Comments - मुँह छोटा पर बात बड़ी है। - Open Books Online2024-03-28T16:56:01Zhttp://www.openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A154712&xn_auth=noदिल से निकली ग़ज़ल कही है, लो…tag:www.openbooksonline.com,2011-10-02:5170231:Comment:1568112011-10-02T12:23:43.281ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>दिल से निकली ग़ज़ल कही है,<br/> लोक क्रांति की यही कड़ी है |<br/> <br/> नेता सबको मूर्ख बनाते,<br/> आश्वासन की लगी झड़ी है |<br/> <br/> बहुत बधाई तुमको भाई,<br/> राजनीति पर चली छड़ी है|</p>
<p>दिल से निकली ग़ज़ल कही है,<br/> लोक क्रांति की यही कड़ी है |<br/> <br/> नेता सबको मूर्ख बनाते,<br/> आश्वासन की लगी झड़ी है |<br/> <br/> बहुत बधाई तुमको भाई,<br/> राजनीति पर चली छड़ी है|</p>
एक सशक्त हस्तक्षेप ..ताज़ा…tag:www.openbooksonline.com,2011-10-02:5170231:Comment:1564002011-10-02T07:53:07.167ZAbhinav Arunhttp://www.openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
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<p><span id="6_TRN_2m"><strong><span class="font"><font size="2">एक सशक्त हस्तक्षेप ..ताज़ा दौर की शानदार बयानी करती ग़ज़ल... बधाई !!</font></span></strong></span></p>
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<p><span id="6_TRN_2m"><strong><span class="font"><font size="2">एक सशक्त हस्तक्षेप ..ताज़ा दौर की शानदार बयानी करती ग़ज़ल... बधाई !!</font></span></strong></span></p>
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<p></p> भावों के संदर्भ में कहते हैं…tag:www.openbooksonline.com,2011-10-01:5170231:Comment:1562482011-10-01T13:18:09.710ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>भावों के संदर्भ में कहते हैं कि जब उसकी सांद्रता बढ़ जाती है तो यथोचित माध्यम का लबादा ओढ़े कुछ न कुछ बरबस निकल आता है, जो अनुशासित और सधा हुआ हो तो स्वीकार्य चमत्कार पैदा करता है. </p>
<p>सुभाषजी, आपकी इस छोटी बह्र की ग़ज़ल के साथ ऐसा ही कुछ है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें. प्रत्येक शे’र सहजबयनी करते हुए दीखते हैं और बड़े ठठे हुए-से हैं. पुनश्च बधाई व शुभेच्छाएँ. </p>
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<p>भावों के संदर्भ में कहते हैं कि जब उसकी सांद्रता बढ़ जाती है तो यथोचित माध्यम का लबादा ओढ़े कुछ न कुछ बरबस निकल आता है, जो अनुशासित और सधा हुआ हो तो स्वीकार्य चमत्कार पैदा करता है. </p>
<p>सुभाषजी, आपकी इस छोटी बह्र की ग़ज़ल के साथ ऐसा ही कुछ है. मेरी हार्दिक बधाई स्वीकर करें. प्रत्येक शे’र सहजबयनी करते हुए दीखते हैं और बड़े ठठे हुए-से हैं. पुनश्च बधाई व शुभेच्छाएँ. </p>
<p> </p> //पेट बडा है, भूख बड़ी है,
लोभ…tag:www.openbooksonline.com,2011-09-27:5170231:Comment:1548302011-09-27T18:25:28.843ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee
//पेट बडा है, भूख बड़ी है,<br />
लोभ भरा है, सोच सड़ी है।//<br />
वाह बहुत खूब, शानदार मतला निकाला है, सही कहा मित्र यह भूख बहुत बड़ी है शायद पेट से भी बड़ी |<br />
<br />
//सत्ता में हो, अपनी सोचो,<br />
जनमानस की किसे पड़ी है।//<br />
बिलकुल यथार्थ, अधिकतर राजनेता अब ऐसे ही है, और जनता हर बार ठगी जाती है, ठगने वाले बदलते रहते है |<br />
<br />
//अपराधी को सजा नहीं है,<br />
फ़ासीं जनता को ही पड़ी है।//<br />
सही बात, किसी न किसी बहाने आम आदमी तो रोज मरता है और रोज जिता है |<br />
<br />
//जब तुम चाहो, आग लगा दो,<br />
देश नहीं जैसे फ़ूलझड़ी है।//<br />
भाई हाथ तो इसी आग में सेकना…
//पेट बडा है, भूख बड़ी है,<br />
लोभ भरा है, सोच सड़ी है।//<br />
वाह बहुत खूब, शानदार मतला निकाला है, सही कहा मित्र यह भूख बहुत बड़ी है शायद पेट से भी बड़ी |<br />
<br />
//सत्ता में हो, अपनी सोचो,<br />
जनमानस की किसे पड़ी है।//<br />
बिलकुल यथार्थ, अधिकतर राजनेता अब ऐसे ही है, और जनता हर बार ठगी जाती है, ठगने वाले बदलते रहते है |<br />
<br />
//अपराधी को सजा नहीं है,<br />
फ़ासीं जनता को ही पड़ी है।//<br />
सही बात, किसी न किसी बहाने आम आदमी तो रोज मरता है और रोज जिता है |<br />
<br />
//जब तुम चाहो, आग लगा दो,<br />
देश नहीं जैसे फ़ूलझड़ी है।//<br />
भाई हाथ तो इसी आग में सेकना है, खुबसूरत शेर |<br />
<br />
//धन्धे तुमने बदल दिए पर,<br />
ठीए वहीं है, वो ही थड़ी है।//<br />
वाह वन्धु वाह !<br />
<br />
//एक माल के दो-दो भाव,<br />
कहीं किलो तो कहीं धड़ी है।//<br />
बुलंद शेर |<br />
<br />
//सत्ता जब भी अतिवादी थी,<br />
जनता उससे स्वयं लड़ी है।//<br />
चरम पतन का कारण है, शायद अभी चरम नहीं पंहुचा |<br />
<br />
//नेता जी ये ग़ाँठ बाँध लो,<br />
मुँह छोटा पर बात बड़ी है।//<br />
आय हाय हाय, अंतिम शे'र में आपने पूरी ग़ज़ल का निचोड़ रख दिया भाई जी,<br />
<br />
सुभाष तेरहान जी छोटी बहर पर अपेक्षाकृत कठिन काफिया ड़ी को बहुत ही कुशलता से निभाया है, सभी शेर बुलंद ख्यालात से लबरेज है, दाद कुबूल करे | Kya baat..yatharth ka darshan…tag:www.openbooksonline.com,2011-09-27:5170231:Comment:1547212011-09-27T11:12:48.589ZAnwesha Anjushreehttp://www.openbooksonline.com/profile/AnweshaAnjushree
<p>Kya baat..yatharth ka darshan...keep writing :)</p>
<p>Kya baat..yatharth ka darshan...keep writing :)</p>