे को दुनिया भर की नजरों से छिपाया था</span><br/><span class="font-size-3">समझ लेना ये तेरे दिल में रहने का किराया था......लाजवाब</span></p>
<p><span class="font-size-3">तुम्हारी याद की चादर, तुम्हारे गम का बिस्तर था</span><br/><span class="font-size-3">तुम्हारे प्यार ने ऐसा भी मुझको दिन दिखाया था</span>....अगर आशिक ऐसी गज़ल कहने लगे तो ऐ खुदा उसे बार बार माशूका धोखा देने गुश्तखी करने लगेगी. .....धोखे के गरज से नहीं बल्कि इश्क की मारी.....बहुत उम्दा गज़ल के लिये शकील जी दाद कूबूल करें</p>
<p>सादर.</p>
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<p></p> जी बहुत—बहुत धन्यवाद आपका।tag:www.openbooksonline.com,2014-05-15:5170231:Comment:5414032014-05-15T12:27:14.984Zशकील समरhttp://www.openbooksonline.com/profile/ShakeelJamshedpuri
<p>जी बहुत—बहुत धन्यवाद आपका।</p>
<p>जी बहुत—बहुत धन्यवाद आपका।</p>