Comments - गजल - शशि पुरवार - Open Books Online2024-03-28T23:34:29Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A523207&xn_auth=noसुधीजनों ने अपनी बातें कहीं.…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-27:5170231:Comment:5245242014-03-27T20:44:08.444ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>सुधीजनों ने अपनी बातें कहीं. आप समुचित ध्यान दें.</p>
<p>शुभकामनाएँ.</p>
<p></p>
<p>सुधीजनों ने अपनी बातें कहीं. आप समुचित ध्यान दें.</p>
<p>शुभकामनाएँ.</p>
<p></p> अच्छी कोशिश है..मुबारकबादtag:www.openbooksonline.com,2014-03-25:5170231:Comment:5236022014-03-25T03:13:47.892ZMukesh Verma "Chiragh"http://www.openbooksonline.com/profile/ChiraghIndia
<p>अच्छी कोशिश है..मुबारकबाद</p>
<p>अच्छी कोशिश है..मुबारकबाद</p> हार्दिक बधाईtag:www.openbooksonline.com,2014-03-24:5170231:Comment:5236672014-03-24T15:42:41.079Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>हार्दिक बधाई</p>
<p>हार्दिक बधाई</p> अच्छा प्रयास शशि जी tag:www.openbooksonline.com,2014-03-24:5170231:Comment:5236272014-03-24T04:45:53.615ZSarita Bhatiahttp://www.openbooksonline.com/profile/SaritaBhatia
<p>अच्छा प्रयास शशि जी </p>
<p>अच्छा प्रयास शशि जी </p> आदरणीय वीनस जी आभार आपकी गजल…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-24:5170231:Comment:5234602014-03-24T04:27:05.999Zshashi purwarhttp://www.openbooksonline.com/profile/shashipurwar
<p>आदरणीय वीनस जी आभार आपकी गजल पर प्रतक्रिया सुखद प्रतीत हो रही है। आभार , आपने जो मार्गदर्शन किया है गजल को दुरुस्त करती हूँ। बहुत दिनों बाद रुकी कलम को घिसा है , बदलाव करती हूँ और भी कई शेर लिखे है उन्हें भी जोड़ देती हूँ। बहुत बहुत आभार</p>
<p>आदरणीय वीनस जी आभार आपकी गजल पर प्रतक्रिया सुखद प्रतीत हो रही है। आभार , आपने जो मार्गदर्शन किया है गजल को दुरुस्त करती हूँ। बहुत दिनों बाद रुकी कलम को घिसा है , बदलाव करती हूँ और भी कई शेर लिखे है उन्हें भी जोड़ देती हूँ। बहुत बहुत आभार</p> यदा अक ... जैसे शब्द भर्ती के…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-23:5170231:Comment:5235172014-03-23T19:15:00.846Zवीनस केसरीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>यदा अक ... जैसे शब्द भर्ती के प्रतीत हो रहे हैं क्योकि ये अपने वाक्य के साथ सामंजस्य बैठाने में असफल हैं</p>
<p>इता दोष भी दिख रहा है <br/>पूनम का चाँद खिला तो दिल के कली होने का भाव भी कांट्रास्ट पैदा नहीं कर पा रहा है <br/><br/>आपने इससे कहीं अच्छी ग़ज़लें पढवाई हैं,, कई दिन बाद सक्रीय हुआ हों देखता हूँ आपकी वाल पर शायद कुछ और अच्छा पढने को मिले ....</p>
<p>यदा अक ... जैसे शब्द भर्ती के प्रतीत हो रहे हैं क्योकि ये अपने वाक्य के साथ सामंजस्य बैठाने में असफल हैं</p>
<p>इता दोष भी दिख रहा है <br/>पूनम का चाँद खिला तो दिल के कली होने का भाव भी कांट्रास्ट पैदा नहीं कर पा रहा है <br/><br/>आपने इससे कहीं अच्छी ग़ज़लें पढवाई हैं,, कई दिन बाद सक्रीय हुआ हों देखता हूँ आपकी वाल पर शायद कुछ और अच्छा पढने को मिले ....</p> आदरणीय राजेशकुमारी जी तहे दिल…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-23:5170231:Comment:5232032014-03-23T16:26:35.874Zshashi purwarhttp://www.openbooksonline.com/profile/shashipurwar
<p>आदरणीय राजेशकुमारी जी तहे दिल से आभार , गजल पोस्ट करते समय लगा शब्द शायद मिट गया था। </p>
<p></p>
<p>आभार अदरणीय गणेश जी। आपने सुधार कर दिया , उस दिन दो बार गजल पोस्ट की एरर आ रहा था ,</p>
<p>आभार आपने गजल की समीक्षा की।</p>
<p></p>
<p>//डूब कर हमने जिया था काम को<br></br> काम से ही अब अली होने लगी//<br></br> यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .……………। आदरणीय इस शेर में यह कहना चाहा है कि काम को ही पूरी तरह से जिया है डूब कर और काम से ही पहचान होने लगी है। --यहाँ अली की जगह ख़ुशी है। इसे अभी सुधारते …</p>
<p>आदरणीय राजेशकुमारी जी तहे दिल से आभार , गजल पोस्ट करते समय लगा शब्द शायद मिट गया था। </p>
<p></p>
<p>आभार अदरणीय गणेश जी। आपने सुधार कर दिया , उस दिन दो बार गजल पोस्ट की एरर आ रहा था ,</p>
<p>आभार आपने गजल की समीक्षा की।</p>
<p></p>
<p>//डूब कर हमने जिया था काम को<br/> काम से ही अब अली होने लगी//<br/> यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .……………। आदरणीय इस शेर में यह कहना चाहा है कि काम को ही पूरी तरह से जिया है डूब कर और काम से ही पहचान होने लगी है। --यहाँ अली की जगह ख़ुशी है। इसे अभी सुधारते है</p>
<p></p>
<p>//नेक दिल की बात करते है चतुर -- चतुर की जगह छली लिया था जिसमे दोष था इसीलिए चतुर लेना पड़ा। <br/> हर कहे अक से बदी होने लगी//</p>
<p></p>
<p>आदरणीय आशीष जी , शकूर जी तहे दिल से आभार</p>
<p></p> आदरणीया शशिजी ग़ज़ल पे अच्छी…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-23:5170231:Comment:5233462014-03-23T13:35:32.181Zशिज्जु "शकूर"http://www.openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>आदरणीया शशिजी ग़ज़ल पे अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें</p>
<p>आदरणीया शशिजी ग़ज़ल पे अच्छी कोशिश हुई है बधाई स्वीकार करें</p> हारना सीखा नहीं हमने यदादुश्म…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-23:5170231:Comment:5232712014-03-23T10:42:05.657Zआशीष नैथानी 'सलिल'http://www.openbooksonline.com/profile/AshishNaithaniSalil
<p><span>हारना सीखा नहीं हमने यदा</span><br/><span>दुश्मनो में खलबली होने लगी |</span></p>
<p></p>
<p><span>बहुत खूब !!</span></p>
<p><span>हारना सीखा नहीं हमने यदा</span><br/><span>दुश्मनो में खलबली होने लगी |</span></p>
<p></p>
<p><span>बहुत खूब !!</span></p> //जिंदगी जब से सधी होने लगी ज…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-23:5170231:Comment:5232412014-03-23T06:29:48.231ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>//जिंदगी जब से सधी होने लगी<br></br> जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी//</p>
<p>वाह वाह, सुन्दर मतला, उला में "लगी" छुट गया था जिसे मैंने ठीक कर दिया है,</p>
<p></p>
<p>//डूब कर हमने जिया था काम को<br></br> काम से ही अब अली होने लगी//<br></br> यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .</p>
<p></p>
<p>//हारना सीखा नहीं हमने यदा<br></br> दुश्मनो में खलबली होने लगी//<br></br> अरे वाह,बहुत बढ़िया,अच्छा शेर है .</p>
<p></p>
<p>//नेक दिल की बात करते है चतुर<br></br> हर कहे अक से बदी होने लगी//</p>
<p>ठीक है।</p>
<p></p>
<p>//चाँद पूनम का…</p>
<p>//जिंदगी जब से सधी होने लगी<br/> जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी//</p>
<p>वाह वाह, सुन्दर मतला, उला में "लगी" छुट गया था जिसे मैंने ठीक कर दिया है,</p>
<p></p>
<p>//डूब कर हमने जिया था काम को<br/> काम से ही अब अली होने लगी//<br/> यह शेर कुछ समझ में नहीं आ रहा .</p>
<p></p>
<p>//हारना सीखा नहीं हमने यदा<br/> दुश्मनो में खलबली होने लगी//<br/> अरे वाह,बहुत बढ़िया,अच्छा शेर है .</p>
<p></p>
<p>//नेक दिल की बात करते है चतुर<br/> हर कहे अक से बदी होने लगी//</p>
<p>ठीक है।</p>
<p></p>
<p>//चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा<br/> यादें दिल की फिर कली होने लगी //</p>
<p>यह बढ़िया है, कुल मिलाकर ग़ज़ल पर बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई आदरणीया शशी जी।</p>