Comments - सांत्वना (लघु कथा) : अरुण निगम - Open Books Online2024-03-29T15:55:43Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A450769&xn_auth=noआज संवेदनाओं की जगह पैसे ने ल…tag:www.openbooksonline.com,2013-11-01:5170231:Comment:4660822013-11-01T14:55:48.594Zबृजेश नीरजhttp://www.openbooksonline.com/profile/BrijeshKumarSingh
<p>आज संवेदनाओं की जगह पैसे ने ले ली है. बहुत ही अच्छी लघु कथा! आपको बहुत बहुत बधाई!</p>
<p>आज संवेदनाओं की जगह पैसे ने ले ली है. बहुत ही अच्छी लघु कथा! आपको बहुत बहुत बधाई!</p> //बेटे ने बीच में ही बात काट…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-16:5170231:Comment:4556972013-10-16T11:00:04.133ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>//<span lang="HI" xml:lang="HI">बेटे ने बीच में ही बात काट कर कहा कितने पैसे भेज दूँ</span><span> ?//</span></p>
<p></p>
<p><span>उनका ही बेटा था ? कहीं बच्चे से होस्टल में रख के तो नहीं पढ़ाया था ? अगर नहीं तो फिर संस्कार में कैसे कमी रह गई, पालन पोषण में कही हराम का पैसा तो नहीं लगाया ?</span></p>
<p></p>
<p><span>इस तरह से कई प्रश्न दिमाग में नाचने लगें हैं आदरणीय निगम साहब, मुझे जाने क्यों अतिश्योक्ति…………… </span></p>
<p><span>बहरहाल इस लघुकथा पर बधाई प्रेषित करता हूँ । लघुकथा अच्छी हुई…</span></p>
<p>//<span xml:lang="HI" lang="HI">बेटे ने बीच में ही बात काट कर कहा कितने पैसे भेज दूँ</span><span> ?//</span></p>
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<p><span>उनका ही बेटा था ? कहीं बच्चे से होस्टल में रख के तो नहीं पढ़ाया था ? अगर नहीं तो फिर संस्कार में कैसे कमी रह गई, पालन पोषण में कही हराम का पैसा तो नहीं लगाया ?</span></p>
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<p><span>इस तरह से कई प्रश्न दिमाग में नाचने लगें हैं आदरणीय निगम साहब, मुझे जाने क्यों अतिश्योक्ति…………… </span></p>
<p><span>बहरहाल इस लघुकथा पर बधाई प्रेषित करता हूँ । लघुकथा अच्छी हुई है । </span></p>
<p></p> बेटा.. हम इस पात्र को दोषी म…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-15:5170231:Comment:4553782013-10-15T20:13:37.588ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>बेटा.. हम इस पात्र को दोषी मानें ही क्यों ? इसने जो सीखा-समझा, जिन मान्यताओं पर उसे अपनी तथाकथित क़ामयाब ज़िन्दग़ी मिली है, उसकी पहली शर्त ही धन तृष्णा होती है. </p>
<p></p>
<p>एक भावनाप्रधान लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अरुणजी. इसने झकझोर दिया.</p>
<p></p>
<p>कथ्य पर थोड़ा और काम आवश्यक है. फिर आपकी भी लघुथाएँ क्रिस्प होने लगेंगीं. .. :-))))</p>
<p>सादर</p>
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<p>बेटा.. हम इस पात्र को दोषी मानें ही क्यों ? इसने जो सीखा-समझा, जिन मान्यताओं पर उसे अपनी तथाकथित क़ामयाब ज़िन्दग़ी मिली है, उसकी पहली शर्त ही धन तृष्णा होती है. </p>
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<p>एक भावनाप्रधान लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अरुणजी. इसने झकझोर दिया.</p>
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<p>कथ्य पर थोड़ा और काम आवश्यक है. फिर आपकी भी लघुथाएँ क्रिस्प होने लगेंगीं. .. :-))))</p>
<p>सादर</p>
<p></p> शानदार लघुकथाtag:www.openbooksonline.com,2013-10-11:5170231:Comment:4530892013-10-11T21:04:13.211Zवीनस केसरीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>शानदार लघुकथा</p>
<p>शानदार लघुकथा</p> आदरणीय अरुण जी,
आधुनिक उपभोक्…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-09:5170231:Comment:4521982013-10-09T16:59:03.708ZShubhranshu Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>आदरणीय अरुण जी,</p>
<p>आधुनिक उपभोक्तावाद ने भावनाओं को भी पैसे में तौलना सीख लिया है. हर चीज का दाम लगाया जाना एक आधुनिकता का पैमाना हो गया है..........सुन्दर कथा.</p>
<p>सादर.</p>
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<p>आदरणीय अरुण जी,</p>
<p>आधुनिक उपभोक्तावाद ने भावनाओं को भी पैसे में तौलना सीख लिया है. हर चीज का दाम लगाया जाना एक आधुनिकता का पैमाना हो गया है..........सुन्दर कथा.</p>
<p>सादर.</p>
<p> </p> गुम होती संवेदनाओं पर मार्मिक…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-09:5170231:Comment:4518812013-10-09T01:34:00.586Zvandanahttp://www.openbooksonline.com/profile/vandana956
<p>गुम होती संवेदनाओं पर मार्मिक अभिव्यक्ति ....इस सशक्त लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय अरुण सर </p>
<p>गुम होती संवेदनाओं पर मार्मिक अभिव्यक्ति ....इस सशक्त लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय अरुण सर </p> अपने अंदर सत्य को छुपाए हुए इ…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518482013-10-08T23:27:02.727ZSushil.Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilJoshi
<p>अपने अंदर सत्य को छुपाए हुए इस मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण जी...</p>
<p>अपने अंदर सत्य को छुपाए हुए इस मार्मिक लघु कथा के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय अरुण जी...</p> आदरणीय गुरुदेव श्री क्या कहूँ…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-08:5170231:Comment:4518242013-10-08T16:59:42.489Zअरुन 'अनन्त'http://www.openbooksonline.com/profile/ArunSharma
<p>आदरणीय गुरुदेव श्री क्या कहूँ !!! कैसे कहूँ !!! मेरे पास शब्द नहीं हैं कुछ भी कहने के लिए. रोंगटे खड़े हो गए ऑंखें नम हो गईं.</p>
<p>आदरणीय गुरुदेव श्री क्या कहूँ !!! कैसे कहूँ !!! मेरे पास शब्द नहीं हैं कुछ भी कहने के लिए. रोंगटे खड़े हो गए ऑंखें नम हो गईं.</p> आदरणीय अरुण निगम जी
मर्मस्पर…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-08:5170231:Comment:4517172013-10-08T14:22:33.881ZDr.Prachi Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय अरुण निगम जी </p>
<p>मर्मस्पर्शी लघुकथा... आधुनिक भौतिकजीवी मानव की भावशून्यता का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है..ह्रदय बेध देने वाला है. </p>
<p>इस स्थिति पर क्या कहूं ..निःशब्द हूँ.</p>
<p></p>
<p>सादर धन्यवाद इस संवेदनशील प्रस्तुति पर </p>
<p>आदरणीय अरुण निगम जी </p>
<p>मर्मस्पर्शी लघुकथा... आधुनिक भौतिकजीवी मानव की भावशून्यता का जो स्वरुप प्रस्तुत किया है..ह्रदय बेध देने वाला है. </p>
<p>इस स्थिति पर क्या कहूं ..निःशब्द हूँ.</p>
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<p>सादर धन्यवाद इस संवेदनशील प्रस्तुति पर </p> आदरणीया कल्पना जी ने जो कटु स…tag:www.openbooksonline.com,2013-10-08:5170231:Comment:4514972013-10-08T12:07:33.766Zवेदिकाhttp://www.openbooksonline.com/profile/vedikagitika
<p>आदरणीया कल्पना जी ने जो कटु सत्य कहा है, उससे इतर एक शब्द भी नहीं| नमन आपके गहन विश्लेषण को आदरणीया!</p>
<p>शुभकामनायें आदरणीय अरुण जी! </p>
<p>आदरणीया कल्पना जी ने जो कटु सत्य कहा है, उससे इतर एक शब्द भी नहीं| नमन आपके गहन विश्लेषण को आदरणीया!</p>
<p>शुभकामनायें आदरणीय अरुण जी! </p>